फोकट में भन्नाय रए हौ - हत का ऐ।
खुद्द'इ गाल बजाय रए हौ - हत का ऐ॥
खुद्द'इ गाल बजाय रए हौ - हत का ऐ॥
ज्ञानि'न कों भरमाय रए हौ - हत का ऐ।
घी कों तेल बताय रए हौ - हत का ऐ॥
घी कों तेल बताय रए हौ - हत का ऐ॥
किसमत सों हीरा पायौ सो फेंक दियौ।
मोति'न पै मगराय रए हौ - हत का ऐ॥
मोति'न पै मगराय रए हौ - हत का ऐ॥
सैमइ कों तौ देखत ही म्हों फेरत हौ।
चख-चख मैगी खाय रए हौ - हत का ऐ॥
चख-चख मैगी खाय रए हौ - हत का ऐ॥
बाहर बोलत हौ रोटि'न के लाले हैं।
भीतर पाग पगाय रए हौ - हत का ऐ॥
भीतर पाग पगाय रए हौ - हत का ऐ॥
जा कों देखत उलटी आवत हैं, ता कों।
जमना में पधराय रए हौ - हत का ऐ॥
जमना में पधराय रए हौ - हत का ऐ॥
गोवरधन की महिमा हू बिसराय दई।
सपरेटा चढवाय रए हौ - हत का ऐ॥
सपरेटा चढवाय रए हौ - हत का ऐ॥
जहँ तुलसी कौ राज रह्यौ उन कुंज'न में।
कंकरीट बिछवाय रए हौ - हत का ऐ॥
कंकरीट बिछवाय रए हौ - हत का ऐ॥
लक्ष्मी, काली, दुर्गा मैया के भगतौ।
बेटि'न कों बिदराय रए हौ - हत का ऐ॥
बेटि'न कों बिदराय रए हौ - हत का ऐ॥
गैया कों मैया मानौ हौ तौ फिर चों।
कट्टीघर खुलवाय रए हौ - हत का ऐ॥
कट्टीघर खुलवाय रए हौ - हत का ऐ॥
ऐ 'नवीन' जी हम कों तौ बस यै बतलाउ।
विजया कब छनवाय रए हौ - हत का ऐ॥
विजया कब छनवाय रए हौ - हत का ऐ॥
नवीन सी. चतुर्वेदी
ब्रज गजल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें