ढीठ, ख़ुदगरज़ी नहीं तो क्या कहें - नवीन

ढीठ, ख़ुदगरज़ी नहीं तो क्या कहें।
दिल को सौदाई नहीं तो क्या कहें॥
ऐ ज़माने तू ही बतला दे, तुझे।
हम, तमाशाई नहीं तो क्या कहें॥
रह्म आता ही नहीं हम पर जिसे।
उस को हरजाई नहीं तो क्या कहें॥
वो तेरी भाभी है पगले, हम उसे।
तेरी भौजाई नहीं तो क्या कहें॥
वॅाटसप और फेसबुक वाली चिराँध।
तुझ को बलवाई नहीं तो क्या कहें॥
जिस को देखो वो ही चैटिंग कर रहा।
इस को तनहाई नहीं तो क्या कहें॥
काम तो कुछ भी नहीं पर व्यस्त हैं।
इस को लुक्खाई नहीं तो क्या कहें॥
तुम हमें जी में जो आये वह कहो।
हम तुम्हें भाई नहीं तो क्या कहें॥
तुम ने भी ठुकरा दिया हम को ‘नवीन’।
इस को उपलब्धी नहीं तो क्या कहें॥
:- नवीन सी चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122






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