कि वो उभरा – जो तैरा भी नहीं था|१|
महब्बत इम्तेहा लेती है ऐसे|
वो ही चुप था – जो गूँगा भी नहीं था|२|
शहंशाहों से यारी थी हमारी|
भले ही पास ढेला भी नहीं था|३|
बुराई जिस तरह मेरी हुई है|
मियाँ, मैं ऐसा अच्छा भी नहीं था|४|
ज़रूरत पेश आती दुश्मनी की|
तअल्लुक़ इतना गहरा भी नहीं था|५|
मैं सदियाँ छीन लाया वक़्त तुझसे|
मेरे कब्ज़े में लमहा भी नहीं था|६|
तेरी हालत बदल पाती तो कैसे|
कि जब आँखों में सपना भी नहीं था|७|
धीरे धीरे अश्क़ तो कम हो जाएंगे|
लेकिन दिल पर ज़ख्म रक़म हो जाएंगे|१|
दीवाने की पलकें खुलने मत देना|
सहरा तेरे बंजर नम हो जाएंगे|२|
मेरे पैरों में चुभ जाएंगे लेकिन|
इस रस्ते से काँटे कम हो जाएंगे|३|
उसकी याद का झोंका आने वाला है|
ये जलते लम्हे शबनम हो जाएंगे|४|
हम थक कर बैठेंगे उस की चौखट पर|
सारे राही तेज़ क़दम हो जाएंगे|५|
सूखती जाती है तेरी यादों की झील|
पंछी ग़ज़ल के आने कम हो जाएंगे|६|
दुनियादारी ताक़ पे रखने का जी है|
घर में रह कर हम गौतम हो जाएंगे|७|
दिलों के ज़हर को शाइस्तगी ने काट दिया|
अँधेरा था तो घना – चाँदनी ने काट दिया|१|
बड़ा तवील सफ़र था हयात का लेकिन|
ये रास्ता मेरी आवारगी ने काट दिया|२|
हमें हमारे उसूलों से चोट पहुँची है|
हमारा हाथ हमारी छुरी ने काट दिया|३|
तुम अगले जन्म में मिलने की बात करते हो|
ये रास्ता जो मेरी ख़ुदकुशी ने काट दिया|४|
खमोशियों से तअल्लुक़ की डोर टूट गयी|
पुराना रिश्ता तेरी बेरुख़ी ने काट दिया|५|
ज़िगर के टुकड़े मेरे आँसुओं में आने लगे|
बहाव तेज़ था, पुश्ता नदी ने काट दिया|६|
जिस जगह पत्थर लगे थे, रंग नीला कर दिया|
अब के रुत ने मेरा बासी ज़िस्म ताज़ा कर दिया|१|
आईने में अपनी सूरत भी न पहिचानी गई|
आँसुओ ने आँख का हर अक़्स धुंधला कर दिया|२|
उस की ख़्वाहिश में तुम्हारा सिर है, तुम को इल्म था|
अपनी मंज़ूरी भी दे दी, तुमने ये क्या कर दिया|३|
उस के वादे के इवज़ दे डाली अपनी ज़िंदगी|
एक सस्ती शय का ऊंचे भाव सौदा कर दिया|४|
कल वो हँसता था मेरी हालत पे, अब हँसता हूँ मैं|
वक़्त ने उस शख़्स का चेहरा भी सेहरा कर दिया|५|
था तो नामुमकिन तेरे बिन मेरी साँसों का सफ़र|
फिर भी मैं ज़िंदा हूँ, मैंने तेरा कहना कर दिया|६|
हम तो समझे थे कि अब अश्क़ों की किश्तें चुक गईं|
रात इक तस्वीर ने फिर से तक़ाज़ा कर दिया|७|
आहट हमारी सुन के वो खिड़की में आ गये|
अब तो ग़ज़ल के शेर असीरी में आ गये|१|
साहिल पे दुश्मनों ने लगाई थी ऐसी आग|
हम बदहवास डूबती कश्ती में आ गये|२|
अच्छा दहेज दे न सका मैं, बस इसलिए|
दुनिया में जितने ऐब थे, बेटी में आ गये|३|
हम तो समझ रहे थे ज़माने को क्या ख़बर|
किरदार अपने, देख – कहानी में आ गये|४|
तुमने कहा था आओगे – जब आयेगी बहार|
देखो तो कितने फूल चमेली में आ गये|५|
उस की गली को छोड़ के ये फ़ायदा हुआ|
ग़ालिब, फ़िराक़, जोश की बस्ती में आ गये|६|
हम राख़ हो चुके हैं, तुझे भी जता तो दें|
बस इस ख़याल से तेरी शादी में आ गये|६|
हाँ इस ग़ज़ल में उन के ख़यालात नज़्म हैं|
इस बार बादशाह – ग़ुलामी में आ गये|७|
वरक़-वरक़ पे उजाला उतार आया हूँ|
ग़ज़ल में मीर का लहज़ा उतार आया हूँ|१|
बरहना हाथ से तलवार रोक दी मैंने|
मैं शाहज़ादे का नश्शा उतार आया हूँ|२|
समझ रहे थे सभी, मौत से डरूँगा मैं|
मैं सारे शहर का चेहरा उतार आया हूँ|३|
मुक़ाबिले में वो ही शख़्स सामने है मेरे|
मैं जिस की ज़ान का सौदा उतार आया हूँ|४|
उतारती थी मुझे तू निगाह से दुनिया|
तुझे निगाह से दुनिया उतार आया हूँ|५|
ग़ज़ल में नज़्म किया आंसुओं को चुन-चुन कर|
चढ़ा हुआ था, वो दरिया उतार आया हूँ|६|
तेरे बगैर कहाँ तक ये वज़्न उठ पाता|
मैं अपने चेहरे से हँसना उतार आया हूँ|७|
अदालतें हैं मुक़ाबिल - तो फिर गवाही क्या|
सज़ा मिलेगी मुझे – मेरी बेगुनाही क्या|१|
मेरे मिज़ाज़ में शक़ बस गया मेरे दुश्मन|
अब इस के बाद मेरे घर की है तबाही क्या|२|
हर एक बौना मेरे क़द को नापता है यहाँ|
मैं सारे शहर से उलझूँ मेरे इलाही क्या|३|
समय के एक तमाचे की देर है प्यारे|
मेरी फ़क़ीरी भी क्या – तेरी बादशाही क्या|४|
तमाम शहर के ख़्वाबों में क्यों अँधेरा है|
बरस रही है – घटाओ! कहीं – सियाही क्या|५|
मेरे खिलाफ़ मेरे सारे काम जाते हैं|
तू मेरे साथ नहीं है, मेरे इलाही क्या|६|
बस अपने ज़ख्म से खिलवाड़ थे हमारे शेर|
हमारे जैसे क़लमकार ने लिखा ही क्या|७|
पल पल सफ़र की बात करें आज ही तमाम|
मंज़िल क़रीब आई, हुई ज़िंदगी तमाम|१|
पौ क्या फटी, कि शब के मुसाफिर हुए विदा|
पीपल की छाँव तुझसे हुई दोस्ती तमाम|२|
पिछली सफ़ों के लोग जलाएं लहू से दीप|
मैं चुक गया हूँ, मेरी हुई रोशनी तमाम|३|
बस उस गली में जा के सिसकना रहा है याद|
उसकी तलब में छूट गयी सरकशी तमाम|४|
कुछ था कि जिस से ज़ख्म हमेशा हरा रहा|
बेचैनियों के साथ कटी ज़िंदगी तमाम|५|
ये और बात – प्यास से दीवाना मर गया|
लेकिन किसी तरह तो हुई तश्नगी तमाम|६|
धूप होते हुए बादल नहीं मांगा करते|
हम से पागल, तेरा आँचल, नहीं माँगा करते|१|
हम फ़कीरों को ये गठरी, ये चटाई है बहुत|
हम कभी शाहों से मखमल नहीं माँगा करते|२|
छीन लो, वरना न कुछ होगा निदामत के सिवा|
प्यास के राज में, छागल नहीं माँगा करते|३|
हम बुजुर्गों की रिवायत से जुड़े हैं भाई|
नेकियाँ कर के कभी फल नहीं माँगा करते|४|
देना चाहे तू अगर, दे हमें दीदार की भीख|
और कुछ भी – तेरे पागल नहीं माँगा करते|५|
आज के दौर से उम्मीदेवफ़ा! होश में हो?
यार, अंधों से तो काजल नहीं माँगा करते|६|
गुबार दिल से पुराना नहीं निकलता है|
कोई भी सुलह का रस्ता नहीं निकलता है|१|
उठाए फिरते हैं सर पर सियासी लोगों को|
अगरचे, काम किसी का नहीं निकलता है|२|
लड़ाई कीजिये, लेकिन, जरा सलीक़े से|
शरीफ़ लोगों में जूता नहीं निकलता है|३|
तेरे ही वास्ते आँसू बहाये हैं हमने|
सभी का हम पे ये क़र्ज़ा नहीं निकलता है|४|
जो चटनी रोटी पे जी पाओ, तब तो आओ तुम|
कि मेरे खेत से सोना नहीं निकलता है|५|
ये सुन रहा हूँ कि तूने भुला दिया मुझको|
वफ़ा का रंग तो कच्चा नहीं निकलता है|६|
अश्क़ों से आँखों का पर्दा टूट गया|
इश्क़ का आखिर कच्चा धागा टूट गया|१|
बेटे की अर्थी चुपचाप उठा तो ली|
अंदर अंदर लेकिन बूढ़ा टूट गया|२|
सोचा था सच की ख़ातिर जाँ दे दूँगा|
मेरा मुझसे आज भरोसा टूट गया|३|
पर्वत की बाँहों में जोश अलग ही था|
मैदानों में आ कर दरिया टूट गया|४|
नई बहू से इतनी तबदीली आई|
भाई का भाई से रिश्ता टूट गया|५|
प्यार किया है तो मर जाना थोड़ी है|
दीवाना – इतना दीवाना थोड़ी है|१|
आँखों से धोका मत खा जाना, इन में|
तू भी है – खाली वीराना थोड़ी है|२|
तनहा दिल आखिर दुनिया से हार गया|
लेकिन वो दुनिया की माना थोड़ी है|३|
टूटे रिश्ते पर रोना-धोना कर बंद|
उस को अब की बार मनाना थोड़ी है|४|
शुहरत की ऊँचाई पर इतराता है|
पर्वत से वादी में आना थोड़ी है|५|
हम तुम कागज़ पर सदियों साँसें लेंगे|
लफ़्ज़ों का जादू मर जाना थोड़ी है|६|
हवा को रुख बदलना चाहिए था|
दिया मेरा भी जलना चाहिए था|१|
डुबोया आँसुओं में सारा जीवन|
समंदर से निकलना चाहिए था|२|
पड़े हो रास्ते पर खाक ओढ़े|
हवा के साथ चलना चाहिए था|३|
पिघल उठ्ठी थी तारीकी फ़जा की|
हमें कुछ और जलना चाहिए था|४|
जरूरी था सभी के साथ रहते|
जरा सा बच के चलना चाहिए था|५|
अँधेरा आदतन करता है साज़िश|
मगर सूरज निकलना चाहिए था|६|
तुम्हारी बात बिलकुल ठीक थी बस|
तुम्हें लहज़ा बदलना चाहिए था|७|
नहीं झोंका कोई भी ताज़गी का|
तो फिर क्या फायदा इस शायरी का|१|
बहुत दिन तक नहीं बहते हैं आँसू|
वो दरिया हो गया सहरा कभी का|२|
किसी ने ज़िंदगी बरबाद कर दी|
मगर अब नाम क्या लीजै किसी का|३|
महब्बत में ये किसने ज़हर घोला|
बहुत मीठा था पानी इस नदी का|४|
तेरी तस्वीर पर आँसू नहीं हैं|
मगर धब्बा नहीं जता नमी का|५|
वही जो मुस्कुराता फिर रहा है|
उदासी ढूँढती है घर उसी का|६|
वो रिश्ता तोड़ने के मूड में है|
मियाँ पत्ता चलो अब ख़ुदकुशी का|७|
सिमट आए फिर इक दिन ज़ात में हम|
बहुत दिन दुख सहा ज़िंदादिली का|८|
किसी दिन हाथ धो बैठोगे हमसे|
तुम्हें चस्का बहुत है बेरुख़ी का|९|
[ये १५ गज़लें उपलब्ध कराने के लिए, भाई विकास शर्मा 'राज़' जी का बहुत बहुत आभार]
तुफ़ैल जी का ई मेल पता:- tufailchaturvedi@yahoo.com