31 अक्तूबर 2011

विज्ञान के आगे चले ये हो कसौटी काव्य की

साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

पिछला हफ़्ता तो पूरा का पूरा दिवाली के मूड वाला हफ़्ता रहा| रियल लाइफ हो या वर्च्युअल, जहाँ देखो बस दिवाली ही दिवाली| शुभकामनाओं का आदान प्रदान, पटाखे और मिठाइयाँ| उस के बाद भाई दूज, बहनों का स्पेशल त्यौहार| इस सब के चलते हम ने पोस्ट्स को एक बारगी होल्ड पर रखा और इसी दरम्यान अष्ट विनायक दर्शन को निकल लिए|

26 अक्तूबर 2011

नज़रें लड़ीं जिससे, वही, भैया बता के चल पडी

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन


मंच के सभी कुटुम्बियों को एक दूसरे की तरफ़ से 
दीप अवलि 
की हार्दिक शुभकामनाएँ



हरिगीतिका छंद पर आधारित इस आयोजन में आज हम हास्य आधारित छंद पढेंगे| क्यूँ भाई, हास्य रस सिर्फ होली पर ही होता है क्या? दिवाली पर भी तो हँस सकते हैं हम.....................

दीपावली के दोहे - गोरी तुझसे फूटते फुलझड़ियों से रंग - नवीन

प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

दसों दिशा जगमग हुईं, धरती-गगन ललाम|
पहुँचे थे जिस क्षण अवध, लक्ष्मण-सीता-राम|१|

बम्ब पटाखे फूटते, कोलाहल के संग|
मनमोहक लगते मगर, फुलझड़ियों के रंग|२|

सजनी सजना से कहे, सजन सजाओ साज|
मुझे लादिए प्रीत से, धनतेरस है आज|३|

प्रीतम-पाती पढ़ रहे, प्रीत पारखी नैन|
शब्दों में ही ढूंढते, दीप अवलि सुख दैन|४|

कल-कल कहते कट गया, कितना काल कराल|
इस दीवाली तो सजन, दिल को कर खुशहाल|५|

अत्युत्तम, अनुपम, अमित, अद्भुत, अपरम्पार|
सुंदर, सरस, सुहावना, दीपों का त्यौहार|६|

यही बात कहते रहे, हर युग के विद्वान्|
दीपक-ज्ञान जले तभी, मिटे तमस-अज्ञान|७|

बुधिया को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात|
दिल में रहे उमंग तो, दीवाली दिन-रात|८|

दीवाली का है यही, दुनिया को सन्देश|
अपनों को भूलो नहीं, देश रहो कि विदेश|९|

चूनर साड़ी ओढ़ना, बिंदिया, कंगन संग|
गोरी तुझसे फूटते फुलझड़ियों से रंग|१०|

सजा थाल पूजा करें, साथ रहे परिवार|
हर घर में ऐसे मने, दीवाली त्यौहार|११|

रसबतियाँ बतिया रहे, ले हाथों में हाथ|
ये दीवाली ख़ास है, दिलदारा के साथ|१२|

बम्ब पटाखे फुलझड़ी, धरे अनोखे रंग|
खील बताशे खो रहे, पर, हटरी के संग|१३|

भरे पड़े हर सू, यहाँ, ऐसे भी इंसान|
फुस्सी बम से हौसले, रोकिट से अरमान|१५| 

बहना की कुंकुम लगे, हर भाई के माथ|
मने दूज का पर्व भी, दीवाली के साथ|१६|

मातु, पिता, भाई, बहन, सजनी, बच्चे, यार|
जब-जब ये सब साथ हों, तब-तब है त्यौहार|१७|

रमा चरण पर राखिये, श्रद्धा सह निज माथ|
दीपावली मनाइए, दीप अवलि  के साथ|१८|

दिवाली / दीवाली के दोहे

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

22 अक्तूबर 2011

वातायन - ग़ज़ल - प्राण शर्मा / छंद - सौरभ पाण्डेय.

शौक़  से  पढ़िए मेरे दिल की किताब - प्राण शर्मा

प्राण शर्मा

हर किसी के घर का रखते हैं हिसाब
ख़ुफ़िया से होते हैं जिनके दिल जनाब

पूछता  हूँ  आपसे  कि  गाली  में
आपको अच्छा लगेगा  क्या  जवाब

खैरख्वाहों  में  भी  वो  खामोश  है
दिल में सच्चाई जो हो तो दे जवाब

आपको  रोका  नहीं  मैंने  कभी
शौक़  से  पढ़िए मेरे दिल की किताब

बात  सोने  पर सुहागा  सी  लगे
सादगी  के साथ हो कुछ तो हिजाब

छोड़ अब दिन-रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब

वास्ता खुशियों से पड़ता है ज़रूर
कौन रखता है मगर उनका हिसाब

धुंध  पस्ती  की  हटे  तो बात हो
कुछ नज़र आये दिलों के आफताब

कोई क्या पूछे कभी उससे कि वो
माँगने  पर  भी  नहीं  देता जवाब
 
देखने  में  भी  तो लगता है हसीं
सिर्फ  खुशबू  ही नहीं देता गुलाब

रोज़ ही इक ख्वाब से आये हैं तंग
`प्राण` परियों वाला हो कोई तो ख्वाब
:- प्राण शर्मा


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सौरभ पाण्डेय



जीवन-सार
नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये|

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये|

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये|

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये|१|

 
हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा|

हो खरा वो राजसिक, तो आन-मान-प्राण दे
जिये-मरे जो सत्य को, तनिक न हो डरा|
 
हो डरा मनुष्य लगे, जानिये हिंसक उसे
तमस भरा विचार स्वार्थ-द्वेष हो भरा|

हो भरा उत्साह और सुकर्म के आनन्द से-
वो मनुष्य सत्यसिद्ध, ज्ञानभूमि हो धरा|२|

 
दीखते व्यवहार जो हैं व्यक्ति के संस्कार वो
नीति-धर्म साधना से, कर्म-फल रीतते|

रीतते हैं भेद-मूल, राग-द्वेष, भाव-शूल
साधते विज्ञान-वेद, प्रति पल सीखते|

सीखते हैं भ्रम-काट, भोग-योग भेद पाट
यों गहन कर्म-गति, वो विकर्म जीतते|

जीतते अहं-विलास, ध्यान-धारणा प्रयास
संतुलित विचार से, धीर-वीर दीखते|३|

 

-- सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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