सोरठा - दोहा गीत - संजीव वर्मा 'सलिल'

Sanjiv Verma Salil's profile photo
संजीव वर्मा 'सलिल'


सोरठा - दोहा गीत 
संबंधों की नाव 
*
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही। 
अनचाहा अलगाव,
नदी-नाव-पतवार में।। 
*
स्नेह-सरोवर सूखते,
बाकी गन्दी कीच। 
राजहंस परित्यक्त हैं,
पूजते कौए नीच।।
नहीं झील का चाव,
सिसक रहे पोखर दुखी।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
कुएँ - बावली में नहीं,
शेष रहा विश्वास। 
निर्झर आवारा हुआ,
भटके ले निश्वास।।
घाट घात कर मौन,
दादुर - पीड़ा अनकही। 
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
ताल - तलैया से जुदा,
देकर तीन तलाक। 
जलप्लावन ने कर दिया,
चैनो - अमन हलाक।।
गिरि खोदे, वन काट 
मानव ने आफत गही। 
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।। 
***



आदरणीय संजीव वर्मा सलिल जी पिंगलीय छंदों पर बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उपरोक्त गीत उन की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। प्रायोगिक तौर पर सलिल जी ने दोहा और सोरठा के शिल्प को इस्तेमाल करते हुये दोहा-सोरठा गीत रचा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.