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प्रीत के अतीत से - जितेन्द्र 'जौहर'

 न जाने कितनी बार...
प्रीति में रँगी
किन्तु...
प्रतीति में टँगी
एक प्रणयातुर प्रतीक्षा
नैराश्य के अँधेरे में
सिसककर रोयी है,
पंथ निहारती
एक जोड़ी आँखों ने
'अ-योग' की उदासी ढोयी है... 
न जानेsss कितनी बार...!


न जाने कितनी बार...
भावों की कल्लोलिनी लहरों ने
किनारों के चरण पखारे हैं
सीमाओं के सदके उतारे हैं
उपेक्षा के तटस्थ प्रस्तरों से टकराकर
प्रत्यावर्तन की
'वर्तुलाकार' पीड़ा भोगी है;
अहासस्स...
यह प्रेम...फिर भी
एक निष्ठावान कर्मयोगी है...!!


न जाने कितनी बार...
एक आरोही ने
शिखर-यात्रा के बीच
'सुयोग' के संभावनाशील पलों में
केन्द्रेतर दुर्योंगों से
गोपनीय गठबंधन कर
शीर्ष-संयोग की झोली में
वियोग का रुदन भरा है,
फिर भी
अविराम...
अभिराम...
अन्तस के उपवन में
प्रेम-पराग ही झरा है...!


न जाने कितनी बार...
अनुभूतियों का लहूलुहान गौरव
विवशता के कँटीले उद्यान से
सस्मित लौटा है-
अनगिन खरोंचों का पारितोषिक लेकर...!


न जाने कितनी बार...
एक याचक मन
भावना की भीख पर
धनवान हुआ है,
यह जानते हुए भी
कि-
भिक्षाटन पर निकला
कोई आदमक़द स्वाभिमान
कभी कुबेर बनकर नहीं लौटता...
फिर भी
प्रेम के गीले नयन 
एकल द्वार पर
दृष्टि पसारकर
अहर्निश निहारते रहे
एकटक...
अपलक...
न जानेsss कितनी बार...!!


न जाने कितनी बार...
विडम्बनाओं ने
कुछ यूँ विवश किया है
कि-
एक जीते हुए योद्धा ने 
अपने ही रण-शिविर में आकर
पराजय-बोध को जिया है...!!


न जाने कितनी बार...
जीवन
छद्म के हाथों लुटा है,
फिर भी
भस्मीभूत अस्तित्व का फीनिक्स 
अपनी ही राख से
जी उठा है
नयी उड़ान
नये गान का हौसला लेकर...!
न जाने कितनी बार...!
न जानेsss कितनी बार...!!
न जाने...कितनीsss बार...!!!

:- जितेन्द्र 'जौहर' 9450320472

आमन्त्रण - जितेन्द्र जौहर

ऐ रात की स्याही,
आ...
कि तुझे अपनी लेखनी की
रौशनाई बनाकर
उकेर दूँ कुछ शब्द-चित्र
मुहब्बत के कैनवस पर!

आ...
कि प्रेम की चाँदनी रात
वैधव्य का श्वेताम्बर ओढ़कर
'स्याह सुदर्शन' जीवन का
श्रृंगार करना चाहती है!

आ...
कि हठधर्मी पीड़ा
घुटने मोड़कर बैठ गयी है
एक अलिखित प्रेमपत्र की
इबारत बनने को!

आ...
कि शब्द का 'बैजू'
बाबरा हुआ जाता है-
अपनी मुहब्बत के
निर्मम हश्र से उपजे 
आँसुओं की सौग़ात पर!

आ...
कि इस बेरहम मौसम के कहर से
अनुभूतियाँ कराह उठी हैं...!

आ...
कि धुँधुँआकर
सुलगता अन्तर्मन
अदम्य विकलता को
'शब्द-ब्रह्म' की
शरण देने को आतुर है!

कि प्रेम-देवी की आराधना में थके
आरती के आर्त स्वर
काग़ज़ पर उतरकर
कुछ पल को
विश्राम करना चाहते हैं!

आ...
ऐ रात की स्याही,
, तरल होकर...
कि तुझे अमरत्व का
दान देना है
असह्य वेदना को
अमरता का
वरदान देना है!

- जितेन्द्र 'जौहर'
मोबाइल:  +91 9450320472

वो संत का किरदार जिया करता था - जितेंद्र जौहर

जितेंद्र जौहर
पिछले दिनों, शायद दो हफ़्ते पहले, कामकाज़ के सिलसिले में चेम्बूर गया था तो फिर वहीं से ही आ. आर. पी. शर्मा महर्षि जी के दर्शन करने उन के घर भी चला गया। उन के घर पर "क़ता-मुक्तक-रूबाई" का शायद अब तक का सब से बड़ा संकलन देखने / पढ़ने को मिला। वहीं बैठे-बैठे इस संकलन के शिल्पी जितेंद्र जौहर से भी बात हुयी। कुछ दिनों बाद फिर जितेंद्र भाई का मेसेज आया कि नवीन जी आप के और आप के मित्रों के मुक्तक-क़ता-रूबाई भिजवाइएगा। जो पसंद आएंगे [यह शर्त मेरे लिए भी लागू] उन्हें संकलन में स्थान मिलेगा। तो मैंने सोचा एक ब्लॉग पोस्ट के ज़रिये न सिर्फ जितेंद्र जी का परिचय और उनकी रूबाइयाँ बल्कि उन की मंशा भी दोस्तों तक पहुँचायी जाये। रूबाइयों से मेरे लिए परिचय नई बात है। तो आइये पढ़ते हैं उन की रूबाइयाँ ब-क़लम जितेंद्र भाई:-