नयनों में धनवान के , जब जब उतरा खून !
नजर मिलाते हो गया , अंधा ये कानून !
ठगिनी माया को कहें , कलयुग के अवधूत !
उनके ही आसन तले , माया मिली अकूत !
भरे पेट को रोज ही , लगते छप्पन भोग !
लड़कर कितने भूख से , सो जाते हैं लोग !
मतलब जब तक मन बसा , मीठा था वो नीम !
रोग कटा तो देख लो , बैरी हुआ हकीम !
ये तो तनिक मजाक था , बुरा गए क्यों मान !
चतुराई से लोग अब , करते हैं अपमान !
मुकर गए जब बात से , राजा संग वजीर !
हाल देख रोने लगी , पत्थर पड़ी लकीर !
दर्शक बन करता रहा , लम्बी चौड़ी बात !
उतरा जब मैदान में , पता चली औकात !
सोन चिड़ी को नोचकर , चले बेढ़बी चाल !
थाती धरें विदेश में , भारत माँ के लाल !
निराधार आरोप पर , बात बढ़ाए कौन !
सबसे अच्छा झूठ का , उत्तर है बस मौन !
माधव के दरबार में , कैसा ये अंधेर !
अंधों के हाथों लगे , देखो आज बटेर !
जग में जो सबकी सुने , फिर मन की ले मान !
उस जन का होता सदा , लोगों में गुणगान !
सब के सिर है आ चढ़ा , आज नशे का भूत !
बाप अहाते में पड़ा , पब में थिरके पूत !
पोरस की बातें सुनी , गया सिकंदर जान !
नहीं टूटता शक्ति से , जन का स्वाभिमान !
गंगा मैली देखकर , उभरा यही सवाल !
आज भगीरथ देखते , होता बहुत मलाल !
राजपाल सिंह गुलिया
9416272973
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