|
अनवारे इस्लाम |
मैं धरती पर मुहब्बत चाहता हूँ
हवाओं पे मेरा पैगाम लिख दे
*
कैसे बच्चों को खेलते देखूँ
दिन तो रस्ते में डूब जाता है
*
वो अपनी माँ को समझाने लगी है
मेरी बिटिया सयानी हो रही है
*
पत्थरों का नगर काँच का "जिस्म" है
ले के "माँ की अमानत" मैं जाऊँ कहाँ
*
मेरा वजूद बाप की शफ़क़त [प्यार] से ढँक गया
जब भी किसी बुजुर्ग ने बेटा कहा मुझे
*
चारों तरफ़ बबूल हैं सरसों के खेत में
किसकी ये साजिशें हैं कोई सोचता नहीं
*
नई दुनिया बसाई जा रही है
तबाही भी मचाई जा रही है
*
झुकाया जा रहा है आस्माँ को
ज़मीं सर पर उठाई जा रही है
*
किसी के हाथ मिट्टी से सने हैं
कोई ख़ुशबू से ख़ुशबू धो रहा है
*
देख कर तुमको याद आता है
हमने क्या खो दिया जवानी में
*
बारिशों में हो साथ कोई तो
लुत्फ़ आता है भीग जाने में
*
ख़ुदा मुझको वहाँ जन्नत ही देगा
जहन्नुम तो यहीं पर दे दिया है
*
हमने तमाम उम्र अँधेरों में काट दी
लेकिन किसी चिराग़ से सौदा नहीं किया
*
सूखा पड़ा तो सूख गई फ़स्ल धान की
सूरज की धूप पी गयी मेहनत किसान की
*
वो इस तरह से भी तारीकियाँ बढ़ा देगा
चिराग़ जितने हैं रौशन उन्हें बुझा देगा
*
हवा के साथ चिराग़ों ने दोसती कर ली
अज़ीब लोग हैं घबरा के ख़ुदकुशी कर ली
*
हम दिमाग़ों में बस गये होते
दिल की बातों में गर नहीं आते
*
है ख़तरा बस्तियों के डूबने का
समन्दर पैर फैलाने लगा है
*
तुमको मिला जो हुस्न, मुझे शाइरी मिली
दौनों पे रहमतें मिरे परवरदिगार की
*
ख़्वाबों में मेरे आज तक उतरी नहीं परी
दादी ने जो सुनाये वो क़िस्से फ़जूल थे
*
'मिजाज़ कैसा है' से उद्धृत
अनवारे इस्लाम
सम्पादक - सुखनवर पत्रिका
C-16, सम्राट कौलोनी,
अशोका गार्डन,
भोपाल - 462023
मोबाइल - +91 98 93 66 3536
ईमेल - sukhanwar12@gmail.com