बेकराँ
बेकराँ से उठता है
आदमी आसमाँ से उठता है
आदमी आसमाँ से उठता है
ना-तवाँ, नीम-जाँ से उठता है
बारे-ग़म बेज़ुबाँ से उठता है॥
बारे-ग़म बेज़ुबाँ से उठता है॥
तन पै आहो-फ़ुगाँ मला कीजे
इश्क़ आहो-फ़ुगाँ से उठता है
इश्क़ आहो-फ़ुगाँ से उठता है
क़ामयाबों से कब उठा है इश्क़।
ये तो नाकामराँ से उठता है
ये तो नाकामराँ से उठता है
देख अब जा रहा हूँ तुझ से दूर
आशियाँ आसताँ से उठता है
आशियाँ आसताँ से उठता है
दिल धधकता है वस्ल की लौ में
और धुआँ जिस्मो-जाँ से उठता है
और धुआँ जिस्मो-जाँ से उठता है
बेदमे-ग़म में अब कहाँ वो दम
शोर ही कारवाँ से उठता है
शोर ही कारवाँ से उठता है
अपने घर में ही रहता है इनसान
पर पराये मकाँ से उठता है
पर पराये मकाँ से उठता है
काश हम उस बटन पे आ पाएँ
गीत का सुर जहाँ से उठता है
गीत का सुर जहाँ से उठता है
सच को सच मानते नहीं हम-लोग
कब यक़ीं जिस्मो-जाँ से उठता है
कब यक़ीं जिस्मो-जाँ से उठता है
जिसने आलम को कर दिया अन्धा
वो धुआँ ख़ुद जहाँ से उठता है
वो धुआँ ख़ुद जहाँ से उठता है
कोई बतलाए इन हवाओं को
हर बगूला कहाँ से उठता है
हर बगूला कहाँ से उठता है
जिस को दुनिया समझती है तूफ़ाँ
वो किसी बादबाँ से उठता है
वो किसी बादबाँ से उठता है
ख़ुश्बुओं को बिखेरने का ख़र्च
तो, किसी बागवाँ से उठता है
तो, किसी बागवाँ से उठता है
कैसे उठते हैं जानता है वह
वाँ फिसल कर वहाँ से उठता है
वाँ फिसल कर वहाँ से उठता है
जो कि पसरी है हर्फ़-हर्फ़ ‘नवीन’
“इश्क़ उस दासताँ से उठता है”
“इश्क़ उस दासताँ से उठता है”
क़त्अ:-
हो मुहब्बत का कोई भी परबत
बेबस और बेज़ुबाँ से उठता है
ज़ुल्म, ज़ुल्मत, ज़ियादती का बोझ
हाँ! हमीं नातवाँ से उठता है
बेबस और बेज़ुबाँ से उठता है
ज़ुल्म, ज़ुल्मत, ज़ियादती का बोझ
हाँ! हमीं नातवाँ से उठता है
नवीन
सी चतुर्वेदी
बहरे
खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन
मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122
1212 22
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