देवरानी मोबाइल, ले कर है घूम रही,
भतीजी ने सूट लिया, दोनों मुझे चाहिये|
सासू जी ने खुलवाया, नया खाता बचत का,
और ज्यादा नहीं मेरा, मुँह खुलवाइये|
ऐश सब कर रहे, हम यहाँ मर रहे,
बोल पड़ा मैं तुरंत, चुप रह जाइये|
सब अपने ही लोग, रहें खुश चाहता मैं,
राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइये||
[एकता कपूर उर्फ छोटे पर्दे की दादी अम्मा और टी. वी. महारानी की इस युग की विशेष
मेहरबानी रूप घर घर की कहानी कैसे कैसे गुल खिला रही है - इस का बहुत ही अच्छा
उदाहरण देखने को मिलता है इस छन्द में| छंदों को जन-मानस से जुडने के लिए
उन की बातें बतियाना बहुत जरूरी है]
आँख जैसे रोशनाई डल-झील में गिरी हो,
गाल जैसे गेरू कुछ दूध में मिलाया है|
केश तेरे लहराते जैसे काली नागिनों को,
काले नागों ने पकड़, अंग से लगाया है|
होंठ जैसे शहद में, पंखुड़ी गुलाब की हो,
पलकों ने बोझ, सारे - जहाँ का उठाया है|
कोई उपमान नहीं, तेरे इस बदन का,
देख तेरी सुंदरता चाँद भी लजाया है||
[रूपक व उपमा जैसे अलंकारों से सुसज्जित इस छन्द की जितनी तारीफ की जाए कम है|
डल-झील, गेरू-दूध के अलावा पलकों ने सारा बोझ वाली बातों के साथ यह घनाक्षरी
किस माने में किसी रोमांटिक ग़ज़ल से कम है भाई? आप ही बोलो...]
सूखा-नाटा बुड्ढा देखो, चला ब्याह करने को,
तन को करार नहीं, मन बेकरार है|
आँख दाँत कमजोर, पाजामा है बिन डोर,
बनियान हर छोर, देखो तार-तार है|
सरकता थोड़ा-थोड़ा, मरियल सा है घोडा,
लगे ज्यों गधा निगोड़ा, गधे पे सवार है|
जयमाल होवे कैसे, सीढ़ी हेतु हैं न पैसे,
बन्नो का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||
[करार-बेकरार, कमजोर-बिन डोर-हर छोर, थोड़ा-घोड़ा-निगोड़ा और कैसे-जैसे शब्द प्रयोगों
के साथ आपने अनुप्रास अलंकार की जो छटा दर्शाई है, भाई वाह| जियो यार जियो]
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और अब बारी है उस छन्द की जिस का मुझे भी बेसब्री से इंतज़ार था| श्लेष अलंकार को लक्ष्य कर के आमंत्रित इस छंद में कवि ने 'नार' शब्द के जो दो अर्थ लिए हैं वो हैं [१] गर्भनाल, और [2] कमलनाल| छन्द क्यों विशेष लगा इस बारे में बाद में, पहले पढ़ते हैं इस छन्द को|
'पोषक' ये खींचती है, तन को ये सींचती है,
द्रव में ये डूबी रहे, किन्तु कभी गले ना|
जोड़ कर रखती है, जच्चा-बच्चा एक साथ,
है महत्वपूर्ण, किन्तु - पड़े कभी गले ना|
जब तक साथ रहे, अंग जैसी बात रहे,
काट कर हटा भी दो, तो भी इसे खले ना|
पहला-पहला प्यार, दोनों पाते हैं इसी से,
'शिशु' हो या हो 'जलज', "नार" बिन चले ना||
[अब देखिये क्या खासियत है इस छन्द की| पहले आप इस पूरे छन्द को (आखिरी चरण
को छोड़ कर) गर्भनाल समझते हुए पढ़िये, आप पाएंगे - कही गई हर बात इसी अर्थ का
प्रतिनिधित्व कर रही है|दूसरी मर्तबा आप इसी छन्द को कमलनाल के बारे में समझते
हुए पढ़िये, आप पाएंगे यह छन्द कमलनाल के ऊपर ही लिखा गया है| यही है जादू
इस विशेष पंक्ति वाले छन्द का| इस प्रस्तुति के पहले वाले छन्द भी श्लेष पर हैं,
पर यह छन्द पूरी तरह से सिर्फ एक शब्द के अर्थों में ही भेद करते हुए श्लेष का
जादू दिखा रहा है| इसके अलावा इस छन्द में एक और चमत्कार है| 'गले ना'
शब्द प्रयोग दो बार है| एक बार उस का अर्थ है 'गर्भनाल / कमलनाल द्रव
में रहते हुए भी गलती नहीं है', और दूसरा अर्थ है 'गले नहीं पड़ती'|
है ना चमत्कार, यमक अलंकार का? इस अद्भुत प्रस्तुति
के लिए धर्मेन्द्र भाई को बहुत बहुत बधाई]
जय हो दोस्तो आप सभी की और अनेकानेक साधुवाद आप लोगों के सतप्रयासों हेतु| धर्मेन्द्र भाई के छंदों का आनंद लीजिये, टिप्पणी अवश्य दीजिएगा| जिन कवि / कवियात्रियों के छन्द अभी प्रकाशित होने बाकी हैं, यदि वो उन में कुछ हेरफेर करना चाहें, तो यथा शीघ्र करें| जिन के छन्द प्रकाशित हो चुके हैं, वो फिर से छन्द न भेजें|