फूल
जहाँ रखता है; काँटे भी रखता ही है
शायद ऊपर वाला भी अपने जैसा ही है
शायद ऊपर वाला भी अपने जैसा ही है
आख़िर कब तक सच बोलें और बैर बढाएँ हम
आईनों को एक दिन शीशा बन जाना ही है
आईनों को एक दिन शीशा बन जाना ही है
स्वाद हवा का चखते ही दिल झूम उठा साहब
माँ के हाथ के शरबत में जादू होता ही है
माँ के हाथ के शरबत में जादू होता ही है
आप हमारी सज्जनता पे इतना मत रीझें
बाबू जी हम झरनों को गिर कर बहना ही है
बाबू जी हम झरनों को गिर कर बहना ही है
हम ने मज़बूरी में भेड़ों की सुहबत की थी
वरना शेरों की आदत तो मर्दाना ही है
वरना शेरों की आदत तो मर्दाना ही है
आज की दुनिया को अन्धेर पसन्द है क्या कीजे
धुन्ध भरे इस्कूलों का धन्धा बढना ही है
धुन्ध भरे इस्कूलों का धन्धा बढना ही है
क़िस्मत पर सुहबत का साया पड़ता ही है ‘नवीन’
गेंहू की सुहबत में रह कर घुन पिसता ही है
गेंहू की सुहबत में रह कर घुन पिसता ही है
नवीन
सी चतुर्वेदी
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