प्रणाम
May, 2015
- कुछ समय पहले आतंकवादियों ने पाकिस्तान में नन्हे-मुन्ने स्कूली बच्चों के साथ
निहायत ही निचले दर्ज़े का अक्षम्य अनाचार किया था। दुनिया भर का शिक्षित और सभ्य
समाज इस घटना से बहुत बेचैन हुआ। उन बेचैनी के लमहात में कुछ अशआर हुये थे।
मुलाहिज़ा फ़रमाइये: –
कल इस धरती पे जब पानी न होगा, बस लहू होगा
तो मैं ये सोचता हूँ – क्या लहू वाला वुज़ू1 होगा
तो मैं ये सोचता हूँ – क्या लहू वाला वुज़ू1 होगा
मुझे मालूम है हमसाये2 के बाबत जो लिक्खा है
मगर ये नईं पता इस पर अमल कब से शुरू होगा
मगर ये नईं पता इस पर अमल कब से शुरू होगा
ये जो नफ़रत का राक्षस है न इस की भूख व्यापक है
मुझे खाते ही तय है इस का अगला कौर तू होगा
मुझे खाते ही तय है इस का अगला कौर तू होगा
अरे पंचायतों ने कब किसी की पीर समझी है
तू ही बतला दे वो जो ज़ख़्म है, कैसे रफ़ू होगा
तू ही बतला दे वो जो ज़ख़्म है, कैसे रफ़ू होगा
जो हम इतने भी ज़िद को जाहिलीयत3 की बहन कह दें
तो ये तय जानिये चरचा हमारा चार-सू4 होगा
तो ये तय जानिये चरचा हमारा चार-सू4 होगा
1 नमाज़ पढने से पहले हाथ
धोने की क्रिया 2 पड़ौस। अमूमन हर शास्त्र
में लिखा है कि अपने पड़ौस का ख़याल रखना चाहिये
3 मूर्खता, जड़ता । शायर का प्रस्ताव है कि अधिकारिक रूप से ज़िद का एक अर्थ मूर्खता भी स्वीकार कर लिया जाये। 4 चारों तरफ़
3 मूर्खता, जड़ता । शायर का प्रस्ताव है कि अधिकारिक रूप से ज़िद का एक अर्थ मूर्खता भी स्वीकार कर लिया जाये। 4 चारों तरफ़
बहरे
हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
नवीन
सी चतुर्वेदी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें