मंगलेश दत्त
कनुआ से चितचोर अलग्ग'इ होमें हैं।
चिते चिताए मोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
चिते चिताए मोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
महल'न कों समसान करें जो चुटकी में।
वे तिरिया घरफोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
वे तिरिया घरफोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
यों लागै ज्यों मैया थपकी दै रइ होय।
जमना जी की हिलोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
जमना जी की हिलोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
तोता चिरिया हू बोलें राधे राधे।
ब्रजभूमी की भोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
ब्रजभूमी की भोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
भवसागर सों खेंच, बचामें भगतन कों।
मंगलेश, गुरु-डोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
मंगलेश, गुरु-डोर अलग्ग'इ होमें हैं॥
सुन लेउ सबरे हक्क-बँटैया चार दिना कौ मेला है।
रंक बचें नईं राजा, भैया-चार दिना कौ मेला है॥
रंक बचें नईं राजा, भैया-चार दिना कौ मेला है॥
जैसी करनी वैसी भरनी कौ सिद्धान्त अटल है तौ।
फिर काहे कौ रोनों? भैया-चार दिना कौ मेला है ।।
फिर काहे कौ रोनों? भैया-चार दिना कौ मेला है ।।
यै हू चँइयै वौ हू चँइयै सुरसा सौ म्हों फाटौ'इ जाय।
कब समझिंगे लोग-लुगैया-चार दिना कौ मेला है ।।
कब समझिंगे लोग-लुगैया-चार दिना कौ मेला है ।।
राबन कुंभकरन जैसे वीर'न के कुल में हू भैया।
बचौ न कोऊ दीप जरैया-चार दिना कौ मेला है ।।
बचौ न कोऊ दीप जरैया-चार दिना कौ मेला है ।।
मंगलेश सब कौ सब कछ
धरती पै ही रह जानौ है।
कर लेउ कितनी'उ ताता थैया-चार दिना कौ मेला है॥
कर लेउ कितनी'उ ताता थैया-चार दिना कौ मेला है॥
मन की धरा पै तप्त-धारा मत बहाऔ प्राणधन।
कोमल-कपोल'न कों न अँसुअ'न सों गराऔ प्राणधन॥
कोमल-कपोल'न कों न अँसुअ'न सों गराऔ प्राणधन॥
कारी बदरिय'न में घिरे मुखचन्द्र के मनभावते।
अलक'न की खिरकि'न सों तनिक दरसन कराऔ प्राणधन॥
अलक'न की खिरकि'न सों तनिक दरसन कराऔ प्राणधन॥
रासेश! रस बरसाउ बस, हिरदे के टुकड़ा मत करौ।
दरसन कराऔ बीजुरी कों मत गिराऔ प्राणधन॥
दरसन कराऔ बीजुरी कों मत गिराऔ प्राणधन॥
अब तौ किसन, कानन* में हू कान'न में कर्कशता घुसै।
अधर'न पै धर कें फिर मधुर मुरली बजाऔ प्राणधन॥
* वन
अधर'न पै धर कें फिर मधुर मुरली बजाऔ प्राणधन॥
* वन
महारास में जा सों बढ्यौ अनुराग सात्विक तत्व
कौ।
फिर सों हमें वौ मदभरी मदिरा पिवाऔ प्राणधन॥
फिर सों हमें वौ मदभरी मदिरा पिवाऔ प्राणधन॥
घनन घनन नभ घिर आऐं बदरा ।
बिरह अगन कों दहकाऐं बदरा ।।
बिरह अगन कों दहकाऐं बदरा ।।
धड़म धूम ध्वनी धड़ड़ड़ धड़ड़ड़ ।
चटर पटर सट बतराऐं बदरा ।।
चटर पटर सट बतराऐं बदरा ।।
बूँदें तीर सी लागत तन पर ।
झमर झमर झम बरसाऐं बदरा ।।
झमर झमर झम बरसाऐं बदरा ।।
चंद्रहास सम दामिनि दमकै।
तड़क भड़क मन डरपाऐं बदरा ।।
तड़क भड़क मन डरपाऐं बदरा ।।
श्याम-श्याम सौं मिल भएे बैरी ।
लड़त झड़त और हरसाऐं बदरा ।।
लड़त झड़त और हरसाऐं बदरा ।।
मंगलेश अति भौत भई अब
।
टरर टरर तज घर जाऐं बदरा ।।
टरर टरर तज घर जाऐं बदरा ।।
ऐरे मनुआ खुद कों तू का समझत है।
साँस-साँस बृसभान-लली की बदौलत है॥
साँस-साँस बृसभान-लली की बदौलत है॥
पल-पल छिन-छिन काहे कों तू रोबत है।
"बिरह-बेदना ब्रिजबासिन की दौलत है" ।।
"बिरह-बेदना ब्रिजबासिन की दौलत है" ।।
तेरौ मेरौ करते भए बरबाद न कर।
जीबन तौ जीबनदाता की अमानत है ।।
जीबन तौ जीबनदाता की अमानत है ।।
जा दौलत कों तेरे संग नहीं जानों।
ऐसी दौलत कौं तू काहे तौलत है ।।
ऐसी दौलत कौं तू काहे तौलत है ।।
मंगलेश दत्त
9867530956
ब्रज गजल
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