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माँ सरस्वती के चालीस नाम वाली सरस्वती वन्दना - नवीन

हे मरालासन्न वीणा-वादिनी माँ शारदे।

वागदेवीभारतीवर-दायिनी माँ शारदे॥

 

श्वेत पद्मासन विराजितवैष्णवी माँ- शारदे।

हे प्रजापति की सुताशतरूपिणी माँ शारदे।।

 

चंद्रिकासुर-वंदिताजग-वंदितावागेश्वरी।

कामरूपाचंद्रवदनामालिनी माँ शारदे॥

 

अम्बिकाशुभदासुभद्राचित्रमाल्यविभूषिता।

शुक्लवर्णाबुद्धिदासौदामिनी माँ शारदे॥

 

दिव्य-अंगापीतविमलारस-मयीभामाशिवा।

रक्त-मध्याविंध्यवासागोमती माँ शारदे॥

 

पद्म-निलयापद्म-नेत्रीरक्तबीजनिहंत्रिणी।

धूम्रलोचनमर्दनाअघ-नासिनी माँ- शारदे॥

 

हे महाभोगापरापथभ्रष्ट जग सन्तप्त है।

वृष्टि कीजै प्रेम कीअनुराग की माँ शारदे॥

 

नवीन सी चतुर्वेदी

आदमी खुद आदमी की टाँग खींचे जा रहा

बात आदम काल की, या बात फिर होवे नई।
वज़्ह है हर बात की,  हर - वज़्ह के मंज़र कई।।

खुद यहाँ  इंसान रुचि अनुसार साँचों में ढले।
किन्तु और परंतु के आधार पर जीवन चले।१।


आदमी खुद चुन रहा हरपल स्वयं की राह है।
किस तरह बोलें भला यह आदमी गुमराह है।।

श्रेष्ठतम-सर्वोच्च निज अस्तित्व को बतला रहा।
आदमी खुद आदमी की टाँग खींचे जा रहा।२।

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गीतिका छंद

14+12=26 मात्रा वाला मात्रिक छंद
कुल चार चरण
प्रत्येक चरण के अंत में लघु गुरु 
अलिखित रूप से इस छंद की लय 'ला ल ला ला' के अनुरूप चलती है 
यहाँ इस लय वाले 'ला' का अर्थ गुरु अक्षर नहीं 
लय वाले इस 'ला' की जगह 2 मात्रा भार वाला 1 गुरु अक्षर आ सकता है 
या 1-1 मात्रा भार वाले दो लघु अक्षर भी आ सकते हैं
कुछ कवि इस लय को मान्यता न भी दें, 
परंतु इस लय के साथ ही इस छंद की गेयता श्रवणीय लगती है

उदाहरण:-
हे प्रभों आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हम से कीजिये