हम उनको प्यार करते हैं
उन्हें अपना समझते हैं।
हमारा दर्द ये है वो हमें
झूठा समझते हैं॥
सियासी गुफ़्तगू मत
कीजिये तकलीफ़ होती है।
ज़ुबाँ चुप है मगर हम
आपका लहजा समझते हैं॥
कहा कुरुक्षेत्र में
श्रीकृष्ण ने आगे बढ़ो अर्जुन।
ये सारे दुष्ट केवल युद्ध
की भाषा समझते हैं॥
ये कैसा दौर है बेटे
नसीहत भी नहीं सुनते।
इधर हम आज भी माँ- बाप का
चेहरा समझते हैं॥
हम अपने ख़ून से जिस
सरज़मीं को सींचते आये।
सियासतदाँ उसे चौपाल का
हुक्का समझते है॥
*
समंदर
के जिगर में आजकल सहरा निकलता है।
जिसे
भी मोम कहता हूँ वही शीशा निकलता है॥
र'वादारी
, मोहब्बत , दोस्ती , एहसान ,
कुर्बानी।
हमारे
दौर में हर रंग क्यों कच्चा निकलता है॥
सियासत
फूल में , पत्तों में ,काँटों में , हवाओं
में।
जिसे
सच्चा समझता हूँ ,
वही झूठा निकलता है॥
सियासत
में कई अनहोनियाँ होती ही रहती हैं।
यहाँ
अमरूद के पौधे से चिलगोज़ा निकलता है॥
इसी
जम्हूरियत के ख़्वाब ने जी भर हमें लूटा।
मैं
जो सिक्का उठाता हूँ वही खोटा निकलता है॥
बदलते
मौसमों में हाल है ऐसा गुलाबों का।
जहाँ
से इत्र मिलता था वहाँ सिरका निकलता है॥
*
घर में बैठे रहें तो
भीगें कब।
बारिशों से बचें तो भीगें
कब॥
पत्थरों का मिज़ाज रख के
हम।
यूँ ही ऐंठे रहें तो
भीगें कब॥
आँसुओं का लिबास आँखों पर।
ये भी सूखी रहें तो भीगें
कब॥
जिस्म कपडें का जान
पत्तों की।
हम भी काग़ज़ बनें तो
भीगें कब॥
उनके बालों से गिर रही
बूँदें।
हम ये शबनम पियें तो
भीगें कब॥
तेरे हाथों में हाथ साहिल
पर।
अब न आगे बढ़ें तो भीगें
कब॥
दूर तक बादलों का गीलापन।
और हम घर चलें तो भीगें
कब॥
*
बदली
नज़र जो उसने तो मंज़र बदल गये।
क़ातिल
वही हैं हाथ के खंज़र बदल गये॥
किसका
करें यक़ीन करें किस पे एतबार।
दरिया
की प्यास देख समंदर बदल गये॥
गाँधी
निराश हो के यही देखते रहे।
आबो-
हवा के साथ ही बंदर बदल गये॥
दुनिया
को जीतने की हवस दिल में रह गयी।
होके
कफ़न में क़ैद सिकन्दर बदल गये॥
अरसे
के बाद लौटा हूँ मैं अपने गाँव में।
हैरान
हूँ कि राह के पत्थर बदल गये॥
*
जफ़ायें
साथ चलती हैं ख़तायें साथ चलती हैं।
मैं
मुजरिम हूँ मेरी सारी सज़ायें साथ चलती हैं॥
चरागों
को तभी इस युद्ध का एहसास होता है।
खुले
मैदान में जब भी हवायें साथ चलती हैं॥
हमारी
ज़िंदगी इस दौर की है इक महाभारत।
यहाँ
सच- झूठ की सारी कथायें साथ चलती हैं॥
यहाँ
भगवान भी हर एक को ख़ुश रख नहीं सकते।
ये
दुनिया है यहाँ आलोचनायें साथ चलती हैं॥
मुझे
मायूसियाँ अक्सर डराती हैं मगर लोगो।
हर
इक मुश्किल में मेरी आस्थायें साथ चलती हैं॥
*
रामबाबू रस्तोगी