13 अगस्त 2016

एक उत्कृष्ट छान्दसिक प्रयोग - यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

काव्य गुरु <br>प्रात: स्मरणीय परमादरणीय कविरत्न स्व. श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'


छंदों पर पहले बहुत प्रयोग होते थे। परमादरणीय प्रातः-स्मरणीय काव्य-गुरु कविरत्न श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी प्रीतम जी का एक अनूठा प्रयोग पढ़िएगा । इस प्रयोग में कवि ने श्री स्वामी हरिदास जी इस वाक्य को ले कर प्रयोग किया है। 26 मात्रिक इस साधारण छन्द में कवि ने एक-एक अक्षर को एक-एक पंक्ति समर्पित की है। प्रत्येक पंक्ति जिस अक्षर से आरम्भ हो रही है उसी अक्षर पर उस पंक्ति का समापन भी हो रहा है। उदाहरणार्थ वाक्यश्री स्वामी हरिदास जी का प्रथम अक्षर है श्री। छन्द की पहली पंक्ति के आरम्भ एवं अंत में इस अक्षर यानि श्री को रखा गया है। आनन्द लीजिये।

श्री - स्यामा रस दान दियौ पाई तब निधि -श्री
स्वा - गत तब तिन कियों निरख छवि बीसौ बि -स्वा
मी - ठौ या ते और न कछु है अन्तरया - मी
ह - र दिन पल छिन निरत रहत रस ही पै सुख ल -ह
रि - स मुनि जाकौ पार न पायौ व्रत तप करि क -रि
दा- मन लीनों थाम बसे हिय स्याम सर्व -दा
स- रबस रस में रँगे पगे रस ही में सरब -स
जी - वन धन सर्वस्व प्राण बिहारिन हैं -जी
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इस दूसरे छन्द में अष्टाक्षरी का और भी सुन्दर प्रयोग है। छन्द की पहली पंक्ति अष्टाक्षरी के प्रथम अक्षर से आरम्भ एवम् अष्टाक्षरी के अन्तिम अक्षर पर समाप्त होती है। यानि आठ पंक्तियों वाले इस छन्द के आरम्भ की सभी पंक्तियों के प्रथमाक्षरों को क्रम से पढने पर हम 'श्री स्वामी हरिदास जी ' पढते हैं। ऐसे ही इस छन्द की आठवीं पंक्ति से पहली पंक्ति तक के अन्तिम अक्षरों को क्रम से पढने पर भी हम 'श्री स्वामी हरिदास जी ' इस अष्टाक्षरी को पढ पाते हैं। अद्भुत।

श्री- निधि कौ प्रागट्य भयौ निधिबन के मधि -जी
स्वा- रत स्यामा स्याम किये तिन नें अपने ब -स
मी- न मेख ना रही बसे हिय सदा सर्व -दा
ह- र पल छिन रस पियौ रूप माधुर्य सु जिय भ -रि
रि- धि सिधि बारत केलि कला पै कला सकल जँ -ह
दा- न कियौ रस बही रसिक वर रस अनुगा -मी
स - ब विधि रस बस रहे जगत में बीसौ बि -स्वा
जी- वन प्राण बिहारि बिहारिनि 'प्रीतम' के -श्री


के प्रथम अक्षर से आरम्भ हएवम् क

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