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चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - घुंघटे की तिजोरी में बंद सरमाया है

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन


आज पोस्ट लिखते हुए गुरुजी [स्व. 'प्रीतम' जी] की बहुत याद आ रही है| वो अक्सर कहते थे, दूसरों को उन की गलतियाँ बताना जितना जरूरी है, उस से हजार गुना ज्यादा जरूरी है उन की अच्छाइयों को सारे जमाने के साथ शेयर करना|

पिछली पोस्ट में हम ने धर्मेन्द्र भाई के बेजोड़ छंदों का आनंद उठाया| आज की पोस्ट में मिलते हैं एक नौजवान शायर / कवि से| शायर इसलिए कि ये गज़लों पर ही ज्यादा बातें करते रहे हैं, और कवि इसलिए कि इन्होंने छन्द भी भेजे हैं| फ़ौज़ में हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि इन के छंदों में देशभक्ति ज्यादा है|




सीमा पार से जो हो रहा है उग्रवाद अभी,
उस पर आपकी तवज्जो अभी चाहिए|

नेता, मंत्री, सांसद जी आपसे है इल्तिजा ये,
देश के ही लोगों में तो दोष न गिनाइये|

चंद वोटों के लिए न आपस में लड़िए जी,
भाई भाई को तो आपस में न लड़ाइये|

मुल्क अपना ये घर कहता है आर पी ये,
राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये||

[वाह आर. पी., इस पंक्ति पर बेहतरीन प्रस्तुति| जियो मित्तर जियो| टी वी वाले छंद
पढे, घर गृहस्थी वाले छंद पढे और अब ये देश भक्ति
वाला छंद| बहुत खूब]



बड़ा धनवान और पूंजीपति है वो बड़ा,
तेरे जैसा महबूब जिसने भी पाया है |

पागल बनाया कितनों की है उडाई नींदें,
कितनों का सुख चैन तुमने चुराया है |

लाखों हैं लुटेरे यहाँ लूट लें न इसीलिए,
घुंघटे की तिजोरी में बंद सरमाया है |

इतराता था जो कभी अपनी सुंदरता पे,
देख तेरी सुंदरता चाँद भी लजाया है||

['घुंघटे की तिजोरी में बंद सरमाया' हाए हाए हाए, क्या कल्पना
है भई वाह| घनाक्षरी में शायरी की खूबसूरती,
क्या कहने| ]



डेढ़ फुटिया बन्ना भी चला ब्याह करने को,
उसको भी घोड़ी चढने का अधिकार है |

आइना भी डर जाये बन्नो की सूरत देख,
कहे मुझ पर हुआ भारी अत्याचार है |

भेंगी आँख, टेढ़ी नाक, हाथी जैसे कान लिए,
वरमाला थामे बन्नो कब से तैयार है |

गोंद में ही वरमाला पहनानी पड़ी क्यूंकि,
बन्नो का बदन जैसे क़ुतुबमीनार है||

[आईने पर अत्याचार - ओहो, और गोद में वरमाला -
वाह क्या तीर खींच के मारा है, ये डेढ़ फूटिया
भी खूब ढूँढ के निकाला है]

कवि की कल्पना एक अथाह सागर की तरह होती है| माँ शारदे किस से क्या लिखवा दें, कुछ भी पहले से तय नहीं होता| बस इसी तरह साहित्य सृजन चलता रहा है, चल रहा है, चलता रहेगा - कोई माने या न माने| लीक से हट कर चलने वाले कवि / शायरों को इसीलिए तो ज़माना याद करता है भाई| वर्तमान समय की बारीकियों को समझते हुए शायद इसीलिए भाई मयंक अवस्थी जी ने लिखा होगा "अगर साहित्य का मूल्यांकन उस के कला पक्ष पर किया जाये, तो तुलसी से अधिक कालिदास प्रासंगिक होते"|

तो सुधि पाठको, आप सभी आर. पी. के मस्त मस्त छंदों का आनंद लें, और टिप्पणियाँ भी ज़रूर दें|

फिर मिलते हैं अगले हफ्ते अगली पोस्ट के साथ|

जय माँ शारदे!

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - राणा प्रताप सिंह जी [5]

सम्माननीय साहित्य रसिको

आइए इस बार पढ़ते हैं आज के दौर के नौजवान रचनाधर्मी बन्धु राणा प्रताप सिंह जी को| इलाहाबाद में जन्मे राणा प्रताप जी वायु सेना में कार्य रत हैं| आप अपना एक ब्लॉग [http://www.rp-sara.blogspot.com] भी चलाते हैं| शे'रोशायरी के जबरदस्त शौकीन राणा प्रताप जी ने हिन्दुस्तानी छंद साहित्य सेवा के उद्देश्य से इस समस्या-पूर्ति में भाग लेते हुए अपनी प्रस्तुति भेजी है|

मुझसे कटे कटे रहते हो|
औरों संग अविरल बहते हो|
सबके नाज उठाते हो तुम|
पर मुझको तरसाते हो तुम|१|

जितना मुझको तरसाओगे|
उतना निकट मुझे पाओगे|
तुम में 'मैं', मुझमें 'तुम', जानो|
मुझसे 'तुम', तुमसे 'मैं', मानो|२|

मिट जायेगा भेद हमारा|
जैसे गंग जमुन जल धारा|
हो मेरी स्मृतियों में गुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|


देर से आने वाले साहित्य रसिकों को फिर से बताना चाहूँगा कि:-

समस्या पूर्ति की पंक्ति है : - "कितने अच्छे लगते हो तुम"

छंद है चौपाई
हर चरण में १६ मात्रा

अधिक जानकरी इसी ब्लॉग पर उपलब्ध है|इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|

पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई