कहिये नवीन आप के तेवर कहाँ गये।
क़तरे ही दिख रहे हैं - समुन्दर कहाँ गये॥
अब तो हरिक निगाह यही पूछती है बस।
वे पल जो कल तलक थे मयस्सर - कहाँ गये॥
क़तरे ही दिख रहे हैं - समुन्दर कहाँ गये॥
अब तो हरिक निगाह यही पूछती है बस।
वे पल जो कल तलक थे मयस्सर - कहाँ गये॥
साहिल पे सर पटक के कोई चीखता है रोज़।
मुझ को हराने वाले शनावर कहाँ गये॥
रस्मोरवाज़, इल्म, शराफ़त, मुहब्बतें।
जिनसे है ये जहान वे आज़र कहाँ गये॥
मुमकिन है कल ख़याल उठा दें न ये सवाल।
सर करते थे जो हम को वे लश्कर कहाँ गये॥
नफ़रत के पासबान तुम्हें क्या बतायें हम।
उलफ़त के पासबान कबूतर कहाँ गये॥
मुझ को हराने वाले शनावर कहाँ गये॥
रस्मोरवाज़, इल्म, शराफ़त, मुहब्बतें।
जिनसे है ये जहान वे आज़र कहाँ गये॥
मुमकिन है कल ख़याल उठा दें न ये सवाल।
सर करते थे जो हम को वे लश्कर कहाँ गये॥
नफ़रत के पासबान तुम्हें क्या बतायें हम।
उलफ़त के पासबान कबूतर कहाँ गये॥
हम तो यहीं खड़े हैं मगर आप ऐ 'नवीन'।
बुझते हुये दियों को जला कर कहाँ गये॥
मयस्सर - हासिल, उपलब्ध; शनावर - तैराक; आज़र - शिल्पी, किसी वास्तु-शिल्प आदि को बनाने-सजाने वाले
बुझते हुये दियों को जला कर कहाँ गये॥
मयस्सर - हासिल, उपलब्ध; शनावर - तैराक; आज़र - शिल्पी, किसी वास्तु-शिल्प आदि को बनाने-सजाने वाले
नवीन
सी चतुर्वेदी
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब
मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु
मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221
2121 1221 212
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