अर्चना राजेश जौहरी |
अकेला कर गए हो तुम कि ये क्या कर गए हो तुम
अभी मझधार में हूँ मैं किनारा कर गए हो तुम
तुम्हारे साथ सेहरा भी मुझे गुलशन सा लगता था
खिले गुलशन को भी अब जैसे सेहरा कर गए हो तुम
तुम्हारे नाम की मेंहदी,महावर मैं रचाती थी
प अब दुनिया के सब रंगों को फीका कर गए हो तुम
तुम्हें ढूँढू कहां, आवाज़ दूं, कैसे पुकारूँ मैं
हमारे साथ को अब 'सिर्फ सपना' कर गए हो तुम
तुम्हारी 'जानजी' हूँ मैं पुकारो फिर ज़रा मुझको
यूँ चुप होकर मुझे बेनाम सहसा कर गए हो तुम
: अर्चना जौहरी