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त्रिलोक सिंह ठकुरेला के कुण्डलिया छन्द

 


कविता जीवन सत्व हैकविता है रसधार ।

अलंकार,रस,छंद में, भाव खड़े साकार ।।

भाव खड़े साकार, कल्पना जाग्रत  होती ।

कर देते धनवान, शब्द के उत्तम  मोती । 

'ठकुरेला' कविराय, हरे तम जैसे सविता ।

कुण्डलिया - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

चलते  चलते एक  दिन ,तट पर  लगती नाव।
मिल जाता  है सब  उसे , हो जिसके  मन  चाव ।।
हो जिसके मन चाव , कोशिशें सफल  करातीं ।
लगे  रहो अविराम , सभी निधि दौड़ी आतीं ।
'ठकुरेला' कविराय ,आलसी निज  कर  मलते ।
पा लेते  गंतव्य ,  सुधीजन चलते  चलते ।।

कामी भजे शरीर को  , लोभी भजता दाम ।
पर  उसका कल्याण  है , जो भज  लेता राम ।।
जो भज  लेता राम ,दोष निज मन के  हरता ।
सुबह  शाम अविराम , काम परहित के  करता।
'ठकुरेला'  कविराय ,बनें  सच  के  अनुगामी।
सच का बेड़ा पार , तरे  अति  लोभी ,  कामी ।।

नहीं समझता मंदमति , समझाओ सौ  बार ।
मूरख से   पाला  पड़े , चुप   रहने में  सार ।।
चुप  रहने में  सार ,कठिन  इनको समझाना ।
जब भी जिद लें ठान , हारता सकल  ज़माना ।
'ठकुरेला' कविराय , समय  का  डंडा बजता ।
करो  कोशिशें लाख , मंदमति नहीं  समझता ।।

धन  की  है महिमा  अमित , सभी  समेटें अंक ।
पाकर   बौरायें   सभी , राजा  हो  या  रंक ।।
राजा हो या रंक , सभी  इस  धन पर  मरते ।
धन की खातिर लोग , न  जाने  क्या क्या  करते ।
'ठकुरेला' कविराय ,कामना यह  हर जन की ।
जीवन भर बरसात , रहे  उसके घर  धन की  ।।

दुविधा में जीवन कटे ,पास  न  हों  यदि  दाम ।
रूपया पैसे  से  जुटें , घर की चीज  तमाम ।।
घर की चीज तमाम ,दाम ही सब कुछ भैया ।
मेला लगे  उदास , न  हों यदि पास रुपैया ।
'ठकुरेला'  कविराय , दाम से मिलती सुविधा ।
बिना दाम  के  मीत ,जगत  में  सौ सौ दुविधा ।।

उपयोगी हैं साथियो ,जग की चीज तमाम ।
पर  यह दीगर बात है, कब, किससे हो काम ।।
कब , किससे हो काम , जरूरत  जब  पड़ जाये।
किसका क्या उपयोग , समझ में तब ही आये ।
'ठकुरेला' कविराय , जानते   ज्ञानी , योगी ।
कुछ  भी  नहीं असार , जगत  में  सब  उपयोगी ।।

पल पल जीवन जा रहा , कुछ तो कर शुभ काम।
जाना हाथ पसार कर ,  साथ न चले  छदाम ।।
साथ न चले  छदाम , दे  रहे  खुद हो  धोखा ।
चित्रगुप्त   के पास , कर्म   का  लेखा जोखा ।।
'ठकुरेला' कविराय ,छोड़िये सभी कपट , छल ।
काम करो जी नेक , जा रहा जीवन पल पल ।।

यह जीवन  है बाँसुरी ,  खाली खाली मीत ।
श्रम से  इसे  संवारिये , बजे  मधुर  संगीत ।।
बजे  मधुर  संगीत , ख़ुशी से सबको भर  दे ।
थिरकेँ सब  के पाँव , हृदय को झंकृत कर दे ।
'ठकुरेला' कविराय , महकने  लगता तन मन ।
श्रम  के  खिलें  प्रसून , मुस्कराता  यह  जीवन ।।

---   त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मो . 09460714267

कुण्डलिया छन्द 


साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को स्वर्ण -सम्मान

खगड़िया ( 8 - 9 मार्च 2014 )  सुपरिचित साहित्यकार और कुण्डलियाकार श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला  को उनके कुण्डलिया  संग्रह 'काव्यगन्धा ' के  लिए    हिन्दी भाषा साहित्य परिषद ,खगड़िया (बिहार ) द्वारा स्वर्ण सम्मान  से सम्मानित किया  गया है।    हिन्दी भाषा साहित्य परिषद  का  दो  दिवसीय 13 वां  महाधिवेशन ( फणीश्वर नाथ   रेणु  स्मृति पर्व )  का शुभारम्भ  खगड़िया के  कृष्णानगर  स्थित परिषद कार्यालय परिसर में झंडोतोलन और  दीप जलाकर हुआ।  मुख्य अतिथि श्यामल जी , अंग -माधुरी के  सम्पादक  डाँ.  नरेश पांडे चकोर ,डॉ सिद्धेश्वर काश्यप ने  दीप  जलाकर उदघाटन सत्र  का  आगाज किया। स्वागताध्यक्ष कविता परवाना ने  स्वागत भाषण पढ़ा। इस अवसर पर  कौशिकी (त्रैमासिकी )  के  रेणु  अंक का  विमोचन   डाँ.  नरेश पांडे चकोर ने  किया। द्वितीय सत्र में  कवि  सम्मलेन  का आयोजन किया गया ,जिसमे कई कवियों और  गजलकारों  ने  अपनी प्रस्तुतियों  से  श्रोताओं का  मन  मोहा। 

9   मार्च  को तृतीय सत्र में  एकांकी प्रदर्शन  और  काव्यपाठ किया गया। चतुर्थ सत्र में सम्मान समारोह के  मध्य श्री त्रिलोक  सिंह ठकुरेला को  डॉ.रामवली परवाना  स्वर्ण स्मृति सम्मान तथा सर्वश्री चन्द्रिका ठाकुर  देशदीप , कृपा शंकर शर्मा 'अचूक ' , अवधेश  कुमार  मिश्र ,अमित  कुमार लाडी , डॉ.  जी. पी. शर्मा , हातिम  जावेद ,अवधेश्वर  प्रसाद  सिंह , संजीव  सौरभ  हीरा प्रसाद हरेन्द्र , रमण सीही , डॉ. राजेन्द्र प्रसाद , रामदेव पंडित राजा , कविता परवाना , कैलाश झा किंकर को  रजत स्मृति सम्मान  से  सम्मानित किया गया। अंत में  परिषद सचिव  श्री नन्देश निर्मल ने  सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। 

नन्देश निर्मल 
सचिव     
हिन्दी भाषा साहित्य परिषद ,खगड़िया (बिहार )

त्रिलोक सिंह ठकुरेला - सम्पर्क - 09460714267