लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ।
एक महत्वपूर्ण विषय पर स्वस्थ-विमर्श हेतु सभी साथियों से निवेदन।
पूरे देश में आज कल जहाँ एक तरफ़ भोजपुरी व अवधी को भाषाओं की सूची (आठवीं अनुसूची) में स्थान दिलवाने हेतु प्रयास चल रहे हैं वहीं दूसरी ओर कुछ विद्वान इस के विरोध में भी उठ खड़े हुये हैं।
जो पक्ष में हैं वह अपने अस्तित्व, अपने पुरखों की पहिचान को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। जो विपक्ष में हैं उन का कहना है कि अगर क्षेत्रीय भाषा-बोलियों को सूची में शामिल किया गया तो हिन्दी अपना दर्ज़ा खो देगी एवम् उस की जगह उर्दू ले लेगी।
मैं समझता रहा हूँ कि उर्दू भाषा या बोली न हो कर एक लहजा (pattern) है जो नस्तालीक़ (फ़ारसी स्क्रिप्ट) और देवनागरी के साथ-साथ रोमन में भी लिखी जाती है। यक़ीन जानिये इसे हिब्रू में भी लिखा जा सकता है। इसी तरह संस्कृत को भी बहुत पहले से नस्तालीक़ व रोमन आदि लिपियों में लिखा जाता रहा है।
मैं समझता रहा हूँ कि भले ही आजकल हिंगलिश लहजा (pattern) सर चढ कर बोल रहा है मगर यह एक स्वतन्त्र भाषा या बोली नहीं है - कम-अज़-कम अब तक तो नहीं ही है।
मैं समझता रहा हूँ कि ब्रजभाषा एक समय पूरे संसार की साहित्यिक भाषा रही है। मगर अफ़सोस आज ब्रजभाषा चर्चाओं में नहीं है। शायद समय को यही स्वीकार्य हो। शायद ब्रजभाषा सद्य-प्रासंगिक स्तरों से बचते हुये संक्रमण काल की प्रतीक्षा कर रही हो।
आप सभी साथियों से निवेदन है कि इस स्वस्थ-विमर्श में अपने मूल्यवान विचारों को अवश्य रखें।
सादर,
नवीन सी• चतुर्वेदी
9967024593
13.01.2016