साहित्यम्
हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास
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चार ग़ज़लें - नरहरि अमरोहवी
[१]
क़ब्र के सिरहाने आशिक टूट कर रोया कोई
ढूँढिये मोती वहाँ मिल जाएगा यक़ता कोई
अब नहीं मुमकिन यहाँ ठंडी हवा के वास्ते
साँस लेने को खुले खिड़की या दरवाज़ा कोई
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