मम्मी…. मम्मी... पापा कहां है। बैठे होंगे अपने पियक्कड़ दोस्तों के बीच। क्या हुआ? कमला ने पूछा।मम्मी तुम्हारा लाडला राकेश हरिद्वार के अस्पताल में भर्ती है उसके दोस्त का फोन आया है। यह कब गया? कौन से पाप धोने गया है? कमला धीरे से बोली बेटा,
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कहानी - भूख - रचना निर्मल
मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन और अनलिमिटेड डाटा के रूप में चालीस साल की रीमा के हाथ मशहूर होने का नायाब तरीका लग गया था। वो कहीं भी किसी भी जगह यानि पार्क, सड़क, बाज़ार,माॅल, मेट्रो, रेस्टरां घर के किसी कोने में खड़ी हो कर कुछ भी स्टाइल से बोलकर, अपने यूट्यूब चैनल,इंस्टा या फेसबुक पर पोस्ट कर देती थी।
बस... सिलसिला शुरू हो जाता था लाइक देखने का और कमैंट्स पर थैंक्यू कहने का । कहीं भी हो, उसके कान नोटिफिकेशन की टुन पर लगे रहते थे । खुद से ही कहती थी," "वाऊ,रीमा यू
कहानी फ़ोटो जर्नलिस्ट – डॉ. वरुण सूथरा
कहानी
फ़ोटो
जर्नलिस्ट – डॉ. वरुण सूथरा
लेकिन उसे अपने काम के लिए जुनून था, वो
हर तस्वीर में जान डाल देता था। जब तक उसे संतोष न हो जाए, तब
तक वो एक ही तस्वीर को बार-बार खींचता था। उसका लोगों से बात करने का ढंग भी इतना
आकर्षक होता था कि बार-बार कहने पर भी, सब बिना किसी हिचक अथवा गुस्से के अलग-अलग
पोज में फोटो खिंचवाने को तैयार हो जाते थे। उस दिन शहर के मशहूर व्यापारी प्रीतम
कुमार के बेटे की शादी थी, जहां एक बड़े फोटोग्राफर ने पूरे
समारोह की फोटो खींचने का ठेका ले रखा था, उसने मनोहर को भी
इस आयोजन में तीन सौ रूपये दिहाड़ी पर काम दिया था। उस रात की ठण्ड में भी मनोहर का
जोश कम नहीं हुआ था।
लगातार बढ़ती ठण्ड में भी उसकी बातों
की गर्माहट के कारण लोगों को उसके कहने के मुताबिक पोज बनाने में कोई परहेज नहीं
हो रहा था। वो किसी को भी जब मुस्कुरा कर फोटो खिंचवाने को कहता था तो लोग हँस के
उसकी बात मान लेते थे और जो कोई उसी समय अपनी फोटो देखना चाहता, तो वो पास जाकर
डिजिटल कैमरा में उन्हें दिखा देता और खुद ही कह देता कि बहुत कमाल की फोटो आई है।
ये देखिये सर, क्या लग
रहे हैं इस तस्वीर में आप। आपको तो इस फोटो को बड़ा करवाकर अपने बैडरूम में लगाना
चाहिए ताकि आप रोज सुबह उठकर अपना ये हंसता हुआ चेहरा देखें। अगर आप कहें तो मैं
ऑर्डर में लिख दूं, फोटो दो दिन में आपके घर पहुंच जाएगी।
लिख लो भाई, लिख
लो बताओ क्या पेमेंट करनी है, हम अभी किए देते हैं।
साहिब उसकी कोई चिंता नहीं, वो
तब ले लेंगे जब आपको यह फोटो पहुंचेगी।
इस तरह मनोहर अपने हुनर और स्वभाव के
कारण कुछ और रूपये भी बना लेता था क्योंकि एक बात उसके अवचेतन मन में हमेशा ही
रहती थी कि उसके पास सीजन रहने तक का ही मौका है। एक बार शादियों का सीजन गया तो
फिर गुरबत का एक लम्बा दौर उसे परेशान करने के लिए तैयार था। यही वो समय था जब वो
अपने पुराने उधार चुका सकता था ताकि फिर से उधार के नए खाते शुरू कर सके, इसी
समय वो अपनी बीवी के साथ प्यार के कुछ पल बिता सकता था क्योंकि आने वाला समय तो
फिर कलह और क्लेश का एक लम्बा दौर लेकर आएगा। इसी दौरान वो अपनी बेटी की कुछ
ख्वाहिशें पूरी कर सकता था, इस छोटे से समय में उसे अपनी
बेटी को हमेशा झूठ बोल कर टालना नहीं पड़ता था, जैसे कि साल
के बाकी समय उसकी हर मांग पर मनोहर को कोई न कोई बहाना बनाना पड़ता, यानी हर रोज उसे एक झूठे वादे के साथ सुलाना पड़ता ताकि उसकी आस बनी रहे।
मनोहर जब आठ साल का था तो उसके पिता
की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी, उनकी अपनी टैक्सी थी। एक बार
वो तीन विदेशी पर्यटकों को लेकर मनाली जा रहे थे तो रास्तें में गाड़ी फिसलकर खाई
में गिर गई और उसमें मौजूद सभी लोगों की मौत हो गई। उसके बाद मनोहर का जीवन बहुत
मुश्किलों भरा रहा, पिता की मृत्यु के तीन महीने बाद उसकी इकलौती
छोटी बहन भी चल बसी, वो पिता के गुजरने के बाद हमेशा बीमार
ही रहती थी। मां ने किसी तरह छोटा-मोटा काम करके मनोहर को आठवीं तक पढ़ाया और फिर
उसे किसी फोटोग्राफर की दुकान पर काम पर लगा दिया। मनोहर ने बहुत मेहनत से काम
सीखा और चार साल के अंदर एक दुकान किराये पर लेकर अपना काम शुरू कर दिया। कुछ समय
के बाद उसकी मां ने अपनी दूर की रिश्तेदारी में ही लक्ष्मी नाम की लड़की से उसकी
शादी करवा दी। शादी के सात महीने बाद मां भी चल बसी। मनोहर अपनी बीवी और बेटी
पल्लवी के साथ एक किराये के मकान में रहता था और अपनी छोटी सी दुकान भी चला रहा
था। मनोहर का काम पहले ठीक चल रहा था लेकिन अब नए आए डिजिटल कैमरा ने उसके काम को
खासा झटका दिया था। उसके पास अभी नई तकनीक का कैमरा नहीं था और न ही वो उन्हें
खरीदने के बारे में सोच सकता था। उसने कई बार कुछ पैसे उधार लेकर अपने काम को और
भी बढ़ाने के बारे में सोचा लेकिन अपने परिवार के हालात देखकर वो कभी हिम्मत नहीं
कर पाता था। प्रीतम कुमार के बेटे की शादी के तीन दिन बाद मनोहर ने उन सभी लोगों
के फोटो बड़े करवा लिए जिनसे उसने समारोह में देने को कहा था। उसने सात लोगों के
फोटो बनाये थे, छह फोटो देने के बाद वो आखिरी फोटो देने के
लिए एक बड़ी कोठी के बाहर पहुंचा। जब वो गेट से अंदर प्रवेश करने लगा तो वहां खड़े
दरबान ने उसे रोक लिया।
हां भाई कहां घुसा चला जा रहा है, कौन
है तू।
जी मुझे गुप्ता साहिब से मिलना है, उनका
यह फोटो है मेरे पास यह मुझे उन तक पहुंचाना है।
ला ये फोटो मुझे पकड़ा दे मैं पहुंचा
दूंगा।
नहीं ये मैं आपको नहीं दे सकता और
वैसे भी मुझे इसके पैसे भी लेने हैं।
उन दोनों में इस बात को लेकर बहस छिड़
गई, तभी गेट पर गुप्ता जी की गाड़ी भी पहुंच गई। ड्राईवर के हार्न करने पर भी
जब दरबान ने गेट नहीं खोला तो पीछे बैठे हुए गुप्ता जी ने पूछा कि ये दरबान किसके
साथ लगा हुआ है। वे गाड़ी से खुद नीचे उतरे तो मनोहर दौड़ के उनके पास जा पहुंचा,
दरबान उसे हटाने लगा तो मनोहर ने गुप्ता जी को शादी के समारोह का
हवाला देते हुए अपनी पहचान बताई। गुप्ता जी ने दरबान से कहा कि उस आदमी को अंदर
भेज दें।
करीब आधे घंटे बाद गुप्ता जी ने मनोहर
को अपने कमरे में बुलाया और उसका खींचा हुआ फोटो देखने लगे। मनोहर फोटो तो तुमने
बहुत अच्छा खींचा है,
वाकई तुम्हारे हाथ में कमाल है। लेकिन हम सोच रहे हैं कि तुम्हे
इसके पैसे न दिए जाएं। यह सुनते ही यूं तो मनोहर का मन खट्टा हो गया लेकिन उसका
जवाब बिल्कुल उलट था। साहेब आपको इस गरीब का काम पसंद आ गया, ये क्या कम है और मैंने आपसे पैसे मांगे ही कब।
हमने यह नहीं कहा कि तुम्हे कुछ नहीं
मिलेगा,
हमारे कहने का मतलब है कि तुम जैसे हुनरमंद आदमी को सिर्फ पैसे देना
ही काफी नहीं है। तुम इस काम से कितना ही कमा लेते होंगे, और
फिर न तो हमेशा सीजन रहता है और न ही हमेशा कद्रदान मिलते हैं। हम अगले महीने से
एक नया अखबार शुरू करने जा रहे हैं, तुम्हारा काम हमें पसंद
आया है, अगर तुम चाहो तो हम तुम्हें फोटो जर्नलिस्ट की नौकरी
दे सकते हैं। शुरू में तुम्हें 4500 रूपये महीना मिलेगा और
काम चल निकलने पर और भी बढ़ा देंगे। और हां यह लो तुम्हारी मेहनत। मनोहर अपने पैसे
लेकर घर वापिस आ गया और वही पैसे उसने घर के खर्च के लिए अपनी पत्नी को दे दिए।
उसने गुप्ता जी के प्रस्ताव के बारे में लक्ष्मी को बताया।
उस काम में क्या करना होगा आपको ?
मुझे भी पूरी तरह पता नहीं है, शायद
अखबार में फोटो खींचने वालों का काम होता है। मैं सोच रहा था कि वैसे भी दुकान से
कोई स्थायी आमदनी तो होती नहीं है, आठ सौ रूपये तो किराया ही
चला जाता है अगर मैं सेठ के यहां काम कर लूं तो बुरा ही क्या है और फिर जब कभी
सीजन या कोई खास समारोह हुआ तो अखबार के काम के साथ वो भी किया जा सकता है। उस रोज
की चर्चा के बाद फिर वो अपने काम में लग गया। अब दुकान से आमदनी रोज घटती ही जा
रही थी, उसकी कमाई से जोड़े हुए पैसे बेटी की स्कूल के एडमिशन
में ही चले गए थे। हाथ इतना तंग हो गया कि घर का राशन पूरा करना भी मुश्किल हो
गया। ऊपर से मकान और दुकान का किराया सिर पर आ गया। किसी तरह से वो चुकाया तो अब
हाथ और तंग हो गया, दो दिन तक मनोहर सिर्फ एक वक्त ही
रोटी खाकर रूपयों के इंतजाम के लिए जाता रहा। तीसरे दिन सुबह उठते ही उसे गुप्ता
जी के प्रस्ताव की याद आई, उसने उनका कार्ड निकाला और घर के
सामने फोन बूथ से जाकर नंबर मिलाया।
गुप्ता जी बोल रहे हैं।
यस, कौन बोल रहा है।
साहिब मैं, मनोहर
लाल बोल रहा हूं जिसने आपकी फोटो खिंची थी और आपने अखबार में काम करने का प्रस्ताव
दिया था।
हां, याद आया, लेकिन अब तो हमने एक आदमी रख लिया है, मैंने तुम्हे
दो दिन में जवाब देने को कहा था अब तो अखबार निकले भी महीना हो गया है। साहेब मैं
आपसे गुजारिश करता हूं, मुझे इस वक्त काम की बहुत जरूरत है,
तनख्वाह जो चाहे वो देना आप, लेकिन मैं काम में कोई शिकायत
नहीं आने दूंगा। ठीक है, तुम हमारे अखबार के दफ्तर चले जाओ,
वहां दिनेश जी होंगे। मैं उनसे कह देता हूं, अखबार
का नाम है महाराज टायम्स और दफ्तर नेताजी रोड पर है।
बहुत-बहुत धन्यवाद साहेब।
मनोहर ने गुप्ता जी के कहे अनुसार ही
किया और जाकर दिनेश जी से मिला, जो कि अखबार का मुख्य संपादक था। तुमने
पहले किसी अखबार में काम किया है। नहीं सर, बस अपना ही काम किया है। मतलब
सिर्फ शादियों में ही काम किया है, गुप्ता साहिब भी ना जाने
क्यूं प्रोफेशनल लोगों को छोड़कर अनाड़ियों को भर्ती कर लेते हैं, बाद में परेशानी मुझे ही होती है।
अच्छा ये बताओ तुम्हारे पास मोटर साइकिल है।
नहीं सर।
दिनेश ने अपने फोटो जर्नलिस्ट, महेश
को बुलाया और उससे कहा कि शहर में एक नए रेस्तरां का उद्घाटन हो रहा है वहां चला
जाए और साथ में मनोहर को भी ले जाए। उसने मनोहर से कह दिया कि जब तक वो काम नहीं
सीख लेता तक तक उसे महेश के नीचे ही काम करना होगा और जब वो काम को समझ लेगा तो
उसे एक अलग डिजिटल कैमरा मिल जाएगा। महेश उसे अपनी मोटरसाइकिल पर ले गया और रास्ते
में उसके बारे में भी सब समझ गया और उसे अपने बारे में भी अच्छे से समझा दिया।
उसने इशारे में कह दिया कि मनोहर को यदि अखबार में काम करना है तो उसी को अपना
गुरु मानकर चलना होगा। हालात का शिकार मनोहर तो कुछ भी मानने को तैयार था फिर
मनोहर के अहम को स्वीकार करना तो कुछ बड़ा या कठिन काम नहीं था।
वो दोनों रेस्तरां पहुंच गए, उनके
पहुंचते ही उनका स्वागत ढेर सारे व्यंजनों से किया गया। महेश ने मनोहर को इशारा
किया और खुद भी खाना शुरू कर दिया। दो दिन से भूख सह रहे मनोहर के लिए तो ये ईश्वर
के वरदान से कम नहीं था, शादियों के सीजन के बाद पहली बार
उसने इतना लजीज खाना खाया था, खाते समय उसे ख्याल आ रहा था
कि काश वो इसमें से कुछ अपनी बीवी और बेटी के लिए भी ले जा सकता। उसके बाद महेश ने
फंक्शन के फोटो खींचे और वो दोनों वहां से जाने लगे, तभी
आयोजकों ने उन दोनों की ओर दो पैकेट बढ़ा दिए।
अरे इसकी क्या जरूरत है सर, महेश
बोला।
क्या बात करते हैं जनाब, आप
हमारा इतना ख्याल रखते हैं, उसके आगे यह तुच्छ भेंट क्या
मायने रखती है।
महेश ने पैकेट ले लिया और मनोहर से भी
लेने को कहा।
बाहर निकलते ही उसने मनोहर से कहा कि
अब वो इस पैकेट को लेकर सीधे अपने घर चला जाए और दो घंटे के अंदर वापिस दफ्तर आ
जाए तब तक वो भी आ जाएगा और बाकी का काम उसे वहीं समझाएगा।
मनोहर ने जब घर पहुंचकर पैकेट खेाला
तो उसमें फास्ट फूड और कुछ चाकलेट था। वो सब देखते ही उसे बहुत खुशी हुई उसने
लक्ष्मी से कहा कि वो और छोटी मिलकर खा लें और छोटी को चाकलेट देते हुए प्यार
जताया। रेस्तरां में हुई खातिर और सम्मान से मनोहर बहुत खुश था। अब महेश के साथ
रहकर उसने काम को सीख भी लिया और समझ भी लिया। महेश दिन भर उसे अपने साथ रखता और शाम
को कंप्यूटर पर खींचे हुए फोटो को एडिट करना भी सिखाता था। फिर एक महीने बाद मनोहर
को भी कम्पनी की तरफ से एक कैमरा मिल गया। अब उसे महेश से अलग अकेले ही काम पर
भेजा जाता था,
उसकी दोस्ती अब दूसरे अखबार वाले फोटो जर्नलिस्ट से भी हो गई। रंजीत
उसका खास दोस्त बन गया, वो दोनों एक-दूसरे की बहुत मदद करते
थे, उनमें से एक से अगर कोई स्पॉट छूट जाता था तो दूसरा उसे
अपनी खींची हुई फोटो भेज देता था। अक्सर वे दोनों फोन पर ही तय कर लेते थे कि जहां
उनमें से एक जा रहा होगा, वहां दूसरा नहीं जाएगा और बाद में
वे लोग आपस में फोटो बांट लेंगे। मनोहर के पास लैपटॉप और कार्ड रीडर भी थी,
इसलिए अब लक्ष्मी और छोटी की जरूरतें भी पूरी कर दिया करता था।
धीरे-धीरे वे समाज के वरिष्ठ लोगों के संपर्क में आने लगा। उसके फोन पर जब कभी शहर
के किसी बड़े पुलिस के अधिकारी या किसी बड़े नेता का फोन आता था तो बहुत शान से
लक्ष्मी को बताता था और कभी-कभी जब शाम को प्रेस क्लब से शराब के कुछ पैग मारकर घर
आता था तो अपनी मल्लिका के आगे खुलकर अपनी महानता का बखान करता था।
एक रात जब वो शराब के सुरूर में था तो
बिस्तर पर लक्ष्मी को अपनी बाहों में लेकर बोला, जानती है तू किसकी
पत्नी है।
हां सब जानती हूं मैं, अभी शराब का नशा है तो बहुत प्यार
आ रहा है, वरना दिन में कभी जो तुम्हे फोन करो तो खाने को
आते हो। अरे तू तो मेरी रानी है, यह देख मेरा आई कार्ड,
मनोहर लाल फोटो जर्नलिस्ट, महाराज टायम्स, अरे
बड़े-बड़े मंत्री इस कार्ड को देखकर सलूट मारते हैं। हां तभी तो मंत्री करोड़ों कमाते
हैं और सलामी लेने वाले मुश्किल से तीन हजार ही बचा पाते हैं, लक्ष्मी ने हंसते हुए कहा। तू चिंता क्यूं करती है मेरी जान, हम भी कमाएंगे। और फिर मनोहर उसे चूमते हुए उसके आगोश में खो गया और वो भी
मनोहर में लीन हो गई।
उनके हालात में कोई खासा सुधर नहीं
हुआ था, हां सिर्फ इतना फर्क पड़ा था कि कुछ खर्चे निकल जाते थे और जान-पहचान बन
जाने के कारण कुछ खर्चे बच जाते थे। लेकिन अभी मनोहर की पहचान सिक्के के दूसरे
पहलु से नहीं हुई थी। एक दिन वो दिनेश जी के पास गया और उससे इजाजत मांगी कि सीजन
के दिन हैं इसलिए उसे दफ्तर के काम के बाद कुछ शादियों के फंक्शन करने दिए जाएं।
दिनेश ने साफ इंकार कर दिया और कहा कि उसके ऐसा करने पर उसके और कंपनी दोनों के
नाम को धक्का लगेगा। तुम एक फोटो जर्नलिस्ट हो और हमारा अखबार अब इस राज्य का एक
जाना-माना नाम बन चुका है,
जब तुम्हें लोग शादियों के फोटो खींचते देखेंगे तो क्या नाम रह
जाएगा हमारा। दोबारा ऐसी बात सोची भी तो निकाल दिए जाओगे।
वो मायूस चेहरा लेकर दफ्तर से बाहर
निकल आया। अखबार को बढ़ता देखकर गुप्ता जी ने फैसला किया कि अब अखबार के आठ पेज और
बढ़ा दिए जाएंगे। एक मीटिंग की गई और सबसे काम बढ़ाने को कहा गया, अब
ये तय हुआ कि दोनों फोटोग्राफर भी ज्यादा फोटो दिया करेंगे। मनोहर को कम्पनी की
तरफ से एक मोटर साइकिल भी दी गई लेकिन अब उसे पूरा दिन दौड़ना पड़ता था, उसकी तनख्वाह का एक अच्छा हिस्सा तो अब पेट्रोल खर्च में ही चला जाता था।
एक बार वो दिनेश जी के पास तनख्वाह बढ़ाने की खातिर गया तो दिनेश जी ने फिर उसे
खरी-खोटी सुना डाली।
तुम काम क्या करते हो। तुम्हे रखा है
यही तुम पर एक बहुत बड़ा एहसान है, अरे वरना जितने फोटो तुम खींचते हो ना,
उससे दुगुने और कहीं बेहतर तो मैं यहीं बैठे मंगवा सकता हूं,
हजारों एजेंसी वाले तैयार बैठे हैं। फिर हम तुम्हें क्यूं झेलें,
पहले अपने काम में क्वालिटी लाओ फिर बात करना आकर।
मनोहर समझ गया था कि वो एक ऐसे अजीब
से जाल में फंस चुका है जिसे भेद पाना अब उसके लिए संभव नहीं है। उसे लगा कि यदि
वो नौकरी छोड़ता है तो जो लोग उसके एक बार कहने पर उसका काम कर देते हैं वो घास भी
नहीं डालेंगे और
अगर काम करता रहता है तो यह सब उसे
मानना होगा और मालिकों की गुलामी को चुपचाप सहना भी होगा। उसके पास कोई ऐसी खास
काबिलियत या डिग्री डिप्लोमा भी नहीं था कि किसी और अखबार में हाथ पैर मार सके और
अगर उसने ऐसा कुछ किया तो ये कंपनी उसे निकालते देर न लगाएगी। क्योंकि शहर में ऐसे
हजारों सीजन खींचने वाले फोटोग्राफर थे जो एक बार किसी अखबार में काम करने का मौका
ढूंढ रहे थे। शहर में किसी नेता के विवादास्पद बयान के कारण दो समुदायों में दंगे
छिड़ गए। मनोहर को भी दिनेश ने फोन कर के कहा कि वो जाकर दंगों और जुलूसों के फोटो
खींचकर ले आए। मनोहर अपने दोस्त रंजीत को साथ लेकर निकल गया, उन्होंने
दो जगह का फोटो खींचा और शहर के मुख्य चौक पर चले गये क्योंकि वहां सबसे अधिक
अफरा-तफरी थी और एक बड़ा जुलूस निकल रहा था, वहां पहुंचकर
उन्होंने देखा कि पुलिस भीड़ पर लाठियां भांज रही थी, वे
दोनों उस घटना की तस्वीरें खींचने लगे। तभी मौके पर ही खड़े पुलिस के एक वरिष्ठ
अधिकारी की नजर उन दोनों पर पड़ी, उसने अपने सिपाहियों से कहा
कि उन दोनों से कैमरे छीन लें और उनकी भी पिटाई करें। सिपाहियों ने उन दोनों की
जमकर पिटाई की, रंजीत के हाथ में मनोहर की उंगलियों में
फ्रैक्चर हो गया और इसके अलावा उन्हें सिर पर भी चोटें आई। उन दोनों को इलाज के
लिए अस्पताल भर्ती करवाया गया और शहर की बाकी मीडिया ने घटना की निंदा की। मीडिया
के दबाव में पुलिस के सर्वोच्च अधिकारी ने उन दोनों के इलाज का खर्चा और मुआवजा
दिया लेकिन इस घटना से लक्ष्मी और उसकी बेटी बहुत सहम गए थे उनके अंदर एक असुरक्षा
की भावना घर कर गई थी। घटना को हुए एक महीना बीत चुका था, मनोहर
घर पर ही आराम कर रहा था, तभी दिनेश जी का फोन आया।
मनोहर बहुत हो गया आराम, अब
तो तुम ठीक हो चुके होगे। कल से काम पर वापिस आ जाओ। इतना कहकर उसने फोन काट दिया।
लक्ष्मी, जो कि मनोहर के पास ही बैठी थी, बोली, ये उसी मनहूस का फोन है ना, जो इंसान को इंसान नहीं समझता कह दो उससे कि अब तुम ये काम नहीं करोगे।
क्या तीन हजार के लिए तुम्हारी जान ले लेंगे ये लोग, एक महीना हो गया तुम्हे
बिस्तर पर पड़े हुए कोई मुआ देखने तक नहीं आया। भगवान ना करे कल को तुम्हे कुछ हो
गया तो, हम दोनों का क्या होगा और वैसे भी तुम अपना काम कर
सकते हो, भले ही पैसे कुछ कम आएं पर जान तो सलामत रहेगी।
मनोहर चुपचाप लक्ष्मी की सब बातें सुनता रहा, उस रात उसके
दिमाग में यही सब बातें घूमती रहीं।
मनोहर ने लक्ष्मी के जोर देने पर
अखबार की नौकरी छोड़ दी और फिर से अपनी फोटोग्राफी की दुकान करने लगा। उसने देखा कि
जैसे ही उसकी काम छोड़ने की बात लोगों का पता चली, तो जो लोग उसे
दिन-रात फोन करते थे और एसएमएस कर करके उसके मोबाइल को भर देते थे, अब वही लोग उसका फोन उठाना बंद कर चुके थे। जिन वरिष्ठ लोगों के यहां उसे
कभी भी जाने की इजाजत थी अब उनके दरबान ही उसे वापिस भेज देते थे। बेटी के स्कूल
में उसे कभी भी फीस जमा करवाने की इजाजत थी, उसके लिए कोई
अंतिम तिथि नहीं होती थी, क्योंकि वो हमेशा प्रिंसीपल के
कहने पर उनके स्कूल के समारोह की फोटो खींचकर अखबार में लगवा देता था लेकिन अब
स्कूल की तरफ से उन्हें जल्द फीस जमा करवाने का दबाव था और ऐसा न होने पर उसकी
बेटी को निकालने की धमकी भी मिल चुकी थी। उसने सोचा नहीं था कि लोगों का रूख इस
तरह बदल जाएगा, जिन लोगों ने उसे खुद पैसे दिए थे वही लोग अब
उसे पैसे वापिस करने के लिए फोन करते थे। शहर के एक रेस्तरां के मालिक ने एक बार
अपनी ओर से मनोहर के बेटी के जन्मदिन पर पार्टी करवाई थी लेकिन अब वो भी उसके पैसे
मांग रहा था। जबकि उस समय उसने कहा था ये मेरी बेटी पहले है और मनोहर की बाद में
और अब उसने फोन करके कहा मनोहर मैं शराफत से बोल रहा हूं, सिर्फ
रोटी के पैसे दे दो, हॉल का किराया तो मैं मांग ही नहीं रहा हूं।
लेकिन सेठ आपने तो कहा था, कि
सारा खर्चा मेरा होगा।
अरे भाई खर्चे से मेरा मतलब ये नहीं
था कि तुम मुफ्त का माल समझ लो, मेरा तो हॉल का किराया ही एक लाख है।
मेरे पास तो एक पैसा भी नहीं है।
तो ठीक है मैं तुम्हारी बेटी को उठाकर
ले जाता हूं।
मनोहर चिल्लाने लगा, उसे
छोड़ दो सेठ, उसका क्या कसूर है, उसे
छोड़ दो...।
अचानक मनोहर की नींद खुली और उसे समझ
आया कि वो एक सपना देख रहा था। लक्ष्मी और बच्ची सो रहे थे। वो उठा और बिना नहाये
ही अपना कैमरा उठाया और बाहर आकर
मोटरसाइकिल चालू की और निकल पड़ा।
कहानी - क्राइम बीट – सोनी किशोर सिंह
वो
सुन्दर थी और सुन्दर नहीं भी थी। मतलब वो अपने दिमाग से तेज तर्रार, स्वस्थ,
प्रतिभाशाली युवती थी लेकिन शारीरिक सौन्दर्य के मापन पर औसत थी। न तो उसके गुलाबी
रसभरे होठ थे, न काले-काले मेघों की तरह लहराते बाल, न कजरारी आँखें न उन्नत उभार।
लेकिन इन सांसारिक छद्म कमियों के बावजूद वो एक हवा का झोंका थी जिसकी खुशबू
सूँघते ही मुझे अच्छा लगा था। वो पहली बार मुझे अपने ऑफिस में मिली थी। मिली कहाँ
थी, ये कह सकती हूँ कि मैं खुद ही उससे मिलने रिसेप्शन पर पहुँची थी। हुआ कुछ
यूँ था कि हमारे अखबार के दफ्तर में वो किसी से मिलने आई थी लेकिन जिन महोदय से
मिलना था उन्होंने उस दिन ऑफिस आने की जहमत नहीं उठाई और न लड़की को ये बताना
जरूरी समझा कि वो ऑफिस आने वाले नहीं हैं। तय बातचीत के अनुसार लड़की ऑफिस पहुँची
और रिसेप्शनिस्ट से उन महोदय से मिलने की इच्छा जताई। रिसेप्शनिस्ट के ये कहते ही
कि सर आफिस में नहीं हैं उसने महोदय को फोन मिला दिया। पता नहीं उधर से उन्होंने
क्या कहा था, लेकिन इधर लोहा गर्म हो चुका था। वो लड़की चीख-चीख कर उन्हें
धोखेबाज, झूठा, हरामी आदि बोले जा रही थी। कई कर्मचारी इकट्ठा हो गये थे। मैं भी
भागी-भागी वहाँ पहुँची थी ये जानने के लिये कि मामला क्या है। पहली झलक में मुझे
लगा कि वो किसी नौकरी या इंटर्न के लिये आई होगी और काम बनते न देखकर चीखना
चिल्लाना शुरू कर दिया है। मैंने इशारों में रिसेप्शनिस्ट से पूछा कि बात क्या है
तो उसने भी इशारों से बता दिया कि लड़की मेंटल टाइप है। मैं वापस अपनी सीट पर जाने
के लिये मुड़ी ही थी कि उसकी बातों ने मुझे कुछ देर और वहाँ रुकने के लिये मजबूर
कर दिया। मि. सत्यजीत मिश्रा, मैं तो आपको बहुत बड़ा पत्रकार समझती थी लेकिन आप तो
अव्वल दर्जे के हरामी निकले, अगर कुछ करना ही नहीं था तो लम्बी-लम्बी फेंक के मेरा
टाइम क्यों बर्बाद किया...लड़की हड़बड़ी में बोलकर फोन रख चुकी थी। मुझे लगा कि
जरूर कोई मसाला है, स्वाद लेने में हर्ज ही किया है और मसाला भी मेरे काबिल और बॉस
के खासमखास सत्यजीत का है तो मेरा इण्टेरेस्ट और भी बढ़ गया। मैंने फौरन लड़की के
पास जाकर लगभग डपटने वाले अंदाज में कहा - एक्सक्यूज मी, देखिये ये अखबार का दफ्तर
है और आपको इस तरह से हल्ला-गुल्ला करने की जरुरत नहीं है, अगर कोई शिकायत है या
किसी से कोई काम है तो उसे बताने का सभ्य और शांतिपूर्ण तरीका भी दुनिया में हमारे
पुरखों ने इजाद किया हुआ है।
उस लड़की ने मुझे खा जाने वाली
नज़रों से घूरा- अच्छा तो मुझे ये बताइये कि अगर लगातार कोई आपको मिन्नत करके
बुलाये, आपके सामने एड़ियां रगड़े कि आप एक बार मेरे ऑफिस आ
जाओ और आपके जाने के बाद वो आपको मिले ही न, फोन करने पर बद्तमीजी से बात करे तो
आप कौन सा सभ्य तरीका अपनायेंगी?
मुझे कोई जवाब देते नहीं बना तो
मैंने फौरन उसे अपने केबिन में आने का इशारा किया और तेज कदमों से आगे बढ़ गई।
बैठते ही मैंने उसकी तरफ पानी का गिलास बढ़ा दिया। उसने नो थैंक्स कहते हुये बेरुखी से मना कर
दिया। फिर मैंने बात आगे बढ़ाई - मैं प्राची शर्मा, पहले क्राइम बीट पर थी आजकल
फीचर पेज देखती हूँ। क्राइम सत्यजीत जी देखते हैं...
आप.... मैम आप प्राची शर्मा हो, आई
मीन कि आप ही हो जो... ओह माइ गॉड.. आई एम सो सॉरी कि... आधी आवाज उसके हलक में ही
घुट कर रह गई लेकिन चेहरे पर गुस्से की जगह एक उत्साह और खुशी ने दस्तक दे दी थी।
तभी चपरासी वैद्यनाथ चाय लेकर अंदर
आया, उसकी खोजी नजरों को देख कर मैं समझ गई कि बाहर से कुछ लोगों ने उसे भेजा होगा
ये पता लगाने के लिये कि अंदर क्या हो रहा है। वैद्यनाथ हमारे आफिस का सबसे बदतमीज
किस्म का यूनियनबाज चपरासी है इसलिये मैंने उसको इग्नोर करते हुये अपनी बात आगे
बढ़ाई- क्या नाम है तुम्हारा ?
जी रागिनी - वह अब सहज हो रही थी
मेरे साथ।
रागिनी एमएमएस एक फिल्म भी आई
है,,,,आपने देखी है क्या... मेरे कुछ बोलने से पहले ही वैद्यनाथ दाँत निपोरते और
चाय देते हुये फिकरा कस चुका था।
हाँ देखी है मैंने और नमकहराम,
नाजायज़ औलाद फिल्में भी आई थीं वो देखी है क्या तुमने, नहीं देखी तो जाकर देख
लेना- रागिनी ने वैद्यनाथ को जवाब दिया। वैद्यनाथ सिटपिटाया सा चाय रखकर बाहर निकल
गया।
वैद्यनाथ की बद्तमीजी के लिये मैंने
आई एम सॉरी रागिनी... कहना चाहा लेकिन मेरे मुँह से निकला वेलडन रागिनी। रागिनी
मुस्कुरा कर चाय पीने लगी। मैंने रागिनी पर नजर जमाते हुये बात को आगे बढ़ाने की
कोशिश की।
रागिनी, देखो मैं ये नहीं पुछूँगी
कि सत्यजीत से तुम्हारी क्या बात हुई, मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि अगर तुम्हे मेरी
किसी सहायता की जरूरत हो तो कभी भी बिना किसी संकोच के मुझे याद करना।
रागिनी बहुत शांत भाव से बोली- मैम
मैं आज भी आपके सारे आर्टिकल्स जरूर पढ़ती हूँ, जब आप न्यूज चैनल में 'स्टॉप
द क्राइम ' शो करती थीं तबसे आपकी फैन हूँ। यू आर माई आइडियल
मैम, पता नहीं कैसे मैं सत्यजीत मिश्रा के पास चली गई, मुझे तो सीधे आपसे बात करनी
चाहिए थी इस बारे में।
किस बारे में- मैंने अचरज जताते
हुये पूछा।
रागिनी मेरी तरफ गौर से देखने लगी
शायद नजरों से यह तौलना चाह रही हो कि जो बात वो कहने जा रही है उसको मैं कितनी
संजीदगी से ले रही हूँ। उससे मेरी नजर जैसे ही मिली एक बार तो मुझे भी लगा रागिनी
कोई भारी भरकम बात कहने जा रही है और मैं सिर्फ सत्यजीत मिश्रा द्वारा अपनी बीट
छीन लिये जाने के कारण खुन्नस में पड़ी हूँ।
मैम मैं आपको एक बहुत खास बात बताने
जा रही हूँ लेकिन आप ये प्रॉमिस कीजिए कि इस न्यूज को किसी भी हालत में मैनेज नहीं
करेंगी - रागिनी जोश में आ गई थी।
व्हाट नॉनसेन्स रागिनी, न्यूज मैनेज
का क्या मतलब, यहाँ कोई न्यूज मैनेज नहीं होती - मैं
झल्ला गई, शायद मन ही मन खुद को तसल्ली देने लगी कि ऐसा कुछ होता नहीं है, जबकि
सैंकड़ों बार मेरी आँखों के सामने मेरी ही रिपोर्ट्स को मैनेज किया गया और मैं कुछ
नहीं कर पाई।
प्राची मैम आप नाराज मत होईये,
परहैप्स यू आर माई लास्ट होप, मेरी बात सुन लीजिये। मैम यहाँ जय माँ दुर्गा हॉस्टल
से लड़कियाँ सप्लाई होती हैं, शहर के नेताओं और अमीरजादों को... रागिनी बहुत धीमी
आवाज में बोली।
हम्म्म्म्म, मुझे पता है, मैंने कई
बार इसके बारे में रिपोर्ट छापी थी लेकिन पुलिस ने कुछ खास किया नहीं, वैसे तुम
क्यों इतनी परेशान हो रही हो, तुम भी उस हॉस्टल में रहती हो क्या? -
मुझे लगा था रागिनी कोई नई बात कहेगी लेकिन उसकी घिसी-पिटी पुरानी स्टोरी में कुछ
दम लगा नहीं तो मैं निराश सी हो गई।
नहीं, मैं नहीं रहती उस हॉस्टल में,
हाँ कभी-कभार जाती हूँ वहाँ। प्राची मैम आपके लिये ये पुरानी बात होगी या फिर किसी
न्यूज का हिस्सा, मेरे लिये न तो ये पुरानी बात है न इग्नोर करने लायक। इस गलत काम
को बंद करवाने में मुझे आपकी मदद चाहिए। प्लीज- रागिनी बौखला गई थी।
आवाज नीचे करो, बाहर लोग
सुनेंगे....और अगर वहाँ गलत काम होते हैं तो तुम क्यों जाती हो, इस बार पैसे नहीं
मिले या तुमने ज्यादा पैसे की फरमाईश कर दी - गुस्से में मैंने कई बेहूदा सवाल दाग
दिये।
क्योंकि जय माँ दुर्गा हॉस्टल मेरा
है, मेरा मतलब मेरे पापा का इसलिये मुझे वहाँ की सारी गलत-सही चीजें मालूम है,
अबतक डर के कारण चुप थी, इस काम में मेरा भाई भी मेरे पापा का साथ देता है...
मुझे डिटेल्स में बताओ, सब कुछ। मैं
तुम्हारी हेल्प करूँगी, आई प्रॉमिस- कहते हुये मैं अपनी चेयर से उठकर रागिनी के
पास गई और उसके कंधे को हल्के से थपकी दी। मुझे लग रहा था कि अब मेरे अंदर की
पत्रकार एक स्त्री में तब्दील हो रही है और मुझे दर्द के घेरे में लेने की, एक
स्त्री की पीड़ा को समझने की शक्ति दे रही है।
रागिनी धीमे-धीमे बताने लगी- करीब दो साल पहले मैं एक बार
पापा को बिना बताये यूँ ही हॉस्टल चली गई थी। बस इसलिये कि हॉस्टल और वहाँ की
लड़कियों को एक बार देख लूँ लेकिन वहाँ जाने पर मुझे वार्डन ने हॉस्टल में घुसने
से मना कर दिया। मैंने जब उसे ये बताया कि ये मेरा ही हॉस्टल है तब भी वो टस से मस
न हुई। गुस्से में मैंने पापा को फोन लगाया तो उन्होंने वार्डन से बात की और मुझे
अंदर जाने की इजाजत मिली। वहाँ सब कुछ अजीब सा लग रहा था, प्राची मैम। डरी सहमी
लड़कियाँ, अँधेरे और गंदे कमरे और सबसे ज्यादा मुझे अजीब ये लगा कि जब मैं वहाँ
पहुँची तो वहाँ एक-दो कमरे अंदर से लॉक थे और उसमें से लड़कों की आवाजें आ रही
थीं। मैंने जब वार्डन को बोला कि ये सब क्या हो रहा है तो उसने मुझे बुरे तरीके से
डाँटा और हॉस्टल से निकल जाने को कहा।
मैम, उस दिन मैं गुस्से और अपमान की
पीड़ा में जल उठी। घर आकर पापा को सारी बात बताई और ये भी कि वार्डन वहाँ गलत
कामों को बढ़ावा दे रही है लेकिन मेरे पापा बजाये नाराज होने के मुझसे बोले-
रागिनी तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो बाकी सब फिजूल बातों में न पड़ो। मैं सारा मैटर
सॉल्व कर लूँगा। लेकिन पता नहीं मुझे क्यों लग रहा था कि पापा मुझसे झूठ बोल रहे
हैं...
गुण्डों का सरदार है तुम्हारा बाप,
उसके खिलाफ जाओगी तो फिर घर में कैसे रहोगी। ये सब सोच लिया है या बस झण्डा उठाकर
क्रान्ति करने चल पड़ी- मैंने तीर छोड़ा, शायद मैं उसका रिएक्शन देखकर कन्फर्म
होना चाहती थी कि वो अपनी बात पर अड़ी रहेगी या रिश्ते-नाते की दुहाई देकर उसके घर
वाले उसे पीछे हटने पर मजबूर कर देंगे।
मुझे न तो ऐसे घर वालों की परवाह है
न अपने पापा की। जो इन्सान दूसरे की बेटियों से गंदा काम करवा कर पैसे बनाता है वो
अपनी बेटी को कबतक सुरक्षित रखेगा- रागिनी ने मुझे आश्वस्त किया हालाँकि ये बात
कहते कहते रागिनी की आँखें भीग चुकी थी।
तुम कुछ और भी बताना चाह रही हो
रागिनी या सिर्फ इतनी सी बात है- मैंने फिर पूछा।
कुछ लड़कियों को ब्लैकमेल कर उन्हें
ये सब करने के लिये मजबूर किया जा रहा है मैम।
ब्लैकमेलिंग किस बात की ?
अपनी पढ़ाई और कुछ दूसरे खर्चे पूरे
करने के लिये उनमें से कई ये काम वीकेंड में करती हैं, वार्डन ने मेरे पापा की मदद
से ये सब पता लगा लिया और अब उन्हें धमकी दी जा रही है कि वो मेरे पापा के लिये
काम करें- रागिनी एक ही साँस में बोल गई।
आर दे प्रॉस्टीट्यूट? -
मुझे झटका सा लगा।
प्रॉस्टीट्यूट, माइंड
योर लैंग्वेज मैम, कम से कम आप तो इस तरह मत बोलिये। अगर पेट की भूख मिटाने के
लिये, अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिये, सर छुपाने की एक जगह पाने के खर्चे पूरे करने
के लिये वो किसी की दैहिक जरूरतों को पूरा करके अपने लिये कुछ पैसे इकट्ठा भी करती
हैं तो वो प्रॉस्टीट्यूट हो गईं। और मेरे बाप जैसे लोगों
को आप क्या कहेंगी जो इस बात का फायदा उठा रहा है ?
रागिनी गुस्से में थी और मैं चुप
होकर उसकी बातें सुन रही थी।
तभी चाय का कप उठाने के बहाने
वैद्यनाथ एक बार फिर केबिन में दाखिल हुआ। रागिनी भी चुप हो गई, लेकिन वैद्यनाथ
अभी तक खुन्नस खाये था- खींसे निपोरता हुआ बोला- ये प्रॉस्टीट्यूट
क्या होता है मैडम। मैं उसे डाँटती इससे पहले ही रागिनी चिल्लाई- प्रॉस्टीट्यूट वो होती है जो तुझ जैसे हरामी के पिल्लों को जनती
है...
वैद्यनाथ मेरी तरफ मुखातिब हुआ
लेकिन मैंने उसे डपटते हुये कहा- वैद्यनाथ अभी बहुत जरूरी बात चल रही है और तुम
फौरन यहाँ से निकलो जब बुलाऊँ तब आना। वैद्यनाथ गुस्से में पैर पटकता हुआ चला गया।
हाँ रागिनी, गालियाँ देने में
एक्सपर्ट हो, गुड ।
मैम, वो लड़कियाँ प्रॉस्टीट्यूट
नहीं हैं, उनका अपना अस्तित्व है, वो मेरी दोस्त हैं, वो जय माँ दुर्गा हॉस्टल में
रहने वाली छात्राएं हैं, वो अपने माँ-बाप की बेटियाँ हैं, वो मेरे पापा के लिये
आसान सा टार्गेट हैं और आपके लिये एक मसालेदार खबर है.... वो सब कुछ हैं, बट दे आर
नॉट प्रॉस्टीट्यूट।
सॉरी, रागिनी, आय डोंट वॉन्ट टू
हर्ट यू- रागिनी की बात ने मुझे शर्मिन्दा कर दिया।
प्राची मैम, मैं चाहती हूँ कि उन
लड़कियों को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो और मेरे पापा का ये घिनौना काम भी बंद हो
जाये, आप प्लीज कुछ करो....
सत्यजीत को क्या-क्या बताया तुमने ?
अभी तक कुछ भी नहीं, उन्हें बस इतना
बताया था कि आपके लिये मेरे पास एक धमाकेदार खबर है, उसके बाद वो खबर जानने के
लिये मुझे बार-बार फोन मिलाकर आफिस बुला रहे थे और आज यहाँ आई तो खुद ही गायब
हैं....
हमममम- मैं मुस्कुराई।
तुम नहीं जानती रागिनी, ये सत्यजीत
तुम्हारे बाप के साथ गोटियाँ फिट कर रहा होगा, लेकिन तुम टेंशन मत लो जब तक वो कुछ
कर पायेगा हम अपना काम कर देंगे। कम ऑन लेट्स गो- रागिनी और मैं दोनों तेज कदमों
से बाहर निकले और बॉस के केबिन की तरफ मुड़ गये।
क्या हमलोग अंदर आ सकते हैं- मैंने
लगभग अंदर घुसकर ही पूछा।
अब तो तुम अंदर आ ही गई हो,
फोर्मेलिटी छोड़ो और बताओ क्या काम है प्राची- बॉस ने मुस्कुराते हुये पूछा।
सर ये रागिनी है, जय माँ दुर्गा
हॉस्टल के बारे में कुछ न्यूज है इसके पास और मैं चाहती हूँ कि आप मुझे परमीशन दे
कि वो न्यूज मैं हैंडिल करूँ ?
ओफ्फो, प्राची तुम भी न, तुम्हे पता
है न कि ये तुम्हारी बीट नहीं है, फिर क्यों बार-बार सत्यजीत के काम में अड़ंगा
डालने की कोशिश करती हो।
लेकिन सर ये रागिनी कह रही है कि
सत्यजीत.... मैंने रागिनी की तरफ देखते हुये कहा।
आई डोंट वान्ट टू लिसिन एनीथिंग,
नाऊ जस्ट लीव.... बॉस का पारा चढ़ गया।
मैं और रागिनी मुँह लटकाकर बाहर
निकले ही थे कि सत्यजीत सामने से मुस्कुराता हुआ आ रहा था।
अरे... रे... रागिनी जी आप यहाँ
हैं, प्राची मैडम से गपशप कर रही हैं, आईए बैठकर एक-एक कप कॉफी
पी जाये ।
रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही
मैंने सत्यजीत को कैंटीन की तरफ खींच लिया- जरूर सत्यजीत, तुम जैसे दोस्तों के साथ
कॉफी भला कौन नहीं पीना चाहेगा।
कैंटीन में सत्यजीत बिल्कुल नॉर्मल
औऱ खुश दिख रहा था, लेकिन हम दोनों को आग लगी थी। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने
अपना मुँह खोल ही दिया- तो सत्यजीत रागिनी की न्यूज कितने में
मैनेज की ?
रागिनी और सत्यजीत दोनों मेरी तरफ
ऐसे देख रहे थे जैसे उनके सामने बिल्कुल कुछ इंच की दूरी पर कोबरा साँप उन्हे
निगलने के लिये तैयार है।
देखो प्राची, मुझे इस तरह का मजाक
बिल्कुल पसंद नहीं है- सत्यजीत हकला रहा था।
मुझे इस तरह का मजाक तो पसंद है
लेकिन इस तरह की साजिश बिल्कुल पसंद नहीं है सत्यजीत, तुम्हारे लिये बेहतर यही
होगा कि तुम अपने क्रिमिनल माईंड को इस केस में मत लगाओ, नहीं तो तुम्हे याद
दिलाना पड़ेगा कि मैं कौन हूँ..... मैंने अपना आखिरी वार किया।
रागिनी के सामने तुम मेरी इमेज खराब
कर रही हो प्राची, मैं बॉस को बताऊँगा ये बात- कहते हुये सत्यजीत अपनी कॉफी वहीं
छोड़कर भाग निकला।
रागिनी मेरी तरफ टकटकी लगाये हुये
थी और मैं अपने कॉफी के मग से ऊपर नजर नहीं उठा पा रही थी।
मैं चलती हूँ मैम, आपने कोशिश की,
मुझे अच्छा लगा। मैं जानती हूँ आप कुछ न कुछ जरूर करोगी- रागिनी का विश्वास अब भी
मुझ पर बरकरार था।
हाँ रागिनी मैं पूरी कोशिश करूँगी,
तुम टेंशन मत लो और सुनो अब तुम अपने घर नहीं जाओ क्योंकि वहाँ शायद तुम्हारे लिये
कोई जगह नहीं होगी, ये रहा मेरे घर का पता, अभी घर पर मेरी माँ होंगी, तुम जाकर
वहाँ ठहरो, शाम को मैं आती हूँ फिर बात करती हूँ- अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए
मैंने उठकर रागिनी को गले से लगा लिया।
रागिनी के जाने के बाद मैं अपने
केबिन में आकर आगे की रणनीति पर विचार कर ही रही थी कि वैद्यनाथ हाजिर हो गया।
मैडम, बॉस आपको बुला रहे हैं ?
ठीक है मैं आती हूँ, तुम चलो।
इस बार बिना अभिवादन के मैं बॉस के
केबिन में घुस गई। अंदर सत्यजीत भी बैठा था।
बैठो प्राची- बॉस अभी भी गुस्से में
लग रहे थे।
मेरे बैठते ही सत्यजीत शुरू हो गया-
देखिये सर, वो बाहर की लड़की के सामने प्राची मेरी इज्जत उछाल रही है, मेरी तो
छोड़िये अखबार की साख का भी कोई ख्याल नहीं है इसको, कहती है मैंने कितने में
सेटिंग की...
सत्यजीत मेरा मुँह मत खुलवाओ, मुझे
सब पता है, तुम्हारी पूरी काली करतूतों का हिसाब-किताब रखा है मैंने- मैं चिल्लाई
बॉस ने दोनों को शांत करते हुये
टेबल पर जोर से मुक्का मारा- क्या है ये, दोनों को बच्चों की तरह लड़ते देख कर
मुझे शर्म आने लगी है... सत्यजीत तुम्हे कितनी बार समझाया है कि तुमसे पहले 'क्राइम' प्राची ही सम्भालती रही है उससे सलाह मशविरा लेकर काम किया करो और
प्राची, यार तुम भी हर छोटी-छोटी बात का बखेड़ा मत बनाओ.....
सर मैं बखेड़ा बना रही हूँ, मैंने
तो आपसे कहा ही है कि वो हॉस्टल वाला केस मुझे सौंप दीजिए, अगर बवाल न मचा दिया तो
फिर मेरा नाम बदल दीजिए...मुझे लगा बॉस पर मेरी बातें कुछ तो असर करेंगी लेकिन वो
घाघ कुछ अलग ही राग अलापने लगा।
प्राची, संपादन करते-करते बाल सफेद
होने को आये और तुम मुझे सिखाने लगी। अखबार चलाना खेल नहीं है, हर बात में बवाल,
समाजसेवा का ज़ज्बा अगर यही सब करना है तो कोई एनजीओ खोल लो....
सर ये रागिनी वाला मामला मुझे सॉल्व
करने दीजिए प्लीज- मैंने रिक्वेस्ट की।
सत्यजीत फिर भड़क उठा- तो फिर मेरा
होना न होना बराबर है। मलाई वाली खबरें तुम दबा लो और हम यहाँ बैठ के ....
उखाड़ें...
सत्यजीत, मैं बात कर रहा हूँ न, तुम
चुप करो- बॉस ने हल्की नाराजगी में सत्यजीत को डाँटा।
बॉस ने हाथ मलते हुये जोर से जम्हाई
ली- प्राची, क्यों सबके लिये परेशानी खड़ी करती रहती हो, सत्यजीत भी तो तुम्हारा
दोस्त ही है। चलो एक बीच का रास्ता निकालते हैं, क्राइम बीट का मामला है सत्यजीत
ही देखेगा इसे तो लेकिन मैं तुम्हारी बातों की भी कद्र करता हूँ इसलिये मामले से
जितना आयेगा उसमें 30 परसेंट तुम्हारा भी या फिर दो-तीन लाख अभी लेकर यही बात खत्म
कर दो....
सर, लेकिन इतनी बड़ी आसामी का सिर्फ
दो-तीन लाख... मैं कोई नौसिखिया तो हूँ नहीं मुझे भी पता है....
तभी तो कह रहा हूँ प्राची कि तुम
समझदार और काबिल हो मामले को खत्म कर दो, सत्यजीत कल तक पैसे प्राची को मिल जाने
चाहिए- बॉस ने ऐलान कर दिया।
जी जरूर सर, प्राची आई प्रॉमिस, कल
तुम्हारे एकाउंट में पैसे पहुँच जायेंगे, अब प्लीज यार मुस्कुरा दो और मुझे भी चैन
की साँस लेने दो- सत्यजीत जल्दी से बोला। ओके.... मैंने भी मुस्कुरा कर हाँ में
सिर हिला दिया।
कुछ देर पहले तीन उदास और खुनसाये
चेहरों को देख कर मौन साधने वाला बॉस का केबिन अब तीन हँसते हुये चेहरों को देखकर
अचम्भित हो रहा था। प्लाईवुड से बनी केबिन की दीवारें हमारे मतलबी, बनावटी चेहरों
पर चिपकी हँसी को झेलने के लिये मजबूर थीं। ठीक उसी वक्त वैद्यनाथ तीन कप कॉफी
लेकर अंदर दाखिल हुआ।
आज से तुम दोनों टेंशन खत्म करो,
यार चार दिन की जिन्दगी है, खुशी बाँटते हुये गुजार दो, क्या पता कल हमलोग फिर
कहाँ रहे, जब तक हैं तब तक मिल-जुल कर मजे करो- बॉस कॉफी उठाते हुये बोले। हम
दोनों ने 'जी सर' कहकर सहमति जताई।
शाम को घर पहुँचते ही मैंने रागिनी
को सब सच-सच बता दिया। वह अवाक् होकर मेरा चेहरा देखने लगी।
आप भी मैम, मैंने तो सोचा था कि आप
मेरा साथ देंगी- रागिनी रो रही थी।
रागिनी, दूर रहकर दुश्मन पर वार
करना बहुत मुश्किल होता है, सत्यजीत और बॉस ने सारी सेटिंग कर ली है, अब मेरे कुछ
करने से कुछ नहीं होगा। ज्यादा चीखने-चिल्लाने का मतलब है मुझे नौकरी से निकाल
दिया जायेगा... फिर क्या होगा, नई जगह पर भी यही हाल होना है, सब जगह ऐसे ही लोग
भरे पड़े हैं....। फिर....
फिर क्या, कल एकाउंट में कुछ पैसे आ
जायेंगे, तुम्हारे जुटाये कुछ सबूतों के बल पर तुम्हारे बाप को ब्लैकमेल कर उससे
भी पैसे उगाहेंगे और मौका देखते ही किसी छोटे अखबार में इन लोगों की करतूत का पूरा
पर्दाफाश करूँगी, इस बार इतनी तैयारी करूँगी कि तुम्हारा बाप बचेगा नहीं...मैंने
रागिनी के आँसू पोंछते हुये कहा।
फिर आपकी जॉब का क्या होगा मैम ?
फिर कही जॉब कर लेगी, इसे तो
बात-बात पर जॉब छोड़ने की आदत है- इस बार माँ ने मुझे प्यार भरी थपकी देते हुये
कहा। एक बार फिर से तीन मुस्कुराते हुये चेहरे थे। लेकिन इस बार मेरे घर की
चारदीवारी में खिलती हुई ये मासूम मुस्कुराहटें भविष्य का स्वप्न बुन रहे थे और ये
दीवारें हमारी हँसी में शामिल होकर हमें दुआएं दे रही थीं।
कहानी - उजास – मञ्जरी शुक्ल
रेत के कणों को समेटने
में एक उम्र गुज़र गई और जिन चमकीले कणों से मैंने अपने
हाथ सजाये वे तो बड़े
ही निष्ठुर निकले। चमकते हुए मेरी हथेली
से न जाने कहाँ चले गए? मैं लहरों के बीच
डूबती-उतराती सब जगह जाकर देख आई परन्तु मेरे हाथ कुछ न लगा। भीगे कपड़ों में गीले
आँसुओं से तर-ब-तर मैं किसी तरह बाहर आ गई। दूर
कहीं सूरज की लालिमा आधे आकाश को अपने आगोश में लेने
को बेताब थी। सफ़ेद बादलों का एक उजला टुकड़ा उसके आगोश से फिसला चला जा रहा था, मानों वह इतनी जल्दी
नींद की गोद में नहीं जाना चाहता हो। देखते ही देखते लालिमा ने अपने हाथ फैलाये और
उस छोटे से नटखट बादल के टुकड़े को जो बहुत शैतानी से बड़ी देर से लुका छुपी खेल रहा था , अपने पास सटा लिया। इतने पास, कि
नन्हा सा बादल इतना विराट सानिध्य पाकर एक कोने में दुबक गया। डूबते
सूरज ने गर्व भरी मुस्कान से चारों ओर देखा कि हर शय
सिन्दूरी हो चुकी थी मानों अब यह सोने की बेला का सङ्केत था।
सूरज को पता नहीं क्या हुआ कि उसने अचानक ही नदी के
दूसरी और डुबकी लगा ली। मैं जो किनारे पर बैठी कुदरत
के इस तमाशे को बहुत गौर से देख रही थी अचानक समझ ही
नहीं पाई कि इतना विशाल सूरज जिसके बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है वो
भी जल समाधि ले सकता हैं। मैंने देखा कि मैं भी नदी की
तेज धारा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हूँ, परन्तु अचानक सँभल नहीं पाती और सन्तुलन खोकर पानी में गिर पड़ती हूँ। मैं
डूबते हुए सोच रही हूँ कि मुझे
तो तैरना भी नहीं आता परन्तु जैसे ही डूबने
लगती हूँ और मेरा दम घुटने लगता हैं तो अचानक मेरी आँख हड़बड़ाकर खुल गई और माथे का पसीना पोंछते ही मैंने
सोचा कि आज जीवन में पहली बार इस बात को
इतनी गहराई से समझ पाई कि क्यों मैं हजारों सूर्योदय देखने के बाद भी समझ
नहीं पाई कि सूरज डूबता भी है और जब डूबता हैं तो उसको रात में कोई
नहीं याद करता ईदुनिया नींद के आगोश में जाने से पहले
इस बात पर खुश होती है कि चाँद अपनी सफ़ेद खूबसूरत और नाजुक सी चाँदनी लेकर सितारों
के साथ आएगा और सपनों की सुहानी दुनिया में ले जाएगा जहाँ उन्हें दिन भर के तमाम
दर्द , तकलीफों
और कष्टों से कुछ समय के मुक्ति मिल जायेगी। क्या कभी किसी ने ये नहीं
सोचा कि जो सूरज अस्त हो गया है अगर वो कभी ना निकले तो क्या होगा ....पर इन सब बातों को सोचने की कहाँ, किसके पास फुर्सत हैं ,मेरे
पास भी कहाँ थी ...पति ससुर और सास की
सेवा करते करते कब मेरे जीवन के बारह वर्ष बीत गए , पता ही नहीं चला। कोल्हू का
बैल भी इतना क्या घूमता होगा जितना मेरी सास ने मुझे वैध और हकीमों के दरवाज़ों पर
घुमाया हैईकितनी बार मैंने दबे स्वर में कहना
चाहा कि एक बार अपने लड़के
का तो डाक्टरी चेकअप करवा लो पर बात जुबान से निकलने से पहले ही जैसे किसी ने मेरा तालू नोंचकर फ़ेंक दिया हो। और यही सब सोचते
हुए मैं बरामदे में बैठे अपने ससुर के पास उन्हें चाय
देने गई जो अर्ध विशिप्त थे और सब उनको पागल पागल कहकर
चिढ़ाते थे। मैंने मोहल्ले
की औरतों से सुना था कि मेरी सास ने ही जमीन जायजाद
पाने के लालच में अपने पति को कोई जड़ी बूटी खिला कर
उनका दिमाग ख़राब कर दिया था और उसके बाद वो राजरानी की तरह सब पर हुकुम चलाती
रहती थी। मैं जानती थी कि ससुर
से कहने का कोई फायदा नहीं होगा पता नही वो मेरी बात समझेंगे भी या नहीं और सबसे
बड़ा संकोच मुझे अपनी भावनाए उनके सामने बताने से हो रहा था पर पति के सामने तो
उसका मुहं खुल ही नहीं
सकता था और अचानक मेरा ध्यान अपने जले हुए निशानों पर गया जो मेरे पति ने लोहे का
चिमटा गर्म करके मेरे ऊपर दागा था। मेरी सास को किसी
ने बता दिया था कि मुझ पर किसी ने टोना टोटका करवा दिया है जिसके कारण मेरे बच्चे
नहीं हो रहे है और हर मंगलवार मुझे अगर गर्म लोहे के चिमटे से मेरा पति दागेगा तो
बहुत ही जल्दी उनके वंश को बढ़ाने वाला उनकी गोद में किलकारियाँ मारेगा। आज भी सोच
कर मैं थर्रा जाती हूँ कि मवेशियों के भी जब गर्म
सरियाँ दागा जाता हैं तो उन्हें भी वहाँ से भागने की आज़ादी होती है और कुछ लोग उन्हें पकड़कर रखते है मैंने
तो अपने गाँव में देखा भी था कि कोई नशीली वस्तु खिलाने के बाद वो चुपचाप खड़े अपने नर्म मुलायम शरीर से अपनी खाल नुचवाया
करते थे पर मैं तो उन सभी जानवरों से भी बदतर हूँ ,क्योंकि मेरी सास दरवाजे पर
बैठ जाती थी और तेज आवाज़ में भजन लगा देती और
ये देखकर चौके के अन्दर खड़ा राच्छस जैसा
मेरा पति मुझे धमकी देते हुए कहता कि अगर हिली या भागी तो मिटटी का तेल डालकर ऐसा जलाऊंगा कि तू पूस सा धू धू
जलने लगेगी। जब चिमटा आग में गर्म हो रहा होता तो मन ही मन मैं सारे देवी देवताओं
को पुकारती पर कभी मुझे कोई भी इस नरक से निकालने के लिए कभी ना आता। चिमटे
के गर्म होकर लाल होने पर मेरा पति मुझसे कहता कि
हाथ आगे कर ...और मैं फूट फूटकर रोती हुई अपनी पत्ते
से थरथराती हुई देह के साथ हाथ आगे कर देती पर इसके बाद क्या होता मुझे कुछ पता
नहीं चल पाता क्योंकि मैं चीख के साथ दर्द के मारे
बेहोश हो जाती और ये सुनकर मेरी सास बाहर बैठी गप्प लड़ाती औरतों को प्रसाद बांटना शुरू कर देती। मैंने
अपनी सास के सामने ही कई बार जान देने की कोशिश की पर हमेशा
उन्होंने जी तोड़ कोशिश हर बार मुझे बचा लिया। एक दिन मैंने चीखते हुए पूछा -
क्यों नहीं मर जाने देते हो मुझे तुम लोग। अगर मैं जानवरों से भी गई बीती हूँ
तो मुझे तिल तिल करके क्यों मार रहे हो ?" अरे
...ऐसे कैसे मर जाने दे तुझे ?पता हैं आजकल काम वाली बाइयों के कितने नखरे हैं कितनी मोटी
पगार लेती है, तब भी पूरा काम नहीं करती। फिर कुछ सोचते हुए बोली तू भी उनकी तरह
चोरी छुपे चौके में खाती पीती जरुर होगी वरना इतनी मुस्तंडी
कैसे होती जा रही हैं जब अपने बाप के घर से आई थी तब तो छिपकली जैसी
दुबली पतली थी फिर अपने निठल्ले बेटे की तरफ मुहँ करके मेरी ओर तिरछी नज़रे करके
देखते हुए बोली-" सुन , तू मुझे नहीं कल नहीं बल्कि आज ही एक जाली वाली अलमारी
लाकर दे दे ताकि दूध और दही मैं जरा ताले में रखना शुरू कर दू। क्या ज़माना आ गया
हैं मुझ बूढी की हड्डियों में तो सिर्फ दो लीटर दूध ही पहुँच रहा हैं और बाकी पता
नहीं ये कितना गटक जाती होगी" अपमान और शर्म से मेरी आँखों से आँसूं बहते हुए मेरे गाल तक आ गए और मैं जान ही नहीं पाई । मैंने
अपने पति की ओर देखा कि शायद वो कहे कि जब घर में ही दो लीटर दूध आता हैं और वो एक
कप चाय तक को तरस जाती हैं तो दूध पीने का तो सपने में
भी नहीं सोच सकती पर कुछ भी कहने और सुनने का कोई अर्थ नहीं था। ये तो एक ऐसी काल
कोठरी थी जिसमे उसे आखिरी साँस तक रहना था और मरने के बाद ही अगर कही सुख होता होगा तो उसकी अनुभूति उसे तभी
मिलेगी। तभी बाहर से भड़ाक की आवाज़ आई। सास और पति के
साथ मैं भी हडबडाकर आँगन की ओर भागी। देखा तो मेरे ससुर
जमीन पर पड़े कराह रहे थे और उनके सर पर एक बड़ा सा गुमड निकल आया था ईमैं घबराकर उन्हें उठाने के लिए
भागी पर अकेले उन्हें नहीं उठा पाने के कारण मदद के
लिए अपनी सास और बेटे की तरफ देखा। पति में शायद बाबूजी के कुछ संस्कार आ गए थे
इसलिए वो उसकी ओर बढ़ा पर माँ ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया और पान चबाती हुई बोली-"अन्दर चल मेरे
साथ, मैं
समझी थी कि बच्चे कही आँगन में पड़ी चारपाई लेकर तो नहीं भाग रहे है। ये गिरना
पड़ना तो सब चलता ही रहता है। " और ये कहकर वो अपने उस दब्बू और कायर बेटे का
हाथ पकड़ कर अन्दर की ओर चली गई। मेरा रोम रोम
गुस्से के मारे जल उठा पर मैं कर ही क्या सकती थी
ईमैंने बाबूजी की ओर देखा तो उनकी आँखों से आँसूं बह
रहे थे। मैंने अपनी रुलाई रोकते हुए उनके आँसूं पोंछे और
उन्ही को हिम्मत देते हुए किसी तरह से ले जाकर उनके बिस्तर पर लेटाया। करीब एक
महिना लगा बाबूजी को उस दर्द से उबरने में ...शायद उनके माथे की चोट तो ठीक हो गई
थी पर जब वो जमीन पर टूटी हुई सुराही के पानी में गीले पड़े हुए थे और उनकी पत्नी
और बेटा घ्रणा से मुहं फेरकर चल
दिए थे, वो घाव तो उनकी म्रत्यु तक
हरा ही रहेगा । मैंने तो लाचार जमीन पर गिरे
बाबूजी की आँखों में उस वक़्त भी डर साफ़ देखा था जब
माँ उन्हें घूर रही थी। वो बेचारे कोहनी से रिसते हुए
खून को छुपाने की असफल कोशिश कर रहे थे क्योंकि माँ का बार बार सफ़ेद
चमकते हुए संगमरमर की फर्श की ओर देखना इस बात का
संकेत था कि उनके खून से फर्श लाल हो रही है। पर मुझे और बाबूजी दोनों को ही सर्कस
के जानवर बना दिया गया था जो अपने रिंग मास्टर के इशारे पर ही काम करता
हैं चाहे रो कर करे या फिर नकली मुस्कान होंठो पर चिपकाकर ईखैर अब
दिन थे तो बीतने ही थे। कभी कभी सोचती हूँ कि विधाता
भी बहुत बड़ा जादूगर हैं उसने सबके दिमाग में ये भ्रम बैठा रखा हैं कि प्रत्येक
मनुष्य अमर है इसलिए आदमी कब्रिस्तान से लौटते हुए भी अपने बाप की जमीन , जायदाद
और बेंक अकाउंट के बारे में चिंता करता आता हैं वरना अपने ही हाथ से अपने जन्मदाता
का सर फोड़ने के बाद उसको आग के हवाले कर कोई पैसे के बारे मैं सोच भी कैसे सकता
हैं। पर यही भूल भुलैया ही तो सबको बहला रही हैं वरना मेरे ससुर के साथ जो
मेरी सास कर रही है वो सपने में भी
कभी न करती।
जब भी मैं जरा सी भी गलती करती तो मेरी सास तुरंत मेरे पति की दूसरी
शादी की बात करती पर मेरे दिल में ख़ुशी की यह उम्मीद ज्यादा देर तक नहीं
रहती क्योंकि मेरी सास की दुष्टता के
किस्से दूर दूर तक मशहूर हो चुके थे और लड़की तो क्या कोई कानी चिरैया तक इस घर में
ब्याहने को तैयार नहीं था। मेरा इस अनंत ओर छोर वाले संसार में ईश्वर के अलावा देखने और सुनने वाला कोई नहीं था इसलिए मैं घंटो
अपने घर के मंदिर में बैठकर रोती रहती थी। पर उस दिन मेरे सब्र की हद पार हो गई जब मेरी सास ने घर में एक अनुष्ठान रखा और
जिसमें किसी साधू को बुलवाया ईजटाधारी साधू के तन पर ढेर सारी भभूत और साधू की
आँखों मैं वासना के लाल डोरे देखते ही में समझ गई थी कि अब मेरे बाँझ होने से भी ज्यादा कुछ अनिष्ट इस घर में होने जा रहा हैं।
उस की लाल लाल गांजे और अफीम के नशे से लाल हुई भयानक
आँखें मुझे अन्दर तक भेद रही थी। डर के मारे में सिहर उठी और मेरे रोएँ खड़े हो गए।
मैं कुछ कहू इससे पहले ही मेरी सास बोली -" जा इनको कमरे में ले जा और तेरी
सूनी गोद को भरने के लिए एक पूजा रखी हैं वरना तुझ
जैसी बाँझ के मनहूस क़दमों से ही मेरा पति पागल हो गया। मैंने आँसूं भरी नज़रों से
अपने ससुर की ओर देखा जो बड़ी ही बेबसी से मुझे देख रहे थे। इतना घिनौना इलज़ाम भी
ये औरत मुझ पर लगा सकती हैं , इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी ।
पर अभी बहुत कुछ ऐसा होना बाकी था जो कल्पना से परे था। सास के पीछे पीछे दुम हिलाता उनका पालतू बेटा
भी सर झुकाकर खड़ा हो गया। कमरे में पूजा की कोई तैयारी नहीं देखकर मैं जैसे ही बाहर जाने को हुई उस लम्बे चौड़े साधू ने मेरा रास्ता रोक लिया। मैं कुछ
कहू इससे पहले मेरे सास कमरे के बहार जाते हुए बोली-"मैं
जरा भजन चलाकर आँगन में बैठने जा रही हूँ। आ जाउंगी दोपहर तक वापस। तब तक जैसा साधू बाबा कहे वैसा ही करना , आखिर तुझ जैसी निपूती को लेकर
कब तक अपने घर के अन्न से भरे बोरे ठुसाउंगी ।
मैंने आशा भरी नज़रों से अपने पति की ओर देखा जो मेरी नज़रों का सामना
ना करते हुए मेरी सास के पीछे जाकर छुप गया। मैंने मन ही मन अपने कायर पति को
धिक्कारते हुए सोचा कि किस मनहूस घडी में पंडित के कहने
पर इस लचर से आदमी ने मेरी रक्षा करने के वचन दिए थे। तभी मेरी सास मेरी तरफ इशारा
करते हुए उस साधू से बोली-" अरे,पूरा मोहल्ला जानता है कि मेरी
बहु सारे जहाँ में कटी पतंग सी डोलती रहती है। कभी इसकी छत
पर तो कभी उसकी देहलीज पर। ये तो आपके सामने
बड़ी सती सावित्री बनने का ढोंग कर रही है। इसके बाल पकड़ कर खींचों और इसे कमरे के
अन्दर बंद कर दो। '
अपने ऊपर इतना गन्दा इल्ज़ाम सुनकर मैं फूट फूट कर रोने लगी ईसारा
मोहल्ला जानता था कि मैंने कभी घर के बाहर पैर भी नहीं निकाला था। जब मैं इन लोगों
की मार खाकर रोती और चिल्लाती थी तब भी अपने आपको बचाने के लिए मैंने कभी किसी
कंधे का सहारा नहीं लिया। साधू ये सुनकर बड़ी ही ध्रष्टता
से मुस्कुराया और अपनी भारी आवाज़ में बोला -" इसमें इस बेचारी
की गलती नहीं हैं इसकी माँ भी ऐसी ही होगी जिसने सारे जीवन गुलछर्रे उड़ाए होगे तो लड़की को कहाँ सँभालने की फुर्सत
मिलती "
मेरा सर्वांग गुस्से से तिलमिला उठा और मेरी आखों के आगे मेरी विधवा
माँ का उदास चेहरा आ गया जिन्होंने विवाह के मात्र दो वर्ष बाद ही अपने अपने पति
को खो देने के बाद चिलचिलाती धूप और बरसते पानी में घर-घर जाकर पापड़ और बड़ी
बेचकर हम भाई बहन को इतना शिक्षित करके विवाह कराया ।
मुझे अपने आप पर शर्म होने लगी। एक तरफ मेरी अनपढ़
माँ थी जिसने अपने नाजुक कन्धों पर घर की सारी जिम्मेदारियों का बोझ
अकेले दम पर सारे समाज को मुहँ तोड़ जवाब देते हुए निभाया और दूसरी तरफ मैं हूँ
एमए उत्तीर्ण करने के बाद भी इस मरियल से आदमी से रोज पिट रही हूँ , जिसमे ना ईमान हैं और ना धर्म
। इस क्रूर आदमी से दिन रात दया की
भीख माँग रही हूँ । तभी मेरी तन्द्रा अपनी सास की कर्कश आवाज़ से टूटी जो अपनी
झुकी हुई कमर को लाठी के सहारे पकड़े हुए खड़ी थी। वो मेरी माँ के चरित्र पर लांछन
लगाते हुए जोर जोर से चीख रही थी। वो जितने अपशब्द मेरी माँ को कह रही
थी उतना ही भावनात्मक साहस पता नहीं मेरे अन्दर कहाँ
से आ रहा था। और जैसे ही साधू मेरी सास की रजामंदी पाकर मेरी ओर बढ़ा
मैंने बिजली की गति से सास के हाथ से डंडा लिया जिससे वो हड़बड़ाकर
नीचे गिर पड़ी और ताबड़तोड़ मैंने उस साधू पर उसी डंडे से प्रहार करना शुरू कर दिया।
बारह वर्षो का दुःख और दर्द जैसे लावा बनकर मेरे अन्दर बह रहा था और आज वो पूरी
तरह से इन पापियों को अपने साथ बहा ले जाना चाहता था। जब साधू लहुलुहान हो गया तो
मैंने जलती हुई नज़रों से अपने पति और सास की ओर देखा जो डर के मारे थर थर काँप रहे थे।
मैं कुछ कहूँ , इससे
पहले ही मेरी सास बोली-" तू ही तो मेरी इकलौती बहू हैं, क्या अपनी माँ पर तू हाथ
उठाएगी। ये ले आज से ये सारा घर तू ही संभालेगी और ये कहते हुए उन्होंने चाभियों
का गुच्छा कांपते हाथों से मेरे हाथ में थमा दिया ।
अपने हाथों में पड़े फफोलो ओर नीले दागों को देखकर अन्दर से लगा की ये
दोनों भी मेरी मार के पूरे हकदार हैं पर बचपन में ही माँ के दिए हुए संस्कार एक
बार फिर आगे आ गए और मैंने ईश्वर से ही उन्हेंदंड देने को कहा क्योंकि उसका किया
हुआ न्याय बिलकुल सही और सटीक होगा। मैंने तिरछी नज़रों से अपने पति की ओर देखा जो
हमेशा की तरह एक कोने में दुबका खड़ा था। मैं उन कायरों को उस ढोंगी साधू के साथ
छोड़कर एक फीकी मुस्कान के साथ चाभियों का गुच्छा घुमाती हुई चल दी अपने ससुर को
किसी अच्छे डॉक्टर के पास ले जाने
के लिए.....
मञ्जरी शुक्ल , इलाहाबाद
9616797138
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