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ये रात कैसे अचानक निखर निखर सी गयी

धुआँ उठा है कहीं खत जला दिये गए क्या
किसी के नाम के आँसू बहा दिये गए क्या

तो क्या हमारा कोई मुंतज़िर नहीं है वहाँ
वो जो चराग थे सारे बुझा दिये गए क्या

उजाड़ सीने में ये साँय साँय आवाजें
जो दिल में रहते थे बिल्कुल भुला दिये गए क्या

हमारे बाद न आया कोई भी सहरा तक
तो नक्श-ए-पा भी हमारे मिटा दिये गए क्या

ये रात कैसे अचानक निखर निखर सी गयी
अब उस दरीचे से परदे हटा दिये गए क्या
:- मनोज अज़हर
  • azhar.manoj@gmail.com

मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन  
1212 1122 1212 22 
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ