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तीसरी समस्या पूर्ति - कुण्डलिया - पहली किश्त

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
और

आप सभी के सक्रिय सहयोग से आज हम पदार्पण कर रहे हैं कुण्डलिया छंद पर केन्द्रित तीसरी समस्या पूर्ति के पहले चरण में| अग्रजों की राय का सुपरिणाम ये हुआ कि आशा के अनुरूप कई रचनाधर्मियों ने इस छंद के प्रति अपना रुझान व्यक्त किया है| कई सारी रचनाएँ प्राप्त हुई हैं, और कई सारी रचनाएँ मार्ग में हैं|

आइये श्री गणेश करते हैं भाई महेंद्र वर्मा जी के कुण्डलिया छंदों के साथ:-
कम्प्यूटर इस दौर की, सबसे अद्भुत खोज ।
करता सबका काम यह, गंगू हो या भोज ।।
गंगू हो या भोज, सभी हैं निर्भर इस पर ।
यत्र तत्र है वास, मकां हो या हो दफ्तर ।
कभी शिष्य बन जाय, कभी बन जाता ट्यूटर ।
सुख दुख का है साथ, बिरादर है कम्प्यूटर ।।

भारत माता की सुनो, महिमा अपरम्पार ।
इसके आंचल से बहे, गंग जमुन की धार ।।
गंग जमुन की धार, अचल नगराज हिमाला ।
मंदिर मस्जिद संग, खड़े गुरुद्वार शिवाला ।।
विश्वविजेता जान, सकल जन जन की ताकत ।
अभिनंदन कर आज, ध न्य है अनुपम भारत ।।

और इस के बाद पढ़ते हैं तिलक राज कपूर जी की कुण्डलिया

सुन्‍दरियॉं करने लगीं, कम्‍प्‍यूटर से वार|
अधरों से छुरियॉं चलें, नैनन चले कटार||
नैनन चले कटार, बहुत है विपदा भारी|
भारत को ना भाय, लगी ऐसी बीमारी|
कह 'राही' कविराय, नारियॉं बनीं मछरियॉं|
कम वस्‍त्रों में छाय, रहीं बन कर सुंदरियाँ||


और इस खेप के तीसरे और आखिरी कवि समीर लाल जी

भारत मेरा देश है, इस पर मुझको नाज़|
चुनी हुई सरकार में, भ्रष्टन का है राज||
भ्रष्टन का है राज सभी मिल कर के लूटें|
पकड़ जाँय औ तुर्त, सभी बाइज़्ज़त छूटें|
कहत कवी शरमाय, झूठ में इन्हें महारत|
हालत ऐसी मगर, देश ऊँचा है भारत||

कंप्यूटर के सामने, बैठो पाँव पसार|
खबरें पढ़िए, पत्नि से - आँख छुपा कर यार|
आँख छुपा कर यार, मांग टी, आहें भरिये|
ताकि कहे वो बस्स, और अब काम न करिए|
कह 'समीर' कविराय, सफल भइये ये मंतर|
पूँजो उस के पाँव, दिया जिसने कंप्यूटर||


कवियों की फोटो यथावत कॉपी पेस्ट किए हैं| ज्यादा जानकारी न होने की वजह से आकार वगैरह में कुछ खास नहीं कर पाया हूँ| शीघ्र मिलेंगे दूसरी खेप की कुंडलियों के साथ| तब तक आप इन छंदों का आनंद लें और इन पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी रुपिन पुष्पों की वर्षा करें|