साहित्यम्
हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास
Ashwini Kumar Sharma
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होली - भाभी बौरायी फिरे,साली भी दे ताल - अश्विनी शर्मा
गलियों गलियों हो रही रंगों की बौछार
बस्ती बस्ती हो गये कितने रंगे सियार
रंग हुए शमशीर से रंग बने पहचान
जीना बेरंगी हुआ अब कितना आसान
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लोग बन्दर से नचाये जा रहे है
खोट के सिक्के चलाये जा रहे है
लोग बन्दर से नचाये जा रहे है
आसमां में सूर्य शायद मर गया है
मोमबत्ती को जलाये जा रहे है
देखिये तांडव यहाँ पर हो रहा है
रामधुन क्यों गुनगुनाये जा रहे है
जो पिघल कर मोम से बहने लगे है
लोग वो काबिल बताये जा रहे है
आप को वो स्वप्नजीवी मानते है
स्वप्न अब रंगीन लाये जा रहे है
देखते है आसमां कैसे दिखेगा
शामियाने और लाये जा रहे है
:- अश्विनी कुमार शर्मा
ashvaniaugust@gmail.com
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