
नरहरि अमरोहवी
अब
तो बेसुध रहता हूं
अपनों के ग़म सहता हूं
अपनों के ग़म सहता हूं
अब
फूलों के पौधौं से
गुज़री बातें कहता हूं
गुज़री बातें कहता हूं
कच्ची
दीवारों जैसा
मैं भी पल पल ढहता हूं
मैं भी पल पल ढहता हूं
यादों
का इक दरिया है
जिसमें अक्सर बहता हूं
जिसमें अक्सर बहता हूं
तनहा
भीगी आंखों से
खुद से सब कुछ कहता हूं
खुद से सब कुछ कहता हूं
नरहरि
अमरोहवी
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