31 दिसंबर 2013

आभारी हूँ

देखते ही देखते एक साल और बीत जायेगा कुछ ही देर में। तमाम यादें छोड़ कर जा रहा है यह जाता हुआ साल। इस जाते हुये साल में हम सभी ने कितना कुछ गढ़ा और कितना कुछ गढ़ना बाकी है अभी आने वाले वक़्त में। ब्लॉग की पोस्ट है तो ब्लॉग की चर्चा तक ही सीमित रहता हूँ। उन तमाम साथियों का हृदय से आभार जिन्हों ने समय समय पर उत्साह-वर्धन किया और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मार्गदर्शन भी किया। सभी को आने वाले केलेण्डर वर्ष की अनेक शुभ-कामनायें। 

जिन साथियों ने निरन्तर ही अपनी टिप्पणियों से मेरा हौसला बढ़ाया उन का विशेष रूप से आभार। कुछ नाम मुझे याद आ रहे हैं जैसे कि 

+प्रवीण पाण्डेय
+Prasanna Badan Chaturvedi
+DrNisha Maharana
+Kavita Verma
+चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
+Digamber Naswa
+कालीपद प्रसाद
+Anupam Pathak
+Anurag Sharma
+Prakash Jain
+shyam Gupta
+vibha rani Shrivastava
+मनोज कुमार
+Dheerendra singh Bhadauriya
+Yashwant Yash
+सज्जन धर्मेन्द्र
+Saurabh Pandey
+कल्पना रामानी
+Mayank Awasthi
+रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
+Satyanarayan Singh
+Rajendra Swarnkar
+Yograj Prabhakar
+Prakhar Malviya
+Brijesh Neeraj
+Nitish Tiwari
+rashmi prabha
+राजेंद्र कुमार
+Hadi Javed
+Dinesh Gupta
+Sriram Roy
+udan tashtari +Sameer Lal
+Kailash Sharma
+Rita SM
+Neeraj Goswami
+RAJESH KUMARI
+Rajesh Gite
+tufail chaturvedi
+neeraj pal
+Tilak Raj Kapoor
+RAJMOHAN CHAUHAN
+PANKAJ SUBEER
+Nawya Pankaj Trivedi
+Atmaram Sharma
+Devmani Pandey
+Devi Nangrani
+devendra gautam
+बेचैन आत्मा
+sadhana vaid
+Ambarish Srivastava
+khursheed khairadi
+Madan Saxena
+RAJEEV KUMAR JHA
+Gopal Baghel Madhu
+Anju Choudhary
+Ashok Anjum
+jitendra jauhar
+alam khurshid
+sanjiv verma
+Yograj Prabhakar
+Er Ganesh Jee Bagi
+Rana Pratap Singh
+venus kesari
+om prakash nautiyal
+Madhuram Chaturvedi
+Shekhar Chaturvedi
+SD Tiwari
+vandana A dubey
+vandana gupta
+Rakesh Kaushik
+Rakesh Khandelwal
+Dr.Jenny shabnam
+Dwijendra Dwij
+yashoda agrawal
+Darshan jangra
+ARUN KUMAR NIGAM
+Arunesh c dave
+ABHINAV ARUN
+Kaushal Lal
+Rahul Singh
+Kamlesh Pandey
+दिलबाग विर्क
+Dr.Ashok Kumar
+Asha Saxena
+Ashok Khachar
+Virendra Kumar Sharma
+Pratibha Verma
+Arun Roy
+ismat zaidi
+ravindra prabhat
+RAVI KANT Pandey
+Ravindra Kumar
+Tushar Raj Rastogi
+जयकृष्ण राय तुषार
+Ashok Saluja
+Maheshwari Kaneri
+Satish Saxena
+PRAN SHARMA
+Anware Islam
+asha joglekar
+Reena Maurya
+sangeeta swarup
+Sangeeta Puri
+Suman Kapoor
+Purnima Varman
+दीपक बाबा
+Rachana Dixit
+mahendra verma
+Lokesh Sahil
+Avneesh Singh Chauhan
+Geet Chaturvedi
+Shastri JC Philip
+daanish bhaarti

आप सभी न होते तो यह ब्लॉग महज तीन साल जितने अल्प समय में ही आज यहाँ तक नहीं पहुँच पता। मैं विशेष रूप से पुन: कहना चाहूँगा कि आ. संगीता जी, प्रवीण भाई, मनोज जोशी जी, शास्त्री [मयंक] जी, सलिल जी, योगराज जी, मयंक अवस्थी जी जैसे आप तमाम साथी, जिन्हों ने कि इस ब्लॉग के उदय के समय से ही निरन्तर मेरा मार्ग-दर्शन और उत्साह-वर्धन किया, आप सभी न होते तो आज मैं इस तरह यह पोस्ट न लिख रहा होता। आप सभी का बारम्बार अभिनन्दन और सादर प्रणाम। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि आप सभी के जीवन को ख़ुशियों  से भर दें। 

प्रणाम 

नाम बड़े और दर्शन छोटे - काका हाथरसी

नाम-रूप के भेद पर कभी किया है गौर ?
नाम मिला कुछ और तो, शक्ल-अक्ल कुछ और
शक्ल-अक्ल कुछ और, नैनसुख देखे काने
बाबू सुंदरलाल बनाए ऐंचकताने
कहँ ‘काका’ कवि, दयाराम जी मारें मच्छर
विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर

मुंशी चंदालाल का तारकोल-सा रूप
श्यामलाल का रंग है जैसे खिलती धूप
जैसे खिलती धूप, सजे बुश्शर्ट पैंट में-
ज्ञानचंद छै बार फेल हो गए टैंथ में
कहँ ‘काका’ ज्वालाप्रसाद जी बिल्कुल ठंडे
पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे

देख, अशर्फीलाल के घर में टूटी खाट
सेठ भिखारीदास के मील चल रहे आठ
मील चल रहे आठ, कर्म के मिटें न लेखे
धनीराम जी हमने प्राय: निर्धन देखे
कहँ ‘काका’ कवि, दूल्हेराम मर गए क्वाँरे
बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बिचारे

दीन श्रमिक भड़का दिए, करवा दी हड़ताल
मिल-मालिक से खा गए रिश्वत दीनदयाल
रिश्वत दीनदयाल, करम को ठोंक रहे हैं
ठाकुर शेरसिंह पर कुत्ते भौंक रहे हैं
‘काका’ छै फिट लंबे छोटूराम बनाए
नाम दिगंबरसिंह वस्त्र ग्यारह लटकाए

पेट न अपना भर सके जीवन-भर जगपाल
बिना सूँड़ के सैकड़ों मिलें गणेशीलाल
मिलें गणेशीलाल, पैंट की क्रीज सम्हारी-
बैग कुली को दिया चले मिस्टर गिरिधारी
कहँ ‘काका’ कविराय, करें लाखों का सट्टा
नाम हवेलीराम किराए का है अट्टा

दूर युद्ध से भागते, नाम रखा रणधीर
भागचंद की आज तक सोई है तकदीर
सोई है तकदीर, बहुत-से देखे-भाले
निकले प्रिय सुखदेव सभी, दुख देने वाले
कहँ ‘काका’ कविराय, आँकड़े बिल्कुल सच्चे
बालकराम ब्रह्मचारी के बारह बच्चे

चतुरसेन बुद्धू मिले,बुद्धसेन निर्बुद्ध
श्री आनंदीलालजी रहें सर्वदा क्रुद्ध
रहें सर्वदा क्रुद्ध, मास्टर चक्कर खाते
इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते
कहँ ‘काका’, बलवीरसिंह जी लटे हुए हैं
थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुए हैं

बेच रहे हैं कोयला, लाला हीरालाल
सूखे गंगाराम जी, रूखे मक्खनलाल
रूखे मक्खनलाल, झींकते दादा-दादी
निकले बेटा आशाराम निराशावादी
कहँ ‘काका’ कवि, भीमसेन पिद्दी-से दिखते
कविवर ‘दिनकर’ छायावादी कविता लिखते

आकुल-व्याकुल दीखते शर्मा परमानंद
कार्य अधूरा छोड़कर भागे पूरनचंद
भागे पूरनचंद अमरजी मरते देखे
मिश्रीबाबू कड़वी बातें करते देखे
कहँ ‘काका’, भंडारसिंह जी रीते-थोते
बीत गया जीवन विनोद का रोते-धोते

शीला जीजी लड़ रहीं, सरला करतीं शोर
कुसुम, कमल, पुष्पा, सुमन निकलीं बड़ी कठोर
निकलीं बड़ी कठोर, निर्मला मन की मैली
सुधा सहेली अमृतबाई सुनीं विषैली
कहँ ‘काका’ कवि, बाबूजी क्या देखा तुमने ?
बल्ली जैसी मिस लल्ली देखी है हमने

तेजपाल जी भोथरे मरियल-से मलखान
लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान
करी न कौड़ी दान, बात अचरज की भाई
वंशीधर ने जीवन-भर वंशी न बजाई
कहँ ‘काका’ कवि, फूलचंदजी इतने भारी
दर्शन करके कुर्सी टूट जाए बेचारी

खट्टे-खारी-खुरखुरे मृदुलाजी के बैन
मृगनैनी के देखिए चिलगोजा-से नैन
चिलगोजा से नैन शांता करती दंगा
नल पर न्हातीं गोदावरी, गोमती, गंगा
कहँ ‘काका’ कवि, लज्जावती दहाड़ रही है
दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही है

कलियुग में कैसे निभे पति-पत्नी का साथ
चपलादेवी को मिले बाबू भोलानाथ
बाबू भोलानाथ, कहाँ तक कहें कहानी
पंडित रामचंद्र की पत्नी राधारानी
‘काका’, लक्ष्मीनारायण की गृहिणी रीता
कृष्णचंद्र की वाइफ बनकर आई सीता

अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम
कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम
रक्खा दशरथ नाम, मेल क्या खूब मिलाया
दूल्हा संतराम को आई दुलहिन माया
‘काका’ कोई-कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा
पार्वतीदेवी हैं शिवशंकर की अम्मा

पूँछ न आधी इंच भी, कहलाते हनुमान
मिले न अर्जुनलाल के घर में तीर-कमान
घर में तीर-कमान बदी करता है नेका
तीर्थराज ने कभी इलाहाबाद न देखा
सत्यपाल ‘काका’ की रकम डकार चुके हैं
विजयसिंह दस बार इलैक्शन हार चुके हैं

सुखीराम जी अति दुखी, दुखीराम अलमस्त
हिकमतराय हकीमजी रहें सदा अस्वस्थ
रहें सदा अस्वस्थ, प्रभू की देखो माया
प्रेमचंद ने रत्ती-भर भी प्रेम न पाया
कहँ ‘काका’, जब व्रत-उपवासों के दिन आते
त्यागी साहब, अन्न त्यागकर रिश्वत खाते

रामराज के घाट पर आता जब भूचाल
लुढ़क जाएँ श्री तख्तमल, बैठें घूरेलाल
बैठें घूरेलाल रंग किस्मत दिखलाती
इतरसिंह के कपड़ों में भी बदबू आती
कहँ ‘काका’ गंभीरसिंह मुँह फाड़ रहे हैं
महाराज लाला की गद्दी झाड़ रहे हैं

दूधनाथ जी पी रहे सपरेटा की चाय
गुरु गोपालप्रसाद के घर में मिली न गाय
घर में मिली न गाय, समझ लो असली कारण
मक्खन छोड़ डालडा खाते बृजनारायण
‘काका’, प्यारेलाल सदा गुर्राते देखे
हरिश्चंद्रजी झूठे केस लड़ाते देखे

रूपराम के रूप की निंदा करते मित्र
चकित रह गए देखकर कामराज का चित्र
कामराज का चित्र, थक गए करके विनती
यादराम को याद न होती सौ तक गिनती
कहँ ‘काका’ कविराय, बड़े निकले बेदर्दी
भरतराम ने चरतराम पर नालिश कर दी

नाम-धाम से काम का, क्या है सामंजस्य ?
किसी पार्टी के नहीं झंडाराम सदस्य
झंडाराम सदस्य, भाग्य की मिटे न रेखा
स्वर्णसिंह के हाथ कड़ा लोहे का देखा
कहँ ‘काका’, कंठस्थ करो, यह बड़े काम की

माला पूरी हुई एक सौ आठ नाम की


काका हाथरसी जी की रचनाएँ 

सभी मित्रों को नव-वर्ष की शुभ-कामनाएँ

30 दिसंबर 2013

जो हम भी दाँव पै अपनी अना लगा देते

जो हम भी दाँव पै अपनी अना लगा देते 
यक़ीन जानो कि एक सल्तनत गँवा देते 

तुम्हारे साथ रहे, ग़म मिला, ख़ुशी बाँटी
हम अपने साथ ही रहते तो सब को क्या देते 

तुम्हारे नयनों की भाषा भी जानते हैं हम 
ज़रा सा चेहरे से चिलमन को ही हटा देते 

वो झीलें जिन में हमारी ही नाव चलती थी
नज़र मिला के ज़रा उन को ही दिखा देते

तुम्हारा जिस्म जो लोबान हो रहा था हुज़ूर 
कम-अज़-कम इतना तो करते हमें सुँघा देते 

सुरों में जिस के मुहब्बत हमारी झनके थी
किसी भी शाम को वो राग ही सुना देते 

हमें मिटाने की तरक़ीब कौन मुश्किल थी  
यूँ हम को लिखते और इस तर्ह से मिटा देते 
(क़लम से लिख के रबर से हमें मिटा देते) 

कहा तो होता कि तुम धूप से परेशाँ हो
हम अपने आप को दुपहर में ही डुबा देते

हमारा शम्स (सूर्य) न होना हमारे हक़ में रहा
न जाने कितने परिन्दों के पर जला देते

यहाँ उजालों ने आने से कर दिया था मना 
वगरना किसलिये शोलों को हम हवा देते 

तुम्हारे वासते रसते बुहारने थे 'नवीन' 
तुम आना चाहते हो इतना ही बता देते

:- नवीन सी. चतुर्वेदी



बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22  

रहमतें छोड़ के सर के लिये कलगी ले ली - नवीन

रहमतें छोड़ के सर के लिये कलगी ले ली
छोड़ कर मुहरें अरे रे रे इकन्नी ले ली

जिस्म चादर है जिसे उस पे चढ़ाना है हमें
साफ़ करने के लिये दश्त में डुबकी ले ली

माँ के पहलू में जो बेटी ने रखा अपना सर
माँ ने सर चूम के फिर हाथों में कंघी ले ली

उस ने जिस हाथ की जिस उँगली को पहनाई थी रिंग
हम ने उस हाथ की उस उँगली की पुच्ची ले ली

वरना क्या कहते कि कोई भी नहीं अपना यहाँ
यादों में खोये थे सब हमने भी हिचकी ले ली

तंज़ के तौर उसे नाम दिया शह+नाई
उसको अच्छा भी लगा हमने भी चुटकी ले ली

मुद्दआ ये था कि शुरुआत हुई थी कैसे
हम ज़िरह करते रहे उस ने गवाही ले ली

उस की जुल्फों के तले ऊँघती आँखों को मला
और अँगड़ाई ने फिर चाय की चुस्की ले ली

मील दो मील का थोड़ा है मुहब्बत का सफ़र
दूर जाना था ख़यालात की बघ्घी ले ली

जैसे ही नूर का दीदार हुआ आँखों को
जल गईं भुन गईं और पलकों ने झपकी ले ली

हमने ही जीते मुहब्बत के सभी पेच नवीन
हाँ मगर हाथों में जब आप ने चरखी ले ली

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 


बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन

2122 1122 1122 22

दिल के दरवाज़े तलक बू-ए-वफ़ा आने दे - नवीन

दिल के दरवाज़े तलक बू-ए-वफ़ा आने दे। 
धूल उड़ती है तो उड़ने दे - हवा आने दे॥ 

ज़ख्म ऐसा है कि उम्मीद नहीं बचने की। 
जब तलक साँस हैनज़रों की शिफ़ा आने दे॥ 

मौत! वादा है मेरासाथ चलूँगा तेरे। 
बस ज़रा उस को कलेज़े से लगा आने दे॥ 

वो बहुत जल्द किसी और की हो जायेगी
रोक मत - उस को - सुबूतों को जला आने दे

मैं भी कहता हूँ कि ये उम्र इबादत की है। 
दिल मगर कहता है कुछ और मज़ा आने दे॥ 

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22

ख़ुश्क सहराओं की तक़दीर बदल आते हैं - नवीन

ख़ुश्क सहराओं की तक़दीर बदल आते हैं  
आप भी चलिये ज़रा दूर  टहल आते हैं

आप के जाते ही ग़म आ के पसर जाता है
दिल की दीवार से छज्जे भी निकल आते हैं

एक तो बाग़ में जाते नहीं अब के बच्चे
और जाते हैं तो कलियों को मसल आते हैं

सुनते हैं आप के सीने से लगे रहते हैं ग़म
हम भी जाते हैं किसी सोज़ में ढल आते हैं

एक चिड़िया जो चमन से रही कुछ दिन ग़ायब
आज़ तक उस के ख़यालों में महल आते हैं 

: नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन

2122 1122 1122 22

बजारन में दिखबे लगे चन्द्रमा - नवीन

बजारन में दिखबे लगे चन्द्रमा
सितारे ऊ बनिबे लगे चन्द्रमा

ह्रिदे में हुलसिबे लगे चन्द्रमा
अटारिन पे चढिबे लगे चन्द्रमा

समझ ल्यो नई रौसनी मिल गई
किताबन कूँ पढ़िबे लगे चन्द्रमा

पढ़्यौ जब सूँ दुस्यंत-साकुन्तलम
फरिस्तन सूँ डरिबे लगे चन्द्रमा

खुदइ तन सूँ बदरन कूँ लिपटाय कें
अँधेरेन सूँ मिलबे लगे चन्द्रमा

: नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़उल

122 122 122 12

बाज़ारों में दिखने लगे चन्द्रमा
सितारे भी बनने लगे चन्द्रमा

हृदय में हुलसने [ख़ुश होना] लगे चन्द्रमा
अटारिन [अटारियों] पे चढ़ने लगे चन्द्रमा

समझ लो नयी रौशनी मिल गई
किताबात पढ़ने लगे चन्द्रमा

पढ़ा जब से दुष्यन्त-शाकुंतलम
फ़रिश्तों से डरने लगे चन्द्रमा

ख़ुद ई तन से अब्रों को लिपटाय के
अँधेरों से मिलने लगे चन्द्रमा

ग़म की ढलवान तक आये तो ख़ुशी तक पहुँचे - नवीन

ग़म की ढलवान तक आये तो ख़ुशी तक पहुँचे
आदमी घाट तक आये तो नदी तक पहुँचे

इश्क़ में दिल के इलाक़े से गुजरती है बहार 
दर्द अहसास तक आये तो नमी तक पहुँचे

उस ने बचपन में परीजान को भेजा था ख़त
ख़त परिस्तान को पाये तो परी तक पहुँचे 

उफ़ ये पहरे हैं कि हैं पिछले जनम के दुश्मन
भँवरा गुलदान तक आये तो कली तक पहुँचे

नींद में किस तरह देखेगा सहर यार मिरा
वह्म के छोर तक आये तो कड़ी तक पहुँचे

किस को फ़ुरसत है जो हर्फ़ो की हरारत समझाय
बात आसानी तक आये तो सभी तक पहुँचे

बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ितूर
जिस्म दरवाज़े तक आये तो गली तक पहुँचे

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन

2122 1122 1122 22