सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
समस्या पूर्ति मंच द्वारा कुण्डलिया छन्द पर आयोजित इस आयोजन में अब तक हम ८ सरस्वती पुत्रों के २५ कुण्डलिया छन्द पढ़ चुके हैं| अब पढ़ते हैं दो और सरस्वती पुत्रों को| भाई दिलबाग विर्क जी पहली बार इस आयोजन में शामिल हुए हैं और छन्द साहित्य में उन का रुझान देखते हुए आशा बँधती है कि और भी कई कवियों से आने वाले समय में और भी सुन्दर सुन्दर छन्द पढ़ने को मिलेंगे| आदरणीय बृजेश त्रिपाठी जी ने भी अस्वस्थता के बीच समय निकाल कर अपने छन्द भेजे हैं| मंच इन दोनों का सहृदय आभार प्रकट करता है|
कम्प्यूटर से सीखिये , मुन्ना ज्ञान-विज्ञान |
पढ़ पाओगे आप यूँ , पहले से आसान ||
पहले से आसान, पढ़ाई हो जाएगी|
विद्वानों के साथ, भेंट भी हो पाएगी|
पढ़ पाओगे आप यूँ , पहले से आसान ||
पहले से आसान, पढ़ाई हो जाएगी|
विद्वानों के साथ, भेंट भी हो पाएगी|
करो सही उपयोग , बनाओ इसे न बदतर|
कहत ' विर्क ' कविराय ,सहायक है कम्प्यूटर|१|
[अध्यापक महोदय अब हमें विश्वास है कि आप अपने शिष्यों को छन्द ज्ञान अवश्य देंगे]
भारत देश महान का , तुम खुद समझो हाल |
कूड़ा करकट बीनते , नौनिहाल बेहाल ||
नौनिहाल बेहाल ,झेलते हैं लाचारी |
मिले नहीं उपचार , गरीबी बनी बिमारी|
कहत ' विर्क ' कविराय ,सहायक है कम्प्यूटर|१|
[अध्यापक महोदय अब हमें विश्वास है कि आप अपने शिष्यों को छन्द ज्ञान अवश्य देंगे]
भारत देश महान का , तुम खुद समझो हाल |
कूड़ा करकट बीनते , नौनिहाल बेहाल ||
नौनिहाल बेहाल ,झेलते हैं लाचारी |
मिले नहीं उपचार , गरीबी बनी बिमारी|
'विर्क' समझ ना पाय, विश्व के आगे - क्यूँ? नत!!!
दया-धर्म का दूत , जगद गुरु अपना भारत |२|
[पीड़ा को सही शब्द प्रदान किए हैं आपने]
:- दिलबाग विर्क
सुंदरियाँ इठला रहीं, रन वर्षा के साथ |
चौका-छक्का जब लगे, उछलें दो दो हाथ||
उछलें दो दो हाथ, तभी बालर खिसियाते|
शामिल कीं इस हेतु, मेच में ये सुंदरियाँ|१|
[अंकल आप भी देखते हैं २०-२० मेच!!!!!!!! और !!!!!!!!!!]
भारत ने फिर धार कर, विश्व-विजय का ताज|
आनंदित, फिर, कर दिया, सारा देश समाज||
किया 'विश्व-कप' नाम, ख़ुशी से रोया भारत|२|
कुंठित मन की रिक्ति, नहीं पा सकी अपेक्षित|
व्यथित प्रिया यदि मित्र, रहें खुशियाँ भी हटकर|
ये ना ठीक सलाह , ज़रा त्यागो कम्प्यूटर |३|
[तजुर्बे की बात कह रहे हैं त्रिपाठी जी]
:- बृजेश त्रिपाठी
दया-धर्म का दूत , जगद गुरु अपना भारत |२|
[पीड़ा को सही शब्द प्रदान किए हैं आपने]
:- दिलबाग विर्क
सुंदरियाँ इठला रहीं, रन वर्षा के साथ |
चौका-छक्का जब लगे, उछलें दो दो हाथ||
उछलें दो दो हाथ, तभी बालर खिसियाते|
फील्डिंग करके चुस्त,एक दो विकिट उड़ाते|
नहीं व्यर्थ हों बोर, कभी दर्शक मंडलियाँ|शामिल कीं इस हेतु, मेच में ये सुंदरियाँ|१|
[अंकल आप भी देखते हैं २०-२० मेच!!!!!!!! और !!!!!!!!!!]
भारत ने फिर धार कर, विश्व-विजय का ताज|
आनंदित, फिर, कर दिया, सारा देश समाज||
सारा देश समाज , टीम का मोहक चहरा|
माही औ युवराज, सचिन, भज्जी औ नहरा|
'व्यथित आस' कर पूर्ण, विरोधी को कर गारत|माही औ युवराज, सचिन, भज्जी औ नहरा|
किया 'विश्व-कप' नाम, ख़ुशी से रोया भारत|२|
[सच में त्रिपाठी जी अमूमन हर हिन्दुस्तानी की आँखें नम हो आयीं थीं उस वक्त]
कम्पुटर कब गजवदन ,कब माउस में शक्ति|
पत्नी को नाराज़ कर, फिर भी पाली भक्ति||
फिर भी पाली भक्ति, घराणी हुई उपेक्षित|कम्पुटर कब गजवदन ,कब माउस में शक्ति|
पत्नी को नाराज़ कर, फिर भी पाली भक्ति||
कुंठित मन की रिक्ति, नहीं पा सकी अपेक्षित|
व्यथित प्रिया यदि मित्र, रहें खुशियाँ भी हटकर|
ये ना ठीक सलाह , ज़रा त्यागो कम्प्यूटर |३|
[तजुर्बे की बात कह रहे हैं त्रिपाठी जी]
:- बृजेश त्रिपाठी
इन दोनों सरस्वती पुत्रों को पढने के बाद अब हम प्रतीक्षा करते हैं अन्य साहित्य के उपासकों के छंदों के आने की| तब तक आप सभी इन साहित्य सुमनों की सुगंध से सराबोर हो कर अपनी टिप्पणियाँ इन पर न्यौछावर कीजिएगा |
जय माँ शारदे!!!