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सोरठा - दोहा गीत - संजीव वर्मा 'सलिल'

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संजीव वर्मा 'सलिल'


सोरठा - दोहा गीत 
संबंधों की नाव 
*
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही। 
अनचाहा अलगाव,
नदी-नाव-पतवार में।। 
*
स्नेह-सरोवर सूखते,
बाकी गन्दी कीच। 
राजहंस परित्यक्त हैं,
पूजते कौए नीच।।
नहीं झील का चाव,
सिसक रहे पोखर दुखी।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
कुएँ - बावली में नहीं,
शेष रहा विश्वास। 
निर्झर आवारा हुआ,
भटके ले निश्वास।।
घाट घात कर मौन,
दादुर - पीड़ा अनकही। 
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
ताल - तलैया से जुदा,
देकर तीन तलाक। 
जलप्लावन ने कर दिया,
चैनो - अमन हलाक।।
गिरि खोदे, वन काट 
मानव ने आफत गही। 
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।। 
***



आदरणीय संजीव वर्मा सलिल जी पिंगलीय छंदों पर बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उपरोक्त गीत उन की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। प्रायोगिक तौर पर सलिल जी ने दोहा और सोरठा के शिल्प को इस्तेमाल करते हुये दोहा-सोरठा गीत रचा है।

डॉक्टर खुद को खुदा समझ ले - सञ्जीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य सञ्जीव वर्मा सलिल

  
डॉक्टर खुद को खुदा समझ ले
तो मरीज़ को राम बचाये

लेते शपथ न उसे निभाते
रुपयों के मुरीद बन जाते
अहंकार की कठपुतली हैं
रोगी को नीचा दिखलाते
करें अदेखी दर्द-आह की
हरना पीर न इनको भाये
डॉक्टर खुद को खुदा समझ ले
तो मरीज़ को राम बचाये

अस्पताल या बूचड़खाने?
डॉक्टर हैं धन के दीवाने
अड्डे हैं ये यम-पाशों के
मँहगी औषधि के परवाने
गैरजरूरी होने पर भी
चीरा-फाड़ी बेहद भाये
डॉक्टर खुद को खुदा समझ ले
तो मरीज़ को राम बचाये

शंका-भ्रम घबराहट घेरे
कहीं नहीं राहत के फेरे
नहीं सांत्वना नहीं दिलासा
शाम-सवेरे सघन अँधेरे
गोली-टॉनिक कैप्सूल दें
आशा-दीप न कोई जलाये
डॉक्टर खुद को खुदा समझ ले

तो मरीज़ को राम बचाये

छन्दालय - 9 मात्रा वाले छन्द - आ. सञ्जीव वर्मा 'सलिल'

हिंदी के मात्रिक छंद : २
९ मात्रा के आंक जातीय छंद : गंग / निधि

विश्व वाणी हिंदी का छांदस कोश अप्रतिम, अनन्य और असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदों  के साथ-साथ अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ तथा पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलिओं के छंदों को अपनाकर तथा उन्हें अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी छंद शास्त्र के विकास में  ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।

विविध अंचलों में लंबे समय तक विविध पृष्ठभूमि के रचनाकारों द्वारा व्यवहृत होने से हिंदी में शब्द विशेष को एक अर्थ में प्रयोग करने के स्थान पर एक ही शब्द को विविधार्थों में प्रयोग करने का चलन है। इससे अभिव्यक्ति में आसानी तथा विविधता तो होती है किंतु शुद्घता नहीँ रहती। विज्ञान विषयक विषयों के अध्येताओं तथा हिंदी सीख रहे विद्यार्थियों के लिये यह स्थिति भ्रमोत्पादक तथा असुविधाकारक है। रचनाकार के आशय को पाठक ज्यों  का त्यो ग्रहण कर सके इस हेतु हम छंद-रचना में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के साथ प्रयोग किया जा रहा अर्थ विशेष यथा स्थान देते रहेंगे।

अक्षर / वर्ण = ध्वनि की बोली या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई।
शब्द = अक्षरों का सार्थक समुच्चय।
मात्रा / कला / कल = अक्षर के उच्चारण में लगे समय पर आधारित इकाई।
लघु या छोटी  मात्रा = जिसके उच्चारण में इकाई समय लगे।  भार १, यथा अ, , , ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर
दीर्घ, हृस्व या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में अधिक समय लगे। भार २, उक्त लघु अक्षरों को छड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)।
पद = पंक्ति, चरण समूह।
चरण = पद का भाग, पाद।
छंद = पद समूह।
यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
छंद लक्षण = छंद की विशेषता जो उसे अन्यों से अलग करतीं है।
गण = तीन अक्षरों का समूह विशेष (गण कुल ८ हैं, सूत्र: यमाताराजभानसलगा के पहले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को मिलाकर गण विशेष का मात्राभार  / वज़्न तथा मात्राक्रम इंगित करता है. गण का नाम इसी वर्ण पर होता है। यगण = यमाता = लघु गुरु गुरु = ४, मगण = मातारा = गुरु गुरु गुरु = ६, तगण = ता रा ज = गुरु गुरु लघु = ५, रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु = ५, जगण = जभान = लघु गुरु लघु = ४, भगण = भानस = गुरु लघु लघु = ४, नगण = न स ल = लघु लघु लघु = ३, सगण = सलगा = लघु लघु गुरु = ४)।
तुक = पंक्ति / चरण के अन्त में  शब्द/अक्षर/मात्रा या ध्वनि की समानता ।
गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम।
सम छंद = जिसके चारों चरण समान मात्रा भार के हों।
अर्द्धसम छंद = जिसके सम चरणोँ का मात्रा भार समान तथा विषम  चरणों का मात्रा भार एक सा  हो किन्तु सम तथा विषम चरणोँ क़ा मात्रा भार समान न हों।
विषम छंद = जिसके चरण असमान हों।
लय = छंद  पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़।
छंद भेद =  छंद के प्रकार।
वृत्त = पद्य, छंद, वर्स, काव्य रचना । ४ प्रकार- क. स्वर वृत्त, ख. वर्ण वृत्त, ग. मात्रा वृत्त, घ. ताल वृत्त।
जाति = समान मात्रा भार के छंदों का  समूहनाम।
प्रत्यय = वह रीति जिससे छंदों के भेद तथा उनकी संख्या जानी जाए। ९ प्रत्यय: प्रस्तार, सूची, पाताल, नष्ट, उद्दिष्ट, मेरु, खंडमेरु, पताका तथा मर्कटी।
दशाक्षर = आठ गणों  तथा लघु - गुरु मात्राओं के प्रथमाक्षर य म त र ज भ न स ल ग ।
दग्धाक्षर = छंदारंभ में वर्जित लघु अक्षर - झ ह  र भ ष। देवस्तुति में प्रयोग वर्जित नहीं।
गुरु या संयुक्त दग्धाक्षर छन्दारंभ में प्रयोग किया जा सकता है।
                                                                                   
नौ मात्रिक छंद / आंकिक छंद

जाति नाम आंक (नौ अंकों के आधार पर), भेद ५५संकेत: नन्द:, निधि:, विविर, भक्ति, नग, मास, रत्न, रंग, द्रव्य, नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री। गृह: सूर्य/रवि , चन्द्र/सोम, गुरु/बृहस्पति, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु, कुंद:, गौ:,
नौगजा नौ गज का वस्त्र/साड़ी, नौरात्रि शक्ति ९ दिवसीय पर्व।, नौलखा नौ लाख का (हार),
नवमी ९ वीं तिथि आदि।

वासव छंदों के ३४ भेदों की मात्रा बाँट लघु-गुरु मात्रा संयोजन के आधार पर ५ वर्गों में निम्न अनुसार होगी:

अ वर्ग. ९ लघु: (१)- १. १११११११११

आ वर्ग. ७ लघु १ गुरु: (८)- २. १११११११२ ३. ११११११२१, ४. १११११२११, ५. ११११२१११, ६. १११२११११, ७. ११२१११११, ८. १२११११११, ९. २१११११११

इ वर्ग. ५ लघु २ गुरु: (२१)- १०. १११११२२, ११. ११११२१२, १२. १११२११२, १३. ११२१११२, १४, १२११११२, १५. २१११११२, १६. २११११२१, १७. २१११२११, १८. २११२१११, १९. २१२११११, २०. २२१११११, २१. १२२११११, २२. ११२२१११, २३. १११२२११, २४. ११११२२१, २५.१२१२१११, २६. ११२१२११, २७.१११२१२१, २८.१२११२११, २९.११२११२१, ३०. १२१११२१

ई वर्ग. ३ लघु ३ गुरु: (२०) ३१. १११२२२, ३२. ११२१२२, ३३. ११२२१२, ३४. ११२२२१, ३५. १२१२२१, ३६. १२१२१२, ३७. १२११२२, ३८. १२२११२, ३९. १२२१२१, ४०. १२२१२११, ४१. २१११२२, ४२. २११२१२, ४३. २११२२१, ४४.२१२११२, ४५. २१२१२१, ४६. २१२२११, ४७. २२१११२, ४८. २२११२१, ४९. २२१२१२, ५०. २२२१११ 

उ वर्ग. १ लघु ४ गुरु: (५)  ५१.१२२२२, ५२. २१२२२, ५३. २२१२२, ५४. २२२१२, ५५. २२२२१

छंद की ४ या ६ पंक्तियों में विविध तुकान्तों प्रयोग कर और भी अनेक उप प्रकार रचे जा सकते हैं।

छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ९ मात्रा
लक्षण छंद:

आंक छंद रचें,
नौ हों कलाएं।
मधुर स्वर लहर
गीत नव गाएं।

उदाहरण:

सूरज उगायें,
तम को भगायें।
आलस तजें हम-
साफल्य पायें।
***
निधि छंद: ९ मात्रा
*
लक्षण: निधि नौ मात्रिक छंद है जिसमें चरणान्त में लघु मात्रा होती है. पद (पंक्ति) में चरण संख्या एक या अधिक हो सकती है.
लक्षण छंद:
नौ हों कलाएं,
चरणांत लघु हो
शशि रश्मियां ज्यों
सलिल संग विभु हो
उदाहरण :

१. तजिए न नौ निधि
   भजिए किसी विधि
   चुप मन लगाकर-
   गहिए 'सलिल' सिधि

२. रहें दैव सदय, करें कष्ट विलय
   मिले आज अमिय, बहे सलिल मलय
   मिटें असुर अजय, रहें मनुज अभय
   रचें छंद मधुर, मिटे सब अविनय

३. आओ विनायक!, हर सिद्धि दायक
   करदो कृपा अब, हर लो विपद सब
   सुख-चैन दाता, मोदक ग्रहण कर
   खुश हों विधाता, हर लो अनय अब 

=====================

गंग छंद: ९ मात्रा
*
लक्षण: जाति आंक, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ९, चरणान्त गुरु गुरु

लक्षण छंद:
नयना मिलाओ, हो पूर्ण जाओ,
दो-चार-नौ की धारा बहाओ 
लघु लघु मिलाओ, गुरु-गुरु बनाओ
आलस भुलाओ, गंगा नहाओ

उदाहरण:

१. हे गंग माता! भव-मुक्ति दाता
   हर दुःख हमारे, जीवन सँवारो
   संसार की दो खुशियाँ हजारों
   उतर आस्मां से आओ सितारों
   ज़न्नत ज़मीं पे नभ से उतारो
   हे कष्टत्राता!, हे गंग माता!!

२. दिन-रात जागो, सीमा बचाओ
    अरि घात में है, मिलकर भगाओ
    तोपें चलाओ, बम भी गिराओ
    सेना अकेली न हो सँग आओ    

३. बचपन हमेशा चाहे कहानी
    हँसकर सुनाये अपनी जुबानी
    सपना सजायें, अपना बनायें
    हो ज़िंदगानी कैसे सुहानी?

********

छन्दालय - 8 मात्रा वाले छन्द - आ. सञ्जीव वर्मा 'सलिल'

छन्दालय


प्रयास


www.rekhta.org
रेख़्ता उर्दू शायरी का ऑन-लाइन ख़ज़ाना


      पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश के सांस्कृतिक नक्शे में एक बड़ी ख़ूबसूरत और हैरत में डालनी वाली तब्दीली आ रही है। यह बदलाव अभी पूरी तरह सतह पर नहीं आया है, इसलिए लोगों की नज़रों में भी नहीं आ सका है, लेकिन बहुत जल्द यह अपनी ताकतवर मौजूदगी का एलान करने वाला है। यह बदलाव है उर्दू शायरी से उन लोगों की बढ़ती हुई दिलचस्पी जो उर्दू नहीं जानते लेकिन उर्दू ग़ज़ल की शायरी को दिल दे बैठे हैं। उर्दू शायरी से दीवानगी की हद तक बढ़ी हुई यह दिलचस्पी इन लोगों को, जिनमें बड़ी तादाद नौजवानों की है, ख़ुद शायरी करने की राह पर ले जा रही है। इसके लिए बहुत से लोग उर्दू लिपि सीख रहे हैं। इस वक़्त पूरे देश में उर्दू शायरी के दीवाने तो लाखों हैं मगर कम से कम पाँच हज़ार नौजवान लड़के-लड़कियाँ हैं जो किसी न किसी रूप और सतह पर उर्दू शायरी पढ़ और लिख रहे हैं। 

      उर्दू शायरी के इन दीवानों को जिनकी तादाद बढ़ती जा रही है, कुछ दुश्वारियों का सामना भी करना पड़ता है। सब से बड़ी मुश्किल यह है कि पुराने और नए उर्दू शायरों का कलाम प्रमाणिक पाठ के साथ एक जगह हासिल नहीं हो पाता। ज़्यादातर शायरी देवनागरी में उपलब्ध नहीं है, और है भी तो आधी-अधूरी और बिखरी हुई। किताबें न मिलने की वजह से अधिकतर लोग इंटरनेट का सहारा लेते हैं मगर वहां भी उनकी तलाश को मंज़िल नहीं मिलती।

      लेकिन अब उर्दू शायरी पढ़ने और सुनने की प्यास और तलाश की एक मंज़िल मौजूद है- वह है सारी दुनिया में उर्दू शायरी की पहली प्रमाणिक और विस्तृत वेब-साइट ‘रेख़्ता’ ..... । उर्दू शायरी की इस ऑन-लाइन पेशकश का लोकार्पण 11 जनवरी, 2013 को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री जनाब कपिल सिब्बल जी ने किया था। इस वेब-साइट का दफ़्तर नोएडा में है।



      ‘रेख़्ता’ एक उद्योगपति श्री संजीव सराफ़ की, उर्दू शायरी से दीवनगी की हद तक पहुँची हुई मोहब्बत का नतीजा है। दूसरों की तरह उन्हें भी उर्दू शायरी को देवनागरी लिपि में हासिल करने में दुश्वारी हुई, तो उन्होंने अपने जैसे लोगों को उनकी महबूब शायरी उपलब्ध कराने के लिए ‘रेख़्ता’ जैसी वेब-साइट बनाने का फैसला किया, और इसके लिए ‘रेख़्ता फाउंडेशन’ की नींव रखी गई।

      शुरू होते ही यह वेब-साइट एक ख़ुश्बू की तरह हिन्दोस्तान और पाकिस्तान और सारी दुनिया में मौजूद उर्दू शायरी के दीवानों में फैल गई। लोगों ने इसका स्वागत ऐसी ख़ुशी के साथ किया जो किसी नदी को देख कर बहुत दिन के प्यासों को होती है। दिलचस्प बात यह है कि उर्दू शायरी की इतनी भरपूरी वेब-साइट आज तक पाकिस्तान में भी नहीं बनी, जहाँ की राष्ट्रभाषा उर्दू है। ‘रेख़्ता’, सारी दुनिया के उर्दू शायरी के आशिकों को, उर्दू की मातृभूमि हिन्दोस्तान का ऐसा तोहफ़ा है जो सिर्फ वही दे सकता है।

      रेख्ता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें 300 साल की उर्दू शायरी का प्रमाणिक पाठ, उर्दू, देवनागरी और रोमन लिपियों में उपलब्ध कराया गया है। अब तक लगभग 1000 शायरों की लगभग 10,000 ग़ज़लें अपलोड की जा चुकी हैं। इनमें मीर, ग़ालिब, ज़ौक़, मोमिन, आतिश और दाग़ जैसे क्लासिकल शायरों से लेकर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, साहिर लुधियानवी, अहमद फ़राज़, शहरयार, निदा फ़ाज़ली, कैफ़ी आज़मी जैसे समसामयिक शायरों का कलाम शामिल है। कोशिश की गई है प्रसिद्ध और लोकप्रिय शायरों का अधिक से अधिक प्रतिनिधि कलाम पेश किया जाये। लेकिन ऐसे शायरों की भी भरपूर मौजूदगी को सुनिश्चित किया गया है, जिनकी शायरी मुशायरों से ज़्यादा किताब के पन्नों पर चमकती है। शायरी को पढ़ने के साथ-साथ ऑडियो सेक्शन में इसे सुना भी जा सकता है। इस के अलावा बहुत से शायरों की प्रसिद्ध गायकों द्वारा गायी गई ग़ज़लें भी पेश की गई हैं।

      ‘रेख़्ता’ का अपना ऑडियो और वीडियो स्टूडियो भी है जहाँ शायरों को बुलाकर उनकी ऑडियो-वीडियो रिकार्डिंग की जाती है। नवोदित शायरों को एक जीवंत प्लेटफार्म देना ‘रेख़्ता’ का एक ख़ास मक़सद है, जिसके तहत कवि-गोष्ठियाँ की जाती है और उनकी रिकार्डिंग पर उपलब्ध कराई जाती है।



आचार्य सञ्जीव वर्मा सलिल


हिंदी के मात्रिक छंद : १
 ८ मात्रा : अखंड, छवि,मधुभार, वासव,
संजीव
*
विश्व वाणी हिंदी का छांदस कोश अप्रतिम, अनन्य और असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदों  के साथ-साथ अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ तथा पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलिओं के छंदों को अपनाकर तथा उन्हें अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी छंद शास्त्र के विकास में  ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।

विविध अंचलों में लंबे समय तक विविध पृष्ठभूमि के रचनाकारों द्वारा व्यवहृत होने से हिंदी में शब्द विशेष को एक अर्थ में प्रयोग करने के स्थान पर एक ही शब्द को विविधार्थों में प्रयोग करने का चलन है। इससे अभिव्यक्ति में आसानी तथा विविधता तो होती है किंतु शुद्घता नहीँ रहती। विज्ञान विषयक विषयों के अध्येताओं तथा हिंदी सीख रहे विद्यार्थियों के लिये यह स्थिति भ्रमोत्पादक तथा असुविधाकारक है। रचनाकार के आशय को पाठक ज्यों  का त्यो ग्रहण कर सके इस हेतु हम छंद-रचना में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के साथ प्रयोग किया जा रहा अर्थ विशेष यथा स्थान देते रहेंगे।

अक्षर / वर्ण = ध्वनि की बोली या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई।
शब्द = अक्षरों का सार्थक समुच्चय।
मात्रा / कला = अक्षर के उच्चारण में लगा समय।
लघु या छोटी  मात्रा = जिसके उच्चारण में इकाई समय लगे।  भार १, यथा अ, , , ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर
दीर्घ, हृस्व या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में अधिक समय लगे। भार २, उक्त लघु अक्षरों को छड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)।
पद = पंक्ति, चरण समूह।
चरण = पद का भाग, पाद।
छंद = पद समूह।
यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
छंद लक्षण = छंद की विशेषता जो उसे अन्यों से अलग करतीं है।
गण = तीन अक्षरों का समूह विशेष (गण कुल ८ हैं, सूत्र: यमाताराजभानसलगा के पहले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को मिलाकर गण विशेष का मात्राभार  / वज़्न तथा मात्राक्रम इंगित करता है. गण का नाम इसी वर्ण पर होता है)।
तुक = पंक्ति / चरण के अन्त में  ध्वनि की समानता ।
गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम।
सम छंद = जिसके चारों चरण समान मात्रा भार के हों।
अर्द्धसम छंद = जिसके सम चरणोँ का मात्रा भार समान तथा विषम  चरणों का मात्रा भार एक सा  हो किन्तु सम तथा विषम चरणोँ क़ा मात्रा भार समान न हों।
विषम छंद = जिसके चरण असमान हों।
लय = छंद  पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़।
छंद भेद =  छंद के प्रकार।
वृत्त = पद्य, छंद, वर्स, काव्य रचना । ४ प्रकार- क. स्वर वृत्त, ख. वर्ण वृत्त, ग. मात्रा वृत्त, घ. ताल वृत्त।
जाति = समान मात्रा भार के छंदों का  समूहनाम।
प्रत्यय = वह रीति जिससे छंदों के भेद तथा उनकी संख्या जानी जाए। ९ प्रत्यय: प्रस्तार, सूची, पाताल, नष्ट, उद्दिष्ट, मेरु, खंडमेरु, पताका तथा मर्कटी।
दशाक्षर = आठ गणों  तथा लघु - गुरु मात्राओं के प्रथमाक्षर य म त र ज भ न स ल ग ।
दग्धाक्षर = छंदारंभ में वर्जित लघु अक्षर - झ ह  र भ ष। देवस्तुति में प्रयोग वर्जित नहीं। 
गुरु या संयुक्त दग्धाक्षर छन्दारंभ में प्रयोग किया जा सकता है।                                                                                    
अष्ट मात्रिक छंद / वासव छंद

जाति नाम वासव (अष्ट वसुओं के आधार पर), भेद ३४ संकेत: वसु, सिद्धि, विनायक, मातृका, मुख्य छंद: अखंड, छवि,मधुभार आदि।

वासव छंदों के ३४ भेदों की मात्रा बाँट निम्न अनुसार होगी:

अ. ८ लघु: (१) १. ११११११११,
आ. ६ लघु १ गुरु: (७) २. ११११११२ ३. १११११२१, ४. ११११२११, ५. १११२१११, ६. ११२११११, ७. १२१११११, ८. २११११११,
इ. ४ लघु २ गुरु: (१५) ९. ११११२२, १०. १११२१२, ११. १११२२१, १२, ११२१२१, १३. ११२२११, १४, १२१२११, १५. १२२१११ १६. २१२१११, १७. २२११११, १८. ११२११२,, १९. १२११२१, २०. २११२११, २२. १२१११२, २३. २१११२१,
ई. २ लघु ३ गुरु: (१०) २४. ११२२२, २५. १२१२२, २६. १२२१२, २७. १२२२१, २८. २१२२१, २९. २२१२१, ३०. २२२११, ३१. २११२२, ३२. २२११२, ३३. २१२१२
उ. ४ गुरु: (१) २२२२

छंद की ४ या ६ पंक्तियों के में इन भेदों का प्रयोग कर और अनेक उप प्रकार रचे जा सकते हैं.

छंद लक्षण: प्रति चरण ८ मात्रा

लक्षण छंद:
अष्ट कला चुन / वासव रचिए


उदाहरण:

१. करुणानिधान! सुनिए पुकार
   रख दास-मान, भव से उबार  

२. कर ले सितार, दें छेड़ तार
   नित तानसेन, सुध-बुध बिसार

३. जब लोकतंत्र, हो लोभतंत्र
    बन कोकतंत्र, हो शोकतंत्र

--------
अखण्ड छंद
*
छंद-लक्षण: वासव जाति, ४ चरण (प्रति चरण ८ मात्रा), कुल ३२ मात्राओं का छंद है.

लक्षण छंद:

चार चरण से दो पद रचिए,
छंद अखंड न बंधन रखिए।
चरण-चरण हो अष्ट मात्रिक,
गति लय भाव बिम्ब रस लखिए।

उदाहरण:
१. सुनो प्रणेता, बनो विजेता
    कहो कहानी नित्य सुहानी
    तजो बहाना वचन निभाना
    सजन सजा ना! साज बजा ना!
    लगा डिठौना, नाचे छौना
    चाँद चाँदनी, पूत पावनी
    है अखंड जग, आठ दिशा मग
    पग-पग चलना, मंज़िल वरना

२. कवि जी युग की करुणा लिखा दो
    कविता अरुणा-वरुणा लिख दो
    सरदी-गरमी-बरखा लिख दो
    बुझना जलना चलना लिख दो
    रुकना, झुकना, तनना लिख दो
    गिरना-उठना-बढ़ना लिख दो
    पग-पग सीढ़ी चढ़ना लिख दो

छवि छंद
*
छंद लक्षण: जाति वासव, प्रति चरण  ८ मात्रा चरणान्त गुरु गुरु (यगण, मगण)

लक्षण छंद:

सुछवि दिखाना, मत तरसाना
अष्ट कलाएँ , य-म गण भाएँ

उदाहरण:
१. करुणानिधान! सुनिए पुकार
   रख दास-मान, भव से उबार  

२. कर ले सितार, दें छेड़ तार
   नित तानसेन, सुध-बुध बिसार

३. जब लोकतंत्र, हो लोभतंत्र
    बन कोकतंत्र, हो शोकतंत्र

मधुभार छंद : ८ मात्रा
*
छंद लक्षण: मधुभार अष्टमात्रिक छंद है. इसमें ३ -५ मात्राओं पर यति और चरणान्त में लघु-गुरु-लघु (जगण) होता है.

लक्षण छंद : वसु, सिद्धि, विनायक, मातृका

चुन अष्ट कला, त्रै - पांच भला
यजण चरणान्त, मधुभार ढला 

उदाहरण:

१. सहे मधुभार / सुमन गह सार
   त्रिदल अरु पाँच / अष्ट छवि साँच

२. सुनो न हिडिम्ब / चलो अविलंब
     बनो  मत खंब / सदय अब अंब


आचार्य सञ्जीव वर्मा सलिल

9425183144