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होली पर कुछ मन की बात - ऋता शेखर 'मधु'

होली...एक ऐसा शब्द जो श्रवण करते ही कितने सारे भाव उपज आते हैं मन की भूमि पर जो बंजर बन चुके मस्तिष्क पर भी रंगों की बौछार करने से नहीं चूकते| होली में बहार है, होली में खुमार है, होली में श्रृंगार है,होली वीणा की झंकार है, होली रंगों का त्योहार है,होली साजन की पुकार है| जो पर्व सर्वभाव संपन्न है उसके लिए मौसम भी तो खास है अर्थात ऋतुओं का राजा बसंत ही इन सबका सूत्रधार है|

पीत परिधान में सजे ऋतुराज का आगमन चारो ओर हर्ष, प्रेम और उल्लास भर देता है| पतझर की पीड़ा झेल रहे बागों में कोंपलों का आगमन है| यह वही मौसम है जब श्रीराम जनककुमारी सीता से पुष्पवाटिका में मिले थे| श्रीकृष्ण ने गोपियों संग रास रचाया था| महाशिवरात्रि में ऊँ नमः शिवाय का जयघोष है जब देवाधिदेव भगवान शिव का पार्वती से मिलन हुआ था| फाग की मस्ती भी है, वीणावादिनी का संगीत भी, भँवरों की गूँज  और कलियों का प्रस्फुटन भी है| आम की बौर से बौराया समाँ है जहाँ कोकिलों की कूक भी है|

हमारे भारत देश में सभी त्योहार मनाने के पीछे कुछ उद्देश्य अवश्य रहता है| होली नवसंवत्सर का प्रथम दिन है जो हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है और इस बात का संदेश देता है कि सभी के जीवन में खुशियों का रंग भरा रहे | सबसे सार्थक परम्परा यह है कि संवत्सर का अवसान होलिका दहन से होता है जो यह बताता है कि सारी बुराइयों को पीछे छोड़ जाएँ हम, मन की कलुषता को अग्नि की भेंट चढ़ाएँ हम और स्वच्छ हृदय से चैत्र के प्रथम दिन की शुरुआत करें और सालों भर खुशियाँ बाँटें| होली मिलन की संस्कृति इसी बात की परिचायक है जो भेद भाव का नाश करती है ,मन में उपजे वैर कंटकों को समूल नाश करने का संदेश देती हे|

होली के दिन सुबह होते ही टोलियाँ निकल पड़ती हैं सड़कों, गली मुहल्लों में और साथ होती हैं रंग भरी पिचकारियाँ| किसी ने कितने भी झक सफ़ेद कपड़े पहने हों इससे कोई मतलब नहीं| भइ, होली है तो रंगीन ही होना होगा, उजले की गुँजाइश नहीं | गुस्सा करने का भी अधिकार नहीं क्योंकि हाली का तो बस अपना ही नारा है','बुरा न मानो होली है'| भाभियों की तो खेर नहीं, रंग डालो उन्हें अपने घर की रीति रिवाजों में और जीजा साली की होली में बेचारी दीदियाँ भी कुछ नहीं कर पाती| दिन भर की हुड़दंग के बीच घर के बुज़ुर्गों की पुकार भी तो शामिल है, अरे भाई कुछ खा-पी लो, हमें भी खिलाओ या सिर्फ रंग ही खेलोगे|

दोपहर तक शांत हो गई सड़कें| घर के अंदर स्नान और रंग छुड़ाने की प्रक्रिया शुरु हुई| मगर भाभी जी, आप तो कुछ देर बाद ही नहाएँ क्योंकि बाथरुम के बाहर देवर-ननदों की जमात खड़ी है रंगों की बाल्टियाँ लेकर| आप फिर से रंगी जाएँगी| वर्ष में एक बार आने वाला यह त्योहार रिश्तों में कितनी मिठास भर देता है यह महसूस करने की बात है|

नहाने के बाद खाना खाकर सभी चले झपकियाँ लेने, फिर तैयार भी तो होना है मेहमानों की आवभगत के लिए| तश्तरियों में पकवान और मेवे सजाए गए| अबीर गुलाल के पैकेट रखे गए| कोई कमी न रह जाए, पुए और दही बड़े भी सज गए| सांध्य काल की दस्तक के साथ ही शुरु हुई बड़ों के चरण पर अबीर रखकर प्रणाम करने की प्रक्रिया| बडों ने जी भर कर आशीर्वाद दिया और साथ में परवी भी मिली| देर रात तक मेहमानों के आने का सिलसिला जारी रहता हे|

होली में सभी अपने घर आने की कोशिश करते हैं, तभी तो हमारा भारत परिवार को एकजुट रखने में कामयाब रहता है| हर्ष के पर्व को गलत मानसिकता से कभी न मनाएँ| व्यवहार में शिष्टता बेहद जरूरी है| होली के नाम पर बेहुदे मजाक वातावरण को बोझिल बना देते हैं | इससे सदा बचना चाहिए क्योंकि यह आपके व्यक्तित्व को धूमिल कर सकता है|

आप सभी जीवन में हमेशा रंगो की छिटकन बनी रहे| शुभकामनाएँ सभी को|

सिद्धिदात्रि माँ दीजिये भारत को वरदान - ऋता शेखर मधु

नमस्कार

इस बार का आयोजन एक दम शॉर्ट एण्ड स्वीट है। कल आयोजन का समापन हो जायेगा। आज की पोस्ट में पढ़ते हैं ऋता शेखर मधु जी के दोहे। अन्तर्जाल पर साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों को पता है कि किस तरह कम ही समय में आप ने छंदों से नाता जोड़ लिया है। देवी के नौ रूप यानि नवदुर्गा के नौ नामों को केन्द्र में रख कर दोहे लिखे हैं आप ने। 

[1] शैलपुत्री [2] ब्रह्म्चारिणी [3] चन्द्र्घण्टा [4] कूष्माण्डा [5] स्कन्दमाता [6] कात्यायिनी [7] कालरात्रि [8] महागौरी [9] सिद्धिदात्री ..... नवदुर्गा के नौ नाम हैं ये

शैलपुत्री
प्रथम दिवस को पूजते, जिनको हम सोल्लास
पुत्री वह गिरिराज की, भरतीं जीवन आस

चन्द्र-शिखर को सोहता, वाहन बनता बैल
पुत्री मिली यशस्विनी, धन्य हुए हिमशैल

ब्रह्मचारिणी
अधीश्वरी हैं शक्ति की, ब्रह्मचारिणी रूप
सौम्यानन्दप्रदायिनी, लागें ब्रह्मस्वरूप

हो विकास सद्बुद्धि का, अरु कुबुद्धि का नाश
ब्रह्मचारिणी से मिले, हर पग दिव्य प्रकाश

चन्द्रघण्टा
जिनकी ग्रीवा में बसे, चन्दा का आह्लाद
चन्द्रघण्टा करें कृपा, खुशियाँ हों आबाद

कूष्माण्डा
त्रिविध ताप संसार का, कूष्माण्डा में युक्त
देवी की आराधना, करती ताप विमुक्त

स्कन्दमाता
अपने आँचल में भरे, ममता की सौगात
बनी पाँचवें रूप में, स्कन्द पुत्र की मात

यत्र तत्र सर्वत्र हैं, भाँति-भाँति सन्ताप
देवी पञ्चम रूप में, करो निवारण आप

कात्यायिनी
कात्यायिनि अवतार में, आईं ऋषि के द्वार
माँ के आशिर्वाद से, मिला विजय का हार

कालरात्रि
आज धरा पर हर जगह, घटता जाय प्रकाश
कालरात्रि के रूप में, तम का करो विनाश

महागौरी
सकल विश्व भटका हुआ, दिखता मद में चूर
मातु महागौरी त्वरित, कृपा करो भरपूर

सिद्धिदात्री
सिद्धिदात्रि माँ दीजिये भारत को वरदान
घर घर सुख आबाद हो, छा जाये मुस्कान


माँ दुर्गा आप की मनोकामना अवश्य पूरी करें। साथियो कल की पोस्ट भी एक विशेष पोस्ट है, अवश्य पाधारिएगा।  

बुढ़ापे की उम्र - ऋता शेखर 'मधु'

आखिर बुढ़ापे की उम्र क्या है?

अपनी उम्र को लेकर महिलाएँ ज्यादा सजग रहती हैं इसमें दो मत नहीं...किन्तु वह उम्र क्या है जहाँ से शुरुआत हो जाती है उन्हें वृद्धा कहने की :) देखते हैं कुछ उदाहरण...

  • सबसे पहले बात करते हैं ब्युटीशियन्स की---उनका कहना है कि २०-२५ साल की उम्र से त्वचा अपनी रौनक खोने लगती है,इसलिए खास देखभाल की जरूरत पड़ती...मतलब आप वृद्धा हो चलीं:)
  • गाइनोकोलौजिस्ट का कहना है---३० वर्ष की उम्र के बाद संतानोत्पत्ति घातक होती है...मतलब वृद्धा:)
  • ४० साल के बाद महिलाओं में कैल्सियम और आयरन की कमी होने लगती है, इसके अलावा इस उम्र के बाद रेग्युलर चेकअप जरूरी हो जाता है...बुढ़ापे की राह पर:)
  • अपने बच्चों की हर डिमान्ड पर चकरी की तरह नाचने वाली माँ जब प्रथम बार यह कहती है"रुको थोड़ी देर, उठती हूँ", झट से बच्चे डिक्लेयर कर देते हैं--माँ तो बूढ़ी हो गई:)
  • एक महिला तब चौंक पड़ती है जब बालों में पहली सफेदी दिखती है--वह मन को तैयार करने लगती है कि उसकी उम्र हो गई:)
  • एक ८५ वर्ष की वृद्धा अपनी ६० वर्ष की बहू या बेटी को वृद्धा नहीं मानती और उससे उसी सेवा की अपेक्षा करती है जो वह ३० की उम्र में किया करती थी...है न अच्छी बात:)
  • सरकार ने रिटायरमेन्ट की उम्र अपनी-अपनी जौब और प्रांत के अनुसार ५८--६०--६२ रखी है...मतलब उसके बाद गीता का पाठ करो :) .... तो आखिर बुढ़ापे की उम्र क्या है? अपने जीवन के ६०--६५ बसंत देख चुकीं ब्लौगर दीदियों के लिए मेरे मन मे बहुत सम्मान है क्योंकि वे कम्प्यूटर का बखूबी इस्तेमाल करके हमें रास्ता दिखाती हैं... उन्हें मेरा नमन तो अब मान ही लीजिए...बुढ़ापा की कोई निश्चित उम्र नहीं सरकार ने सीनियर सिटिजन के लिए क्या उम्र निश्चित किया है ?


ऋता शेखर 'मधु'

ऋतुराज को आना पड़ा है - ऋता शेखर 'मधु'

फिर वाटिका चहकी खुशी से,खिल उठे परिजात हैं।
मदहोशियाँ फैलीं फ़िजाँ में, शोखियाँ दिन रात हैं।।
बारात भँवरों की सजी है, तितलियों के साथ में।
ऋतुराज को आना पड़ा है, बात है कुछ बात में ।१। 

थी नार नखरीली बहुत, पर, प्रीत से प्रेरित हुई - ऋता शेखर 'मधु'

ऋता शेखर 'मधु'
इंसान अगर मन में ठान ले तो क्या नहीं कर सकता.....!!! ऋता शेखर 'मधु' जी ने इस का उदाहरण हमारे सामने पेश किया है। समस्या-पूर्ति मंच द्वारा छंद साहित्य सेवा स्वरूप आयोजनों की शुरुआत के वक़्त से ही बहुतेरे कह रहे थे "भाई ये तो बड़ा ही मुश्किल है, हम से न होगा" - बट - ऋता जी ने समस्या पूर्ति मंच पर की कवियों / कवयित्रियों द्वारा दी गई प्रस्तुतियों को पढ़-पढ़ कर और करीब एक महीने तक अथक परिश्रम कर के हरिगीतिका छंद लिखना सीखा है। हिन्दी हाइगा और मधुर गुंजन नामक दो ब्लोग चलाने वाली ऋता जी से परिचय अंतर्जाल पर ही हुआ है। आइये पढ़ते हैं उन के हरिगीतिका छंद:-