चैन
घटता जा रहा है क्या मुसीबत पाल ली।
दिल बहुत घबरा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
दिल बहुत घबरा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
दिल लगाया दिल दिया दिल को दिलासे भी दिये।
अब समझ में आ रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
अब समझ में आ रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
जैसे-जैसे हुस्न की हम उलझनें सुलझा रहे।
इश्क़ उलझता जा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
इश्क़ उलझता जा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
आसमानों से भी आगे दर्द जा पहुँचा मगर।
ग़म सिमटता जा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
ग़म सिमटता जा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा गोशा-गोशा हर्फ़-हर्फ़।
हर घड़ी दुहरा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
हर घड़ी दुहरा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
ऐ ख़ुदा तेरी ख़ुदाई में फ़क़त हम ही नहीं।
सारा आलम गा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
सारा आलम गा रहा है क्या मुसीबत पाल ली॥
नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे
रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
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