ब्रज भूषण चतुर्वेदी 'दीपक'
मन में जब सौं आन बसी है
तेरी प्रीत सयानी सी ।
बिन बदरा के सावन बरस्यौ
दुनियाँ लगै दिवानी सी ।
तेरी प्रीत सयानी सी ।
बिन बदरा के सावन बरस्यौ
दुनियाँ लगै दिवानी सी ।
बिना फूंक के बजी बंसुरिया
नैया बिन पतवार चली ।
बिना पवन के नील गगन में
धुजा लगी फहरानी सी ।
नैया बिन पतवार चली ।
बिना पवन के नील गगन में
धुजा लगी फहरानी सी ।
हर मौसम मधुमास है गयौ
हर आँगन ज्यौं फुलवारी ।
बाग़ बगीचन ओढ़ लई है
आज चुनरिया धानी सी ।
हर आँगन ज्यौं फुलवारी ।
बाग़ बगीचन ओढ़ लई है
आज चुनरिया धानी सी ।
भरे गाम के ताल तलैया
बिन चौमासे झर लागे ।
कीच भई है आँगन आँगन
प्रीत रीत उमगानी सी ।
बिन चौमासे झर लागे ।
कीच भई है आँगन आँगन
प्रीत रीत उमगानी सी ।
धरती अम्बर दिसा दिसा सब
तेरी सी उनिहार लगै ।
पूरी दुनियां दीखै तेरी मेरी
प्रेम कहानी सी ।
तेरी सी उनिहार लगै ।
पूरी दुनियां दीखै तेरी मेरी
प्रेम कहानी सी ।
ब्रज भूषण चतुर्वेदी ‘दीपक’
8057697209
ब्रज गजल
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