इस ग़ज़ल पर नया काम
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है।
ख़ुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है।१।
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी।
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। २।
वक्त बदन से चिपकी स्थितियों के काँधों पर।
सुख-दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है।३।
हम भी इसी दुनिया के रहने वाले हैं यारो।
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है।४।
सात समंदर पार बसे वो, उस को क्या मालूम।
उस को फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है।५।
ताज़्ज़ुब होता है हम-तुम कैसे पढ़ लिख गये यार।
अब तो पैदा होने में भी खर्चा लगता है।६।
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है।७।
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नवंबर माह की हिंद युग्म द्वारा आयोजित यूनिप्रतियोगिता में इस ग़ज़ल को पुरस्कृत किया गया है| इस अनुग्रह के लिए हिंद युग्म परिवार का शत शत आभार|
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Monday, December 20, 2010
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NAVIN C. CHATURVEDI |
प्रतियोगिता मे
छठा स्थान
नवीन चतुर्वेदी की ग़ज़ल को मिला है। हिंद-युग्म पर यह उनकी पहली रचना है। नवीन सी चतुर्वेदी का जन्म अक्टूबर 1968 मे मथुरा मे हुआ। वाणिज्य से स्नातक नवीन जी ने वेदों मे भी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की है। अभी मुम्बई मे रहते हैं और साहित्य के प्रति खासा रुझान रखते हैं। आकाशवाणी मुंबई पर कविता पाठ के अलावा अनेकों काव्यगोष्ठियों मे भी शिरकत की है और आँडियो कसेट्स के लिये भी लेखन किया है। ब्रजभाषा, हिंदी, अंग्रेजी और मराठी मे लेखन के साथ नवीन जी ब्लॉग पर तरही मुशायरों का संचालन भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा नयी पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास है।
पुरस्कृत रचना: अच्छा लगता है
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है|
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|
वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|