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संगीता सहजवाणी |
आस्थाओं की व्यापकता व अनुभवों की गहराई से उजला "सूरज मेरा दुश्मन"
हिंदी साहित्य के आकाश में एक और नया सितारा रौशन नज़र आ रहा है, जो अपना परिचय अपनी सहजता से अपनी कविताओं में दे रहा है. जी हां यह है संगीता सहजवाणी जो एक नये सूरज से हमें रौ ब रू करा रही है जो मानवता का दुशमन है. अपने प्ररिवेश की परिधि में संगीता ने जितनी सरलता से दोस्ती का दावा किया है, उतनी ही सहजता से निभाया भी है. पर इस दोस्ती के दाइरे में उन्वान ''सूरज मेरा दुश्मन'' इस इन्द्र धनुषी आकाश पर कुछ और ही रंग बिखेर रहा है . अपने अस्तित्व की अभिव्यक्ति को जानना और जानकर कम से कम शब्दों में परिभाषित करना, अपने आप में एक अनुभूति है. कविता, सच में देखा जाये तो संवेदनशील हृदय की पारदर्शी अभिव्यक्ति है और शब्द उसी कविता के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधिः जिनका आधार लेकर संगीता जी की निशब्द सोच शब्दों के सहारे अपने कवि हृदय से झर झर कर बहती हुई काव्य धारा में हमें बहा लेने में परिपूर्ण है. उनकी अभिव्यक्ति की शिद्दत को उनके ही शब्दों में सुनिये-