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ढीठ, ख़ुदगरज़ी नहीं तो क्या कहें - नवीन

ढीठ, ख़ुदगरज़ी नहीं तो क्या कहें।
दिल को सौदाई नहीं तो क्या कहें॥
ऐ ज़माने तू ही बतला दे, तुझे।
हम, तमाशाई नहीं तो क्या कहें॥
रह्म आता ही नहीं हम पर जिसे।
उस को हरजाई नहीं तो क्या कहें॥
वो तेरी भाभी है पगले, हम उसे।
तेरी भौजाई नहीं तो क्या कहें॥
वॅाटसप और फेसबुक वाली चिराँध।
तुझ को बलवाई नहीं तो क्या कहें॥
जिस को देखो वो ही चैटिंग कर रहा।
इस को तनहाई नहीं तो क्या कहें॥
काम तो कुछ भी नहीं पर व्यस्त हैं।
इस को लुक्खाई नहीं तो क्या कहें॥
तुम हमें जी में जो आये वह कहो।
हम तुम्हें भाई नहीं तो क्या कहें॥
तुम ने भी ठुकरा दिया हम को ‘नवीन’।
इस को उपलब्धी नहीं तो क्या कहें॥
:- नवीन सी चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122






हम समझ पाये नहीं पहला हिसाब - नवीन

हम समझ पाये नहीं पहला हिसाब
वक़्त ले कर आ गया अगली किताब
उन दिनों कुछ अनमना सा था रहीम
मूड कुछ-कुछ राम का भी था ख़राब
लाल जू कहिये तो अब क्या हाल हैं
और कैसा है हमारा इनक़लाब
दोस्त ये दुनिया सँवरती क्यों नहीं
अब तो घर-घर घुस चुका है इनक़लाब
सिर्फ़ सहराओं1 को ही क्या कोसना
हायवे पर भी झमकते हैं सराब2
1
मरुस्थलों 2 मृगतृष्णा
कह रहे हैं कुछ मुसाफ़िर प्लेन के
कर दिया बरसात ने मौसम ख़राब
अब तो बच्चे-बच्चे को मालूम है
किस तरह भारत में घुसते हैं कसाब
हाँ इसी धरती पे जन्नत थी ‘नवीन’
सोचिये किस ने किया खाना-ख़राब

नवीन सी चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122


ज़र्रे-ज़र्रे में मुहब्बत भर रही है - नवीन

ज़र्रे-ज़र्रे में मुहब्बत भर रही है। 
क्या नज़र है और क्या जादूगरी है॥

प्यार के पट खोल कर देखा तो जाना। 
दिल हिमालय, ख़ामुशी गंगा नदी है॥

हम तो ख़ुशबू के दीवाने हैं बिरादर। 
जो नहीं दिखती वही तो ज़िन्दगी है॥

किस क़दर उलझा दिया है बन्दगी ने। 
उस को पाएँ तो इबादत छूटती है॥

ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं हम को। 
इन की आँखों में ग़ज़ब की रौशनी है॥

एक दिन हम ने गटक डाले थे आँसू। 
आज तक दिल में तरावट हो रही है॥







:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122

अज़्म ले कर जब सफ़ीने छूटते हैं - नवीन


अज़्म ले कर जब सफ़ीने छूटते हैं।
जलजलों के भी पसीने छूटते हैं॥
 अज़्म - संकल्प सफ़ीना - नाव,  जलजला - विकट तूफान

छुट नहीं पायेंगे यादों से मरासिम।
औरतों से कब नगीने छूटते हैं॥
 मरासिम - सम्बंध

झूठ-मक्कारी-दग़ा-रिश्वत-ख़ुशामद।
कितने लोगों से ये ज़ीने छूटते हैं॥
 ज़ीना - ऊपर जाने की सीढ़ियाँ

टूट ही जाती है बेऔलाद औरत।
ज्यों ही बछड़े दूध पीने छूटते हैं॥

चाँद जब खिड़की से बाहर झाँकता है।
बेढ़बों से भी क़रीने छूटते हैं॥
 क़रीना - यहाँ style मारने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है



:- नवीन सी. चतुर्वेदी

ये क़लम का ही असर है मस’अलों पर - नवीन

ये क़लम का ही असर है मस’अलों पर
लोग ख़ुद आने लगे हैं क़ायदों पर

बाप उलट देते हैं बेटों की दलीलें
हम बहुत कन्फ्यूज हैं इन पैंतरों पर

शायद इन में भी हो सिस्टम उम्र वाला
मत कसो ताने – पुराने – आईनों पर

राह को भी चाहिये पेड़ों का झुरमुट
गर्मियाँ बढ़ने लगी हैं रासतों पर

हर समर में हम तुम्हारे साथ में थे
देख लो अब भी खड़े हैं मोरचों पर

गौने पे मिलता था शादी का निमंत्रण

बोझ कितना था हमारे डाकियों पर

:- नवीन सी. चतुर्वेदी