सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
पिछले दिनों ‘गौना भला शीत का’ पर काफी ज्ञान वर्धक व उपयोगी चर्चा हुई| पोस्ट से ज्यादा जानकारियाँ टिप्पणियों के माध्यम से प्राप्त हुईं, जिस से साबित हुआ कि इस आयोजन से जुड़े सरस्वती उपासक छंदों के प्रति वाकई गंभीर हैं|
घनाक्षरी का शाब्दिक अर्थ
बात शुरू हुई घनाक्षरी से| हंसराज ‘सुज्ञ’ भाई की जिज्ञासा “घनाक्षरी का शाब्दिक अर्थ क्या है?” पर आदरणीय संजीव वर्मा आचार्य ‘सलिल’ जी ने जो उत्तर दिया, यहाँ एक बार फिर दोहराते हैं:-
- घनाक्षरी के सस्वर गायन से मेघ-गर्जन की सी अनुभूति होती है|
- घनाक्षरी में शब्दों का सघन संगुफन (बुनाव) होता है जिससे सकल छंद एक इकाई प्रतीत होता है|
- घन जिस पर पड़े उसका दमन कर देता है, घनाक्षरी भी श्रोता/पाठक के मन पर छा कर उसे अपने अनुकूल बना लेती है|
- घनाक्षरी यानि वर्णों / अक्षरों की बारम्बारता| यथा, हर चरण में १६+१५=३१ या कि ८+८+८+७=३१ वर्ण / अक्षर|
मनहर कवित्त और घनाक्षरी
राजेन्द्र भाई ‘स्वर्णकार’ जी ने मनहर कवित्त के बारे में ध्यानाकर्षित किया| हमने भी बचपन में इसे ‘कवित्त’ के रूप में ही सुना, जाना और पहिचाना| बाद में ‘देव’ और ‘रूप’ वाले भेद भी सामने आए| कालांतर में हमने देखा कि लोग इसे घनाक्षरी के रूप में न सिर्फ स्वीकार कर चुके हैं, बल्कि इस पर बड़ी तादाद में रचनाएँ भी आ रही हैं| सोम ठाकुर व कविता किरण जैसे तमाम साहित्य प्रेमियों ने इस छंद पर लिखा है, और लिख रहे हैं|
इस तरह के छंदों के कई प्रकार हैं, उन्हें भविष्य के लिए आरक्षित रख कर, फिलहाल हम सर्व ज्ञात प्रारूप को ही लेते हैं|
आवृत्ति
सभी तरह के उदाहरण मिलते हैं| और जैसा कि सलिल जी ने भी इंगित किया, रचनाधर्मी अपनी सुविधा के अनुसार ‘घन’ का चुनाव करते हैं| शुद्ध रूप ८+८+८+७ = ३१ अक्षर वाला ही है, परन्तु नए पुराने रचनाधर्मियों ने इसे १६+१५=३१ वाले प्रारूप में भी लिखा है| कहीं कहीं १६+१५=३१ अक्षर वाले विधान में ऊपर की पंक्ति को नीचे की पंक्ति से जोड़ने के उदाहरण भी मिलते हैं| पर अग्रजों का मत है कि इस से बचना ही श्रेयस्कर है| उदाहरण ‘ग्वाल’ कवि जी के एक छंद से:-
जिस का जितेक साल भर में ख़रच, तिस्से-
चाहिए तौ दूना, पै, सवाया तौ कमा रहै|
हूरिया परी सी नूर नाजनी सहूर वारी,
हाजिर हमेश होंय, तौ दिल थमा रहै|
‘ग्वाल’ कवि साहब कमाल इल्म सो’बत हो
याद में ग़ुसैंया की हमेश बिरमा रहै|
खाने को हमा रहै, ना काहू की तमा रहै, जो –
गाँठ में जमा रहै, तौ हाजिर जमा रहै||
उपरोक्त छंद के पहले और आखिरी चरण में ऊपर की पंक्ति को नीचे की पंक्ति से जोड़ा गया है, अंडरलाइन वाले हिस्सों पर ध्यान दीजिएगा| इसी से बचने की सलाह देते हैं विद्वतजन| हालांकि, साथ में यह भी कहा जाता है कि कथ्य निर्वाह के लिए इसे बस अपवाद स्वरूप ही लिया जाना चाहिए|
चरण के अंत में गुरु या लघु
एक और बात घनाक्षरी के अंत में गुरु और लघु के विधान बाबत| साधारणतया देखा गया है कि ३१ अक्षरों वाले छंद के अंत में गुरु आता है और ३२ अक्षरों वाले छंद के अंत में लघु| परंतु, जैसा कि हम पहले भी लिख चुके हैं कि इस वृहद चर्चा को न लेते हुये फिलहाल हम सर्व साधारण में प्रचलित चरणांत गुरु अक्षर के साथ ३१ अक्षर वाले छंद पर ही काम करते हैं|
औडियो क्लिप
औडियो क्लिप को यहाँ अपलोड करना नहीं जम रहा| इसलिए तिलक राज कपूर जी एवं कपिल दत्त की आवाज में रिकॉर्ड किए गए दो घनाक्षरी कवित्तों की लिंक यहाँ नीचे दे रहे हैं| पहले आप को इन पर क्लिक करनी है| फिर ये download होने लगेंगे, यही कोई एक मिनट का मसला समझो| उस के बाद download हो चुकी लिंक पर क्लिक कीजिएगा - हाँ स्पीकर तो on रहेगा ही| यदि उसी समय ब्लॉग पर की "सरस्वती वंदना" भी शुरू हो तो एक बारगी उसे stop कर दीजिएगा, या तो उस के पूरे होने की प्रतीक्षा कर लीजिएगा|
तिलक भाई द्वारा गाई गई रचना श्री चिराग जैन जी की है, और कपिल द्वारा गाई गई - मेरी|
चौथी समस्या पूर्ति की घोषणा
- छन्द - घनाक्षरी छन्द
- चरण - चार चरण
- तुकान्त - हर चरण के अंत में तुकान्त समान
- चरणान्त - प्रत्येक चरण के अंत में गुरु / दीर्घ अनिवार्य
- आवृत्ति - १६+१५=३१ अक्षर या ८+८+८+७=३१ अक्षर [एक छन्द में कोई भी एक आवृत्ति]
- पंक्ति - समस्या पूर्ति की पंक्ति को छन्द के किसी भी चरण के उत्तरार्ध / बाद वाले हिस्से में में ले सकते हैं
अब आती है बारी समस्या पूर्ति की पंक्ति की| पिछली बार की तरह हम इस बार भी तीन पंक्तियाँ ले रहे हैं:-
[१]
राजनीति का आखाडा घर न बनाइये
[तुकांत – बनाइये / आइए / न जाइए इत्यादि| नीतिगत]
[२]
देख तेरी सुन्दरता, चाँद भी लजाया है
[तुकांत – आया है / लिखवाया है इत्यादि| श्रंगार रस]
[३]
बन्ने [बन्नो] का बदन जैसे कुतब मीनार है
[तुकांत – सार है / पुकार है इत्यादि| बन्ने या बन्नो में से कोई एक शब्द ही लें| हास्य रस]
नीतिगत, श्रंगार रस और हास्य रस को केंद्र में रख कर ये तीन पंक्तियाँ ली गई हैं| आप किसी एक पंक्ति को ले कर एक छंद या एक से अधिक पंक्ति लेते हुए एक से अधिक छंद प्रस्तुत कीजिएगा| याद रहे एक पंक्ति पर सिर्फ एक ही छंद देना है|
एक और बात - इस छंद में अनुप्रास अलंकार का बहुत सुंदर प्रयोग होता है| हमारी अपेक्षा रहेगी कि कुछ छंद अनुप्रास अलंकार के साथ भी आयें| हमें नहीं लगता कि आप लोगों को इस बारे में बताने की आवश्यकता है,
फिर भी नए मित्रों के लिए –
जब कई शब्दों में एक जैसे अक्षर बार बार आते हैं तो वहाँ अनुप्रास अलंकार का आभास होता है – उदाहरण के लिए – चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चाँदी की चम्मच से चाँदनी चौक में चटनी चटाई| या फिर यूँ भी – चारु चंद्र की चंचल किरणें – या फिर - जन रंजन मंजन दनुज, मनुज रूप सुर भूप – वगैरह, वगैरह| अनुप्रास अलंकार के ऊपर सलिल जी का साहित्य शिल्पी पर एक विस्तृत आलेख है, जिसे पढ़ने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं|
इस तरह छंदों के साथ साथ रस और अलंकार का भी समावेश होता जाएगा| एक साथ बहुत कुछ करने से बेहतर होगा कि धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा करें, ताकि सुगमता से हम उसे आत्म सात भी कर सकें|
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विशेष पंक्ति की घोषणा
कुछ साथियों का मंतव्य था कि चौथी समस्या पूर्ति से कुछ नए बदलाव आने चाहिए| उसी क्रम में छन्द-रस-अलंकार का संगम करने के साथ साथ हम एक विशेष पंक्ति की घोषणा भी शुरू कर रहे हैं|जिन्हें रुचि हो, वो इस पंक्ति पर भी छंद प्रस्तुत कर सकते हैं : -
"नार बिन चले ना"
ये नारि नहीं नार है|तुकान्त - ‘चले ना”| अलंकार श्लेष| रस - आपकी मर्जी के मुताबिक| यह वाक्यांश छंद के किसी भी चरण के चतुर्थांश में आ सकता है| पुन: निवेदन - पूर्ण छंद श्लेष अलंकार पर आधारित होना चाहिए|
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ये कोई २- ५ हजार या २ – ५ सौ साल पहले की बात नहीं है| चंद दशकों पहले तक छंद हमारे जन-जीवन का अभिन्न अंग थे – कारण तब के समय के अनुसार, तब की भाषा में, तब के विषयों पर छंद रचना होती थी| तो क्यूँ न हम उन्हीं प्रारूपों को प्रयोग में लाते हुए आधुनिक संदर्भों को लक्ष्य में रख कर छंद रचना करें|
तो बस फिर क्या है, उठाइए अपनी अपनी लेखनी, और प्रस्तुत कीजिये अपना अपना सर्वोत्तम| इस आयोजन संबन्धित शंकाएँ तथा आप के छंद भेजिएगा navincchaturvedi@gmail.com पर| हमें विश्वास है इस बार के आयोजन को आप लोग और भी नई ऊँचाइयाँ प्रदान करेंगे|
जय माँ शारदे|