![Pramod Bajpai's profile photo](https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-1/p160x160/12188933_887539554628801_8339675650203867363_n.jpg?oh=5ed1f79f4fa408ea2f079421b07f1872&oe=584AF6D8)
प्रमोद वाजपेयी
क्या
फागुन की मस्ती, क्या उल्लास।
अपने
घर तो सावन – बारह मास॥
बरसे
मधु पर कैसे खेलें फाग।
सुलग
रही बिरहा की तन में आग।
बुझे
न खारे पानी से यह प्यास॥
अपने
घर तो सावन बारह मास॥
पिया
गये परदेस न देते धीर।
कौन
हरे इस व्याकुल मन की पीर।
टूटी
सब उम्मीदें हर विश्वास॥
प्रमोद वाजपेयी
9899035885
कवि ने यह बरवै-गीत एक प्रयोग के बतौर रचा है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें