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देख उट्ठे हैं सब .......हिक़ारत से - हादी जावेद

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हादी जावेद


देख उट्ठे हैं सब .......हिक़ारत से
बाज़ आ जाओ अब हिमाक़त से
ताज छीने गये हैं ताक़त से
तख़्त पलटे गये बग़ावत से
हम भी बेमौत मारे जायेंगे
एक दिन आपकी शरारत से
अस्ल पाकीज़गी तो रूह की है
बिलयकीं जिस्म की तहारत से
नेकियों का सिला न मिल पाया
हो गये सब अमल अकारत से
तुम ही तन्हा वतन परस्त नहीं
है मुहब्बत हमें भी भारत से
मुझको अल्लाह ने नवाज़ा है
शेर कहता हूँ मैं निफ़ासत से
क्या तवक़्कौ पनाह की "हादी"
एक टूटी हुई .........इमारत से

........ हादी जावेद.............
8273911939

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22


ज़िन्दगी के हसीं मक़ाम पे हूँ - हादी जावेद



ज़िन्दगी के हसीं मक़ाम पे हूँ
ऐसा लगता है राहे आम पे हूँ

साथ देते नहीं हैं पाँव मेरे
जाने किस राहे तेज़गाम पे हूँ

लफ्ज़ ख़ामोश हो गए सारे
कौन सी मंज़िले-कलाम पे हूँ

सुब्ह के दर पे लोग आ पहुँचे
मैं अभी तक मुहाज़े-शाम पे हूँ

पस्तियों के भँवर में उलझा हूँ
फिर भी लगता है औजे-बाम पे हूँ

अब भी सरसब्ज़ हूँ मैं ज़ख़्मों से
मुन्हसिर दर्दे-न-तमाम पे हूँ

लोग पीते हैं चश्मे-साकी से
मुतमईन मैं शराबे-जाम पे हूँ

जीस्त की इब्तिदा न कर पाया
उम्र के आखरी मक़ाम पे हूँ

एक कहानी हूँ मैं कोई 'हादी '
या फ़साना कि इख़्तिताम पे हूँ

मक़ाम - स्थान, तेज़गाम - तेज़ रास्ता, कलाम - गुफ्तगू, मुहाज - मोर्चा, पस्तियों - गहराइयाँ निचाइयां, औजे-बाम—उंचाइयां, सरसब्ज़-- हरा भरा, मुन्हसिर – निर्भर, ज़ीस्त -- ज़िंदगी इब्तिदा – शुरुआत, इख़्तिताम - खत्म


हादी जावेद
8273911939


बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22