फ़लक है सुर्ख़ मगर आफ़ताब काला है - मयंक अवस्थी



फ़लक है सुर्ख़ मगर आफ़ताब काला है

अन्धेरा है कि मिरे शहर में उजाला है

 

चमन मे आज भी किरदार दो ही मिलते हैं

है एक साँप,तो इक साँप का निवाला है

 

शबे-सफ़र तो इसी आस पर बितानी है

अजल के मोड़ के आगे बहुत उजाला है.

 

जहाँ ख़ुलूस ने खायी शिकस्त दुनिया से

वहीं जुनून ने उठ कर मुझे सम्भाला है

 

उसे यकीन है दरिया पलट के आयेगा

किनारे बैठ के कंकर जभी उछाला है

 

वो डस रहा है ये शिकवा करें तो किससे करें

हमीं ने साँप अगर आस्तीं में पाला है

 

वही ज़ुबान पे लिपटा है और वही दिल पे

किसी का नाम मिरी ज़िन्दगी पे छाला है

 

मै उस जुनून की सरहद पे हूँ जहाँ शायद

वो फिर से तूर का जलवा दिखाने वाला है

 

अज़ल अबद की हदो में सिमट गया हूँ मैं

मेरे मकान के दोनों दरों पे ताला है

 

मैं खो गया हूँ तेरे ख़्वाब के तअक्कुब में

बस एक जिस्म मेरा आख़िरी हवाला है

 

 

मयंक अवस्थी 08765213905

 

 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212 1122 1212 22

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