12 अगस्त 2016

ब्रज गजल - उर्मिला माधव

उर्मिला माधव

कहें हम कौन तरियां ते समझ में कैसें आवैगी,
कमी-बेसी कछू भी हो,तौ जे दुनियां सिखावैगी?

न हमने काऊ पै अंगुरी उठाई है अबई तक तौ
बिना संबाई के दुनियां,कहा अंगुरी उठावैगी ?

हमारौ जी तौ दुनियां ते,हमेसा ही अलग सौ हो,
तौ फिर जे कौन सी दम पै हमें रस्ता बतावैगी ?

तुम्हें जब गैल चलनी हो तौ अपने रंग में चलियों,
अगर दुनियां की मानौगे तौ जे दुनियां नाचावैगी ,

है जब तक सांस तब तक कौ ही खेला ऐ सुनौ भैया,
कहूँ जो सांस रुक गई तौ न आवैगी न जावैगी....




न घर ई हमारौ न दुनियां हमारी,
पतौ जे चलौ कै हमईं ए भिकारी,

इमारत तौ अब लौं धरी जों की तों ऐं,
कै सांसई अचानक चली गई बिचारी,

हबाके भरे जिन्ने दुनियां में ऊंचे,
बेऊ मर कैं कित्ते भये भारी-भारी,

जि निश्चित है सब कूँ ई मरनौ पडैगौ,
कभू जाकी बारी,कभू बाकी बारी,

जो कहनी ई हमकूं,सो कहि दई ऐ हमनै,
तौ मानौ न मानौ है राजी तुम्हारी,

सबै छोड़ जानौ है दुनियां कौ मेला,
डरी यईं रहेंगी महलिया अटारी...




मैं तुमें समसान तक लै जाउंगी,
सच तुमें आँखिन ते मैं दिखवाउंगी,

ऐसी सच्चाई लिखी है राख पै,
खुद पढौगे मैं कहा पढ़वाउंगी,

श्याम मुख हों या कि हों कर्पूर मुख,
जे ई सबकौ अंत है समझाउंगी,

देह मुर्दा,आग में जर जायगी
कष्ट काया कौ कहाँ कह पाउंगी,

यईं धरे रह जांगे, घर और जमीन,
सच कहूँ तौ काहे पै इतराउंगी,





प्रेम कौ अनुपात आखिर कैसैं आंकौ जायगौ,
यों बताऔ, मन के भीतर कैसैं झाँकौ जायगौ,

पीर कौ अनुमान अब तक कौन कर पायौ कहौ,
एक ही लठिया ते कैसे प्रेम हाँकौ जायगौ,

आँख के आँसुंन ऐ तौ तुम हाथ ते ढकि लेओगे,
घाव की दुनियां कौ हिस्सा कैसैं ढाँकौ जायगौ,

जिंदगी भर राख चूल्हे की लगी रई हाथ में
जे बताऔ और कब तक रेत फांकौ जायगौ,

झालरी,झूमर सजा केँ, देह सुन्दर कर लई,
कौन खन जे भाग मोतिन संग टांकौ जायगौ ?


उर्मिला माधव....
9873772802


ब्रज गजल 

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