अशोक अंजुम
तुम तौ खाओ दूध - मलाई जी
भरिकै
हमकों खाय रई महँगाई जी
भरिकै
कल कूँ सिगरे सिंथेटिक ही
पीओगे
गैया काटें रोज कसाई जी
भरिकै
नेता - अफसर लूटि रए हैं
जनता कूँ
चोर-चोर मौसेरे भाई, जी भरिकै
होय न सत्यानास जब तलक
भारत कौ
हिन्दू-मुस्लिम करौ लड़ाई
जी भरिकै
जे छिछोरगर्दी तुमकूँ लै
ही डूबी
चौराहे पै भई पिटाई जी
भरिकै
वो आरक्षन पायकेँ अफसर बनि
बैठे
'अंजुम' तुमनें करी पढ़ाई जी भरिकै
छोरी भई सयानी भैया
घबरावेंं
कैसे बने कहानी भैया
घबरावेंं
सूखा परिगऔ अबकेँ कैसे बात
बने
धान माँगते पानी भैया
घबरावेंं
ठाकुर जी धमकावे करजा
लौटाओ
वरना भुगतो हानी भैया
घबरावेंं
बैल सूखि कैं काँटो है रए, कहा करेंं
मिलै न चारो - पानी भैया
घबरावेंं
छोरा निकरे महानिकम्मे
दोनों ई
बिदकें देख जनानी भैया
घबरावेंं
गाल बजाबें नेता सिगरे आ-आ
केँ
रोबै कुतिया कानी भैया
घबरावेंं
खेत रखोयै गिरवी वो पुरखन
बारो
बिक ना जाय निसानी भैया
घबरावेंं
खों-खों खों-खों करै डोकरी
सब चाहैं अब मरै डोकरी
जबते खटिया पै पसरी है
सब बहुयन ते डरै डोकरी
मन ललचावै मीठो खाऊँ
घुट-घुट चारौ चरै डोकरी
सांसन कौ घट भयौ न खाली
कब झन्झट ते तरै डोकरी
जानें कौन छूत की रोगन
बच्चन ते रह परै डोकरी
जीवन सब गुर्राय कैं काटौ
ब्याज वाई कौ भरै डोकरी
गाल बजा मत चुप्प परी रह
घाब हरे मत करै डोकरी
उन दोउन कौ नैन मटक्का
देखि कैं सिगरे हक्का
बक्का
मन की आस डूबती जाबै
उड़ि गए बादर, सूखै मक्का
रोज बढ़ रई यों आबादी
जाम हर तरफ है रयौ चक्का
सब सिर फोडैं दीवाली पै
बापू लाये नाय पटक्का
आरक्षन कौ टोनिक पीकैं
सूखौ दे तगड़े कूँ धक्का
घर में हैं रोटीन के लाले
बैद कहै कै खाऔ मुनक्का
जी घबराबै सोचि-सोचि कैं
रस्सा चौं लाये हैं कक्का
भरि रईं खूब उड़ान छोरियाँ
पढ़ - लिखि कैं
काटें सबके कान छोरियाँ पढ़
- लिखि कैं
अब छोरन ते आगे निकरी जाय
रहीं
हैं घर-भर की सान छोरियाँ
पढ़ - लिखि कैं
कहूँ उड़ाय रईं जे विमान ऊँचे - ऊँचे
कहूँ पै बोबैं धान छोरियाँ
पढ़ - लिखि कैं
छोरा उड़ि गये बालक-बच्चन
कूँ लै कैं
रक्खें अब तौ ध्यान
छोरियाँ पढ़ - लिखि कैं
जे दुनियाँ कूँ नयो उजालो
बाँटि रईं
छोड़ें नये निसान छोरियाँ
पढ़ - लिखि कैं
भैया सिगरे काटैं उमर
किराये पै
बनबाय रईं मकान छोरियाँ पढ़
- लिखि कैं
इन पै जोर-जुलम करिबौ अब
मुसकिल है
खोलै आज जुबान छोरियाँ पढ़
- लिखि कैं
इत्ते जादा मत इतराओ
नेताजी
सोच-समझ कैं गाल बजाओ
नेताजी
धूल नायं जो भगत सिंग के
पाँयन की
बाकूं भगत सिंग बतलाओ
नेताजी
राजनीत के कीचड़ में तुम
लिपट रए
रगड़-रगड़ कैं जाय छुड़ाओ
नेताजी
तुम जे सोचौ सब बकबास
सुनिंगे हम
भौत है गयौ अब रुकि जाओ
नेताजी
नई -नई छोरिन के चक्कर में
फसि कैं
मत पलीत मट्टी करवाओ
नेताजी
अशोक ‘अंजुम’
(अशोक
कुमार शर्मा)
9258779744
ब्रज गजल
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