अगर मैं अपनी ग़ैरत की नज़र में मर चुका हूँ
तो फिर ये ज़िंदगी किस की है जिस को जी रहा हूँ
मेरी यादों की अल्बम में मेरा बे-फ़िक्र चेहरा
दिखाई जब भी देता है हसद से देखता हूँ
मैं पेश-ओ-पस में था मेरे मुक़ाबिल कौन है ये?
किसी ने सामने आ कर कहा “मैं आईना हूँ”
तुझे अतराफ़ के इस शोर पर इतना यक़ीं है?
कभी मुझ को भी सुन ले मैं तेरे दिल की सदा हूँ
कोई मौज आये तो फिर चल पड़ूँ अगले सफ़र पर
मैं ख़ार-ओ-खस की सूरत साहिलों पर आ लगा हूँ
ये खारापन में कैसे जज़्ब कर लूँ इतनी जल्दी?
अभी कुछ देर पहले ही समन्दर में मिला हूँ
ये मेरी फ़िक्र के मौसम मेरे बस में कहाँ हैं?
कभी साइराब हूँ मैं और कभी सहरा-नुमा हूँ
बहरे हज़ज मुसम्मन
महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
फ़ऊलुन ,
1222 1222 1222 122