ज़िन्दगी है निखार लमहों का - नवीन

ज़िन्दगी है निखार लमहों का।
कीजिये ऐतबार लमहों का॥
आज परियाँ उतरने वाली हैं।
झट से आँगन बुहार लमहों का॥
हम-शुआएँ तेरी तलब में हैं।
वक़्त दामन पसार लमहों का॥
उस ने सदियाँ निसार दीं हम पर।
हम ने माँगा था प्यार लमहों का॥
जिसने पाया वही समझ पाया।
एक बोसा हज़ार लमहों का॥
हम तो उस एक पल में ही गुम हैं।
कैसे करते शुमार लमहों का॥
ऐ ‘नवीन’ अब तो होश में आ जा।
सर से नश्शा उतार लमहों का॥

नवीन सी चतुर्वेदी
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22


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