सम्पादकीय
परसों यानि 30 मई 2014 को दिल्ली में मौसम का सब से तेज़ तापमान
रिकार्ड होने के बाद वो आँधी चली कि उस की ख़बरें मुम्बई में भी साहित्यिक अंदाज़
में सुनने को मिलीं। कुछ रसिक मिजाज़ लोग गिरती-पड़ती चीज़ों के साथ ही साथ उड़ती
चीज़ों का भी ज़िक्र कर रहे थे। जन-जीवन बहुत ही अस्त-व्यस्त हुआ, मगर क्या करें कुदरत
पर किस का ज़ोर चला है भाई?
पिछला अङ्क पढ़ने के साथ ही हमारे एक वरिष्ठ साथी ने सन्देश दिया कि
आप के सम्पादकीय में राजनीतिक चर्चा है इसलिये भविष्य में उन तक अङ्क न पहुँचाया
जाये। मुझे नहीं लगता कि सर्वज्ञात समूह विशेष की तर्ज़ पर यह अन्तर्जालीय पत्रिका
किसी वर्ग विशेष का समर्थन या विरोध करती है, फिर भी अग्रज की बात मान ली।
तमाम अनुमानों को झुठलाते हुये मोदी [बीजेपी नहीं] को अपार सफलता
मिली और उन के शुरुआती दौर के चन्द फ़ैसले इस बात की गवाही दे रहे हैं कि मोदी जी
पब्लिक से किये गये वायदों से मुकरने का जोख़िम नहीं उठायेंगे। मुझे नहीं लगता इतना
भर लिखने से किसी को सर्वज्ञात समूह विशेष की तर्ज़ पर मोदी का अनुगामी मान लिया
जाये।
दिन-ब-दिन तकनीक के बढ़ते उपयोग और नौजवानों की बढ़ती सहभागिता अच्छे
परिणाम दिखला रही है। चार साल पहले जब फ़ेसबुक और फिर ब्लॉगर के मार्फ़त मैं ने
अन्तरराष्ट्रीय अन्तर्जालीय साहित्यिक प्रासाद की चौखट पर क़दम रखे थे, तब दूर-दूर तक इस बात
का अंदाज़ा नहीं था कि इतने कम समय में इतने अधिक लोगों से जुड़ जाऊँगा। मगर यह सच
अब हम सब के सामने है। अन्तर्जालीय प्रवृत्तियों को लगातार कोसने की बजाय हमें उन
का सदुपयोग करने के बारे में सोचना ही श्रेयस्कर होगा। साथ ही किसी भी अन्य
क्षेत्र की तरह साहित्य में भी नौजवानों को परिश्रम करने की आदत डलवाने की ज़रूरत
है। कभी-कभार सुनने में आता है कि उस्ताज़ लोग अपने-अपने शागिर्दों [पट्ठों] को ग़ज़ल-गीत-कविता
वग़ैरह लिख कर दे देते हैं। यह प्रवृत्ति भले ही कितनी भी सदियों से क्यूँ न चली आ
रही हो, मुझे
तर्क-संगत कभी भी नहीं लगी। मेहनत-मशक़्क़त से बेहतर और कोई डगर हो ही नहीं सकती।
शेयर बाज़ार चढ़ रहा है, सोना गिर रहा है, प्रॉपर्टी वाले भी सहमे-सहमे हुये हैं। आने वाले महीनों में हमारे सामने
कई अनपेक्षित परिस्थितियाँ उपस्थित होने की सम्भावनाएँ हैं। उमीद करता हूँ कि
जन-साधारण को ज़ोर का हो या धीरे का, किसी भी तरह का झटका झेलना न पड़े।
इस अङ्क से साहित्यम के कुछ साथियों ने विभाग विशेष का उत्तरदायित्व
आपस में बाँट लिया है। उन सभी साथियो के नाम और मोबाइल नम्बर शुरुआत में दिये गए
हैं। कुछ अन्य भाषा-बोलियों से भी साथियों के सहयोग की दरकार है। हम सभी अवैतनिक
स्वयं-सेवी हैं। पिछले दो-तीन हफ़्तों से लगातार सफ़र में होने के कारण इस अङ्क को
बहुत ही कम समय दे पाया हूँ। भाषाई स्तर पर वाक्यों / शब्दों / अक्षरों को फिलहाल
अपेक्षित समय नहीं दे पा रहा हूँ, परन्तु जल्द ही इस दिशा में पहल करनी होगी। अच्छे साहित्य को अधिकतम
साहित्य-रसिकों तक पहुँचाने के क्रम में ‘साहित्यम्’ का अगला अङ्क आप के सामने
प्रस्तुत है। पढ़ियेगा, अन्य
परिचित साहित्य-रसिकों को भी जोड़िएगा और आप के बहुमूल्य विचारों से अवश्य ही अवगत
कराइयेगा। आप की राय बिना सङ्कोच के हम तक पहुँचाने की कृपा करें।
आपका अपना
नवीन सी. चतुर्वेदी, 01
जून 2014
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साहित्यम्
अन्तरजालीय पत्रिका / सङ्कलक
वर्ष 1 - अङ्क 5 - जून 2014
विवेचना
मयङ्क अवस्थी - 07897716173
छन्द विभाग
आ. सञ्जीव वर्मा 'सलिल' - 9425183144
व्यंग्य विभाग
कमलेश पाण्डेय - 9868380502
कहानी विभाग
सोनी किशोर सिंह - 8108110152
राजस्थानी विभाग
राजेन्द्र स्वर्णकार - 9314682626
भोजपुरी विभाग
इरशाद खान सिकन्दर - 9818354784
अवधी विभाग
धर्मेन्द्र कुमार सज्जन - 9418004272
विविध सहायता
मोहनान्शु रचित - 9457520433
ऋता शेखर मधु
सम्पादन
नवीन सी. चतुर्वेदी - 9967024593
अनुक्रमाणिका
कहानी उजास – मञ्जरी शुक्ल
व्यंग्य अकबर का लिप-लाक – आलोक पुराणिक
संस्मरण गुरु की तलाश - प्राण शर्मा
कविता / नज़्म लीडर जी, परनाम तुम्हें हम मज़दूरों का, - शैलेन्द्र
गीत – नवगीत पाँच गीत - शैलेन्द्र
ग़ज़ल एक ज़मीन तीन शायर
आञ्चलिक गजलें 3 भोजपुरी गजलें - मनोज भावुक