देख उट्ठे हैं सब .......हिक़ारत से - हादी जावेद

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हादी जावेद


देख उट्ठे हैं सब .......हिक़ारत से
बाज़ आ जाओ अब हिमाक़त से
ताज छीने गये हैं ताक़त से
तख़्त पलटे गये बग़ावत से
हम भी बेमौत मारे जायेंगे
एक दिन आपकी शरारत से
अस्ल पाकीज़गी तो रूह की है
बिलयकीं जिस्म की तहारत से
नेकियों का सिला न मिल पाया
हो गये सब अमल अकारत से
तुम ही तन्हा वतन परस्त नहीं
है मुहब्बत हमें भी भारत से
मुझको अल्लाह ने नवाज़ा है
शेर कहता हूँ मैं निफ़ासत से
क्या तवक़्कौ पनाह की "हादी"
एक टूटी हुई .........इमारत से

........ हादी जावेद.............
8273911939

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22


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