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नज़रें लड़ीं जिससे, वही, भैया बता के चल पडी

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन


मंच के सभी कुटुम्बियों को एक दूसरे की तरफ़ से 
दीप अवलि 
की हार्दिक शुभकामनाएँ



हरिगीतिका छंद पर आधारित इस आयोजन में आज हम हास्य आधारित छंद पढेंगे| क्यूँ भाई, हास्य रस सिर्फ होली पर ही होता है क्या? दिवाली पर भी तो हँस सकते हैं हम.....................

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - रात भर बदली की ओट से निहारता है

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन 

समस्या पूर्ति मंच द्वारा घनाक्षरी छन्द पर आयोजित इस चौथी समस्या पूर्ति के दसवें चक्र में एक बार फिर से एक नौजवान कवि को पढ़ते हैं हम लोग| मूल रूप से मथुरा के परन्तु वर्तमान में अहमदाबाद में रहने वाले शेखर चतुर्वेदी को काव्य विरासत में मिला है|



:- शेखर चतुर्वेदी 


प्यार-त्याग- विश्वास का,  सदा ही बसेरा यहाँ,
आतमीयता की फुलवारी ये बचाइए|

मिल जुल कर साथ-साथ प्यार बाँटिये जी,
अहम का मैल कभी, दिल में न लाइए|

छोटों को दुलार और, बड़ों का सम्मान करें,
होकर सजग रिश्ते-नातों को निभाइए|

कहीं अनमोल रिश्ते-नाते नहीं छुट जाएँ,
राजनीति का अखाडा, घर न बनाइये||

[संसार को देखने और समझने की उम्र में इस तरह का छन्द कवि के संस्कारी 
होने का पुख्ता सुबूत है|  'आत्मीयता की फुलवारी' के माध्यम से 
कवि अपनी बात कहने में सफल है]


नयना कटार जैसे, अधर अंगार जैसे,
कंचन बदन  तेरी कामिनी सी काया है|

मिसरी की डली जैसी बातें मीठी मीठी करे,
शब्द जाल फ़ेंक तूने मन भरमाया है|

मुसकान दामिनी की तरह प्रहार करे,
हाय दिल घायल ने जग बिसराया है|

रात भर बदली की ओट से निहारता है,
देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||

["रात भर बदली की ओट से" वाह वाह वाह क्या कल्पना है भाई!!!!! समस्या पूर्ति
 की पंक्ति को पूर्ण रूप से सार्थक करता हुआ यह  पूर्वार्ध भाग तो कमाल
 का है भाई| छन्द के इस हिस्से ने तो आपके दादाजी और हमारे
 गुरूजी वाले दिनों की याद दिला दी]


लिलिपुट की हाईट, कोयला बदन तेरा,
परियों का फिर भी तुझे तो इंतज़ार है|

नज़र से बचने को आटे का लगाए टीका,
बच्चे डर जाएँ ऐसा मुख पे निखार है|

कैसी घड़ी आज आई, बना है तू भी जमाई,
बन्नो से नैना मिलाने को तू बेकरार है|

नज़र मिलेगी कैसे ? पिद्दी सा बदन तेरा,
बन्नो का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||

['गुलिवर्स में लिलिपुट' को ढूँढने चला गया था मैं तो, पर, बाद में पल्ले पडा -
लिलिपुट के लोगों के बीच फंसे गुलिवर्स की नहीं, फिल्मों-सीरियलों में
 काम करने वाले सज्जन 'लिलिपुट' की बात कर रहे हैं आप| पिद्दी से 
बदन वाले आप के बन्ने को वाकई आटे के टीके की जरुरत है]

ये घनाक्षरी / कवित्त छन्द वाला आयोजन तो आप लोगों ने जबरदस्त पोपुलर कर दिया भाई| सुनने में आया है कि अंतरजाल पर छंदों को ले कर कुछ और भी जगहों पर रचनात्मक कार्य शुरू होने वाले हैं| ये तो बड़ी ही खुशी की बात है भाई :० | अग्रजों द्वारा बरसों से की जा रही कठिन तपस्या के सुपरिणाम सामने आने लगे हैं - जय हो|

रस-छन्द-अलंकार के सागर में गोते लगाने के रसिक - आप लोग, शेखर के छन्दों का आनंद लें, अपनी राय जाहिर करें तब तक हम हम अगली पोस्ट की तैयारी करते हैं| दरअसल जरुरत हफ्ते में तीन पोस्ट डालने की महसूस हो रही है, परन्तु अन्य कार्यों की व्यस्तातावश दो ही हो पा रही हैं|


जय माँ शारदे! 

तीसरी समस्या पूर्ति - कुण्डलिया - दूसरी किश्त

सभी साहित्य रसिकों का एक बार फिर से सादर अभिवादन| कुंडली छंद तो वाकई सब की पहली पसंद लग रहा है| कई सारे रचनाधर्मियों ने अपने कुण्डलिया छंद भेजे हैं| उन में से कुछ ने उन छन्दों को बदलने की खातिर रुकने के लिए आज्ञा भी दी है|

नई पीढी का इस आयोजन से जुड़ना और जुड़े रहना हमारे लिए गर्व की बात है| आइये आज पढ़ते हैं दो नौजवान कवियों को| नया खून है तो नया जोश और नयी सोच ले कर आये हैं ये दौनों साहित्य रसिक|
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[१]
सुंदरियाँ जब जब हँसैं, बिजुरी भी शरमाय|
देख गाल की लालिमा, ईंट खाक हुइ जाय||
ईंट खाक हुइ जाय, आग लागै छानी में|
मछरी सब मरि जाँय, खेल जो लें पानी में|
कह ‘सज्जन’ कविराय, चलें जियरा पर अरियाँ|
नागिन सी लहरायँ, कमर जब भी सुंदरियाँ||
[मार डाला पापड वाले को यार धर्मेन्द्र भाई]

[२]
भारत की चिरकाल से, बड़ी अनूठी बात|
दुश्मन खुद ही मिट गए, काम न आई घात||
काम न आई घात, पाक हो चाहे लंका|
बजा दिया है आज, जगत में अपना डंका|
कह ‘सज्जन’ कविराय अहिंसा से सब हारत|
करते जाओ कर्म, सदा सिखलाता भारत||
[सौ फीसदी सही है बन्धु]

[३]
कम्प्यूटर का हाल भी, घरवाली सा यार|
दोनों ही चाहें समझ, दोनों चाहें प्यार||
दोनों चाहें प्यार बात दुनिया ना समझी|
दिखा रहे सब रोज यहाँ, अपनी नासमझी|
कह सज्जन कविराय, समझ औ’ प्रेम रहें गर|
सुख दुख में दें साथ, सदा भार्या कम्प्यूटर||
[ऐसा क्या!!!!!!!!!]
:- धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'
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[१]
सुंदरियाँ बहका रही, फेंक रूप का जाल |
इनके जलवे देख कर लोग होंय खुशहाल||
लोग होंय खुशहाल, वाह रे क्या माया है |
देह दिखा कर नाम कमाना रँग लाया है ||
कह "शेखर" कविराय, हुस्न छलकातीं परियाँ|
इंजन आयल बेच रहीं देखो सुंदरियाँ ||
[सुंदरियाँ और इंजन ओयल की सेल........भाई वाह]

[२]
भारत मेरा देश है इस पर मुझको नाज़ |
सबही ने मिलकर करी, इसकी दुर्गति आज ||
इसकी दुर्गति आज, हो रही संस्कृति धूमिल |
लुटती हैं मरजाद , देखकर तडपे है दिल ||
कह "शेखर" कविराय, बचा लो मित्र विरासत |
फिर से हो सिरमौर, विश्व में अपना भारत ||
[आमीन]
:- शेखर चतुर्वेदी
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दौनों कवि बन्धु बहुत बहुत बधाई के पात्र हैं| आप सभी से प्रार्थना है कि आशीर्वाद देते हुए इन की हौसला अफजाई करें| ये ही वो पीढ़ी है जो छन्दों की विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुचायेगी|

एक और ख़ुशी की बात है कि इस मंच पर प्रकाशित रचनाओं के पाठकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की जा रही है| कितना अच्छा हो - यदि पाठक वृन्द अपने टिप्पणी रूपी पुष्पों की वर्षा भी करें| आप सभी इन पांच कुंडली छन्दों का अनंद लीजिये, तब तक हम अगली पोस्ट की तैयारी करते हैं| इस आयोजन संबन्धित अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें|

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - शेखर चतुर्वेदी जी [८] और मृत्युंजय जी [९]

समस्त सम्माननीय साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं|

श्री शेखर चतुर्वेदी जी:-

साहित्य वारिधि स्व. डॉ शंकरलाल चतुर्वेदी "सुधाकर" जी के पौत्र, भाई शेखर जी युवा कवि हैं| वर्तमान में अहमदाबाद में कार्य रत हैं| संस्कारों से सुसज्जित उनकी रचना पढ़ते हैं पहले:-

मुझको जग में लाने वाले |
दुनिया अजब दिखने वाले |
उँगली थाम चलाने वाले |
अच्छा बुरा बताने वाले |१|

मेरी दुनिया है तुमसे ही |
प्यारी बगिया हैं तुमसे ही |
इस मूरत को गढ़ा है तुमने|
अनुग्रह किया बड़ा है तुमने|२|

मुझसे प्यार छुपाते हो तुम |
दिल में मुझे बसाते हो तुम |
सर पर कर जब रखते हो तुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|

भाई श्री मृत्युंजय जी:-

भाई मृत्युंजय जी ने ब्रज से जुड़ी चौपाइयाँ भेजी हैं| उन से संपर्क न हो पाने के कारण, उन के बारे में विवरण देना सम्‍भव नहीं हो पा रहा| आप लोग उन के ब्लॉग http://mrityubodh.blogspot.com/ पर उन से मिल सकते हैं| तो आइए पढ़ते हैं उनकी चौपाइयाँ|

श्याम वर्ण, माथे पर टोपी|
नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी|
हरित वस्त्र आभूषण पूरा|
ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा|१|

स्नेह मिलत छन-कती कड़ाही|
भाजा आस लार टपकाही|
नासा रसना मिटत पियासी|
रस भीगी ज्यों होत कपासी|२|

बेगुन कहें बेगि नहीं आवो|
मिलत नित्यही बाद बढावो|
घंटी बजे टड़क टुम टुम टम|
कितने अच्छे लागत हौ तुम|३|

अगली किश्त में २ प्रस्तुतियों के साथ इस पहली समस्या पूर्ति का समापन करेंगे और साथ ही घोषणा करेंगे अगली समस्या पूर्ति की| आप सभी के सहयोग के लिए बहुत बहुत आभार|