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लपेट कर रखे हैं मुख,चढ़ा रखे हैं आवरण - राजकुमार कोरी "राज़"

लपेट कर रखे हैं मुख,चढ़ा रखे हैं आवरण
कमाल कर रहा है लोकतंत्र का वशीकरण
लपेट कर रखे हैं मुख,चढ़ा रखे हैं आवरण
कमाल कर रहा है लोकतंत्र का वशीकरण
दिखावटों में जी रहा है, आजकल का आदमी
लगाव है, न प्रेम है , हृदय में हैं ,समीकरण
बिरादरी के नाम पर, लुटे सभी हैं देख लो
रुला रहा है देश को, ये वोट का ध्रुवीकरण
शहीद हो, लड़े वही, सुधार सब वही करे
हरेक चाहता है बस, महापुरुष का अवतरण
लिखे पढ़े सुजान ये , नशे में डूबते युवा
दशा बड़ी विचित्र है , न सूझता निराकरण
मनोदशा को भाँप कर , लड़े चिराग़ आस में
डरे तिमिर जहाँ उठे ये सूर्य की प्रथम किरण
उजाड़ गुलशनों को भूल आ नई पहल करें
खिले हुए ये पुष्प हैं बहार के उदाहरण।
लहूलुहान वर्दियों ने, वो कहा कि "राज़"बस
ये भाव अब निःशब्द हैं कि रो पड़ी है व्याकरण
राजकुमार कोरी "राज़"

बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़
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बढा रही हैं रंगतें हुज़ूर के दयार की - नवीन

बढा रही हैं रंगतें हुज़ूर के दयार की।
धिनक-धिनक-धिनक-धिनाक-धिन धुनें धमार की॥
निकुंज के सनेहियों को और चाहिये भी क्या।
वही किशन की बाँसुरी वही धुनें धमार की॥
इसी लिये तो आप से सनेह छूटता नहीं।
इक आप ही तो सुनते हैं शिकायतें शिकार की॥
लता-पताएँ छोड़िये महक तलक उदास है।
बिछोह में झटक गयी हैं बेटियाँ बहार की॥
कभी कहो हो सब्र कर कभी कहो हो भूल जा।
बदल रहे हैं आप क्यों दवाइयाँ बुख़ार की॥
न कल्प-वृक्ष चाहिये न कामधेनु चाहिये।
हुज़ूर हम तो चींटियाँ हैं आप के दयार की॥
ज़ुरूर उन को भी हमारी याद आई है ‘नवीन’।
तभी तो बात हो रही है नन्द के कुमार की॥
गिरह:-
तजल्लियों* ने आदमी को सोचना सिखा दिया।
” ‘
ये’ दासतान है नज़र पै रौशनी के वार की”॥
*तेज-पुंज / दैवीय-प्रकाश / ज्ञान-रश्मियाँ / प्रकाश-किरणें
तसव्वुर (कल्पना) बतलाता है कि मानव की दृष्टि पर सबसे पहला रश्मि-वार सूर्य-चन्द्रमा के प्रकाश की किरणों का हुआ होगा।

नवीन सी चतुर्वेदी


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बचानी हो हुज़ूर को जो आबरू दयार की - नवीन

बचानी हो हुज़ूर को जो आबरू दयार की
तो मुलतवी नहीं करें अरज किरायेदार की
न तो किसी उरूज की न ही किसी निखार की
ये दासतान है सनम उतार के उतार की
बहुत हुआ तो ये हुआ कि हक़ पे फ़ैसला हुआ
कहाँ समझ सका कोई शिकायतें शिकार की
चमन की जान ख़ुश्बुएँ हवा से डर गयीं अगर
तो कैसे महमहाएँगी ये बेटियाँ बहार की
मरज़ मिटाने की जगह मरज़ बढाने लग गयीं
बुराइयों में मिल गयीं दवाइयाँ बुख़ार की
ज़मीन पर हरिक तरफ़ तरन्नुमों का राज है
कमाल का ख़याल हैं सदाएँ आबशार की॥
धुआँ धुआँ धुआँ धुआँ उड़ाते जा रहे हैं सब
न जाने क्या दिखायेगी अब और ये एनारकी { anarchy }
उठा-पटक के दौर में न शर्म है न लाज है
भलाइयों की तश्तरी हमीं ने छार-छार की
अज़ीब कर दिया समाँ बिगाड़ दी है कुल फ़जा
पसरती जा रही है लू मरुस्थली बयार की
न ख़ाक हूँ न चाक हूँ छड़ी न जल न डोरियाँ।
नवीन’ सच तो ये है बस कला हूँ मैं कुम्हार की॥

नवीन सी चतुर्वेदी


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रहे जो आईनों से दूर तो क़दम बहक गये - नवीन

नया काम 
******** 

रहे जो आईनों से दूर तो क़दम बहक गये। 
और आईना उठाया तो, कई भरम बहक गये।। 

जहानेहुस्न का बड़ा अजीब सा है मस’अला। 
ज़रा कहीं हवा चली कि पेचो-ख़म बहक गये।। 

हमारी ओर देख कर यूँ मुस्कुराया मत करो। 
तुम्हें तो लुत्फ़ आ गया हमारे ग़म बहक गये।। 

उदास रात में जो दावा कर रहे थे होश का।
सहर हुई तो होश खोये और सनम बहक गये।। 

अब आप ही बताइये कि उनका क्या क़सूर है। 
चमक-दमक ने गुल खिलाये, मुहतरम बहक गये।। 




पुराना काम 
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जो आईना न देखेँ तो क़दम बहकने लगते हैं
और आईने को देखें तो भरम बहकने लगते हैं

भरम की गाँठ खोल कर बुलायें क्यूँ मुसीबतें
ज़रा हवा लगी कि पेचोखम बहकने लगते हैं
पेचोखम - शायरी में पेचोखम को टेढ़ी-मेढ़ी, जटिल, चक्कर / पेच दार जुल्फ़ों के लिये इस्तेमाल किया जाता है। इसे दुनियावी पेचोखम की तरह भी समझा जाता है।

जहानेहुस्न का बड़ा अज़ीब सा है मसअला
लटें बँधी न हों तो पेचोखम बहकने लगते हैं

हमारी ओर देख कर यूँ मुस्कुराया मत करो
क़सम से जानेमन तमाम ग़म बहकने लगते हैं

किसी के इंतज़ार में गुजारते हैं रात फिर
उदासियों के साथ सुब्ह-दम बहकने लगते हैं

नज़र के दर पे आयें गर चमक-दमक-लहक-महक
हमारी क्या बिसात मुहतरम बहकने लगते हैं

गिरफ़्त ही सियाहियों को बोलना सिखाती है

वगरना छूट मिलते ही क़लम बहकने लगते हैं

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

सभी गुनाह कर के भी वो बेगुनाह बन गयी - नवीन

सभी गुनाह कर के भी वो बेगुनाह बन गयी
अदालत उस के हक़ में ख़ुद-ब-ख़ुद गवाह बन गयी १

क़दम-क़दम पे मुश्किलें खड़ी हैं सीना तान कर 
ये ज़िन्दगी तो आँसुओं की सैरगाह बन गयी २

हमारे हक़ में उस ने तो चमन उतारे थे मगर
हमारी भूख ही हमारी क़ब्रगाह बन गयी ३

क़लम की रोशनाई रोशनी को जिस पे नाज़ था 
न जाने क्यूँ अँधेरों की पनाहगाह बन गयी ४

अदब की अज़मतों की इक मिसाल देखिये हुजूर
अदीब जिस पे चल पड़े वो शाहराह बन गयी ५

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

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मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन

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