नमस्कार
गरबा-डाण्डिया के
साथ झूम-झूम जाने को आतुर सपनों की नगरी मुम्बई से आप सभी को सादर प्रणाम। हिन्दुस्तान यानि कोस-कोस पे पानी बदले तीन कोस पे बानी। अनेक
भाषा-बोलियों से सम्पन्न है वह धरातल जहाँ पैदा होने का सौभाग्य मिला हम लोगों को।
ये वह धरती है जहाँ तमाम अन्तर्विरोधों, असमञ्जसों
और अराजकताओं के बावजूद आज भी गङ्ग-जमुनवी संस्कृति की जड़ें गहरे तक पैठी हुई हैं।
इसी गङ्ग-जमुनवी संस्कृति की शोभा बढ़ाने आज हमारे बीच उपस्थित हो रहे हैं भाई खुर्शीद
खैराड़ी फ़्रोम जोधपुर। आपने अपनी माँ-बोली खैराड़ी में भी दोहे भेजे हैं। तो आइये श्री
गणेश करते हैं आयोजन का :-
राम घरों में सो रहे ,रावण है मुस्तैद
भोग रही है जानकी, युगों युगों से कैद
जगजननी जगदम्ब की, क्यूँ है मक़तल कोख
मूरत को गलहार है, औरत को क्यूँ तौख
दीप जलाकर रोशनी, घर घर होती आज
फिर भी क्यूँ अँधियार का, घट-घट में है राज
सदियों से रावण दहन की है अच्छी रीत
फिर भी होती है बुरे लोगों की ही जीत
रोशन सारा देश है, जगमग जलते दीप
लेकिन अब भी गाँव हैं, अँधियारे के द्वीप
घर घर में आराधना, जिसकी करते लोग
उस देवी की दुर्दशा, देख हुआ है सोग
भूखे नंगे लोग है, गूँगी हर आवाज़
ग़ुरबत रावण हो गई, कौन करे आगाज़
दुर्गा दुर्गति नाशती, देती है सद्ज्ञान
फिर भी हम बन कर महिष,करते हैं अपमान
अँधियारे को जीतना, तुझको है 'खुरशीद'
जगमग करती भोर ही, तव दीवाली-ईद
तौख [तौक़] - कैदियों के गले में डालने की हँसली
खैराड़ी दोहावली
खांडा ने दे धार माँ, हाथां में दे ज़ोर
दुबलां रे हक़ लार माँ, सगती दूं झकझोर
चामुण्डा धर शीश पर, आशीसां रो हाथ
सामी रूं अन्याव रे, नीत-धरम रे साथ
जगमग जगमग दीवला, मावस में परभात
गाँव-गुवाङी चाँदणौ, कद होसी रुघनाथ
मंस-बली ना माँगती, सब जीवाँ री मात
दारू माँ री भेंट रो, भोपाजी गटकात
तोक लियो कैलास ने, रावण निज भुजपाण
नाभ अनय री भेद दी, एक राम रो बाण
कलजुग में दसमाथ रा,होग्या सौ सौ माथ
राम कठै घुस्या फरै, सीता इब बेनाथ
बरसां जूनी रीत है, बालां पुतलो घास
रावण मन रो बाळ लां, चारुं मेर उजास
जसयो हूं आछो बुरो, थारो हूं मैं मात
पत म्हारी भी राखजे, उजळी करजे रात
बायण थारे देवले, शीस झुकाऊं आर
सब पर किरपा राखजे, बाडोली दातार
शब्दार्थ-खांडा-तलवार,दुबलां -कमज़ोर, रे-के, लार-साथ,
सगती-शक्ति
सामी-सामने/विरुद्ध,रूं-रहूं,मावस-अमावस,गाँव-गुवाङी-गाँव तथा बस्ती
चाँदणौ-उजाला,कद-कब,रुघनाथ-रघुनाथ,मंस-माँस, भोपाजी-पुजारी
चारुं मेर -चारों तरफ़,बायण-एक
लोक देवी ,आर-आकर, बाडोली -क्षेत्र विशेष की लोकदेवी
जे अम्बे
खुरशीद'खैराड़ी' , जोधपुर
मज़ा आ गया भाई। कुछ भी कहो देशी टेस्ट की बात ही अलग है। खैराड़ी भले ही हमारी माँ-बोली
नहीं है पर ऐसा लाग्या खुर्शीद सा जी की आपणाँ मायड-बोली माँ ई बोल रया सी। भाई आप
का बहुत-बहुत आभार, आप ने आयोजन का क्या ख़ूब श्री-गणेश किया है, जियो भाई, ख़ुश रहो।
दोस्तो ये वही दोहे हैं जो मैं कहना चाहता हूँ आप कहना चाहते हैं या कोई भी ललित
कला प्रेमी कहना चाहेगा। यह विशेषता है इन दोहों की। इन में कुछ दोहे कुछ ज़ियादा ही
ख़ास हैं, मुझे ख़ुशी होगी यदि उन दोहों को आप लोग कोट
करें। तो साथियो आप आनन्द लीजिये इन दोहों का और मैं बढ़ता हूँ अगली पोस्ट की तरफ़। मुझे
ख़ुशी होगी यदि आप लोग अपनी-अपनी माँ-बोली में कम से कम एक दोहा लिख कर भेजने की कृपा
करें।
विशेष निवेदन :- हाथ में पीलू की बेंत लिएँ घूमत भए मास्साब
इधर आउते चीन्हौ तो कै दीजो कि जै बच्चन की किलास ए।
नमस्कार।