31 जुलाई 2011

निभाई यार से यारी मेरा श'ऊर था वो - नवीन











स्वर राजेन्द्र स्वर्णकार


निभाई यार से यारी, मेरा श'ऊर था वो|
मगर, यूँ लगता है अब तो, कोई क़ुसूर था वो|१|

चली हवा तो पतंगे सा उड़ गया पल में|
बताया लोगों ने मुझको, मेरा ग़ुरूर था वो|२|

वो जो हसीन परी का ख़याल था दिल में|
सही कहूं, तो ख़यालात का फ़ितूर था वो|३|

फ़क़ीर दिल ने इरादा बदल दिया, वरना|
वो चाँद बाँहों में ही था, न मुझसे दूर था वो|४|

राजेन्द्र भाई ने अपनी आवाज़ से इस ग़ज़ल को सार्थक बना दिया है| उन का दिल से बारम्बार आभार|


मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन 
1212 1122 1212 22
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ

30 जुलाई 2011

बनिए जो आगेवान, काम करिए महान

बात-बात पे बहस, करे तहस नहस,
बात करिए सरस, कस के न बोलिए|

मन में रहे न बैर, तो सदा रहेगी खैर,
अपना हो या कि गैर, गुण ही टटोलिए|

छोड़ के बुराइयों को, जोड़ के भलाइयों को
ओढ़ के बधाइयों को, फूले-फूले डोलिए|

बनिए जो आगेवान, काम करिए महान
तारीफ करें सुजान, ऐसी राह खोलिए||

शब्दार्थ:-
आगेवान = नेतृत्व करने वाला / वाले
सुजान - बुद्धिमान व्यक्ति / सज्जन

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रस-छंद-अलंकार के प्रेमियों के हितार्थ:-

यह अनुप्रास अलंकार युक्त घनाक्षरी छन्द है|
छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास, लाटानुप्रास, अन्त्यानुप्रास तथा श्रुत्यानुप्रास
ये पांच भेद हैं अनुप्रास अलंकार के और ये पाँचो के पाँचो प्रकार
इस एक ही छंद में मौजूद हैं|
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27 जुलाई 2011

कहते उसी को घर


बच्चे - बड़े - बूढ़े   जहाँ  पर,  प्यार  से  बातें  करें|
अपनत्व के तरु* से अहर्निश*, फूल खुशियों के झरें|
मृदुहास मय परिहास एवम आपसी विश्वास हो|
कहते उसी को 'घर', जहाँ, सुख - शांति का आभास हो||

*
तरु - पेड़, वृक्ष 
अहर्निश - रात-दिन, हमेशा  
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मात्रिक छन्द - हरिगीतिका

  • १६+१२=२८मात्रा
  • प्रत्येक चरण में १६ मात्रा के बाद यति / ध्वनी विराम [बोलते हुए रुकना]
  • चार चरण वाला छंद 
  • पहले-दूसरे तथा तीसरे-चौथे चरणों का तुकांत समान होना चाहिए 
  • चारों चरणों का तुकांत भी समान हो सकता है 
  • हर चरण के अंत में लघु-गुरु [१२] अनिवार्य


[छंद संदर्भ - श्री राम चंद्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणं]
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उपरोक्त हरिगीतिका छन्द की मात्रा गणना:-

पहला चरण:-
बच्चे-बड़े-बूढ़े जहाँ पर,
२२    १२  २२  १२  ११ = १६ मात्रा तथा यति
प्यार से बातें करें|
२१  २  २२   १२  = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

दूसरा चरण:-
अपनत्व के तरु से अहर्निश, 
११२१   २   ११  २   १२११ = १६ मात्रा तथा यतिफूल खुशियों के झरें|२१   ११२     २  १२ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

तीसरा चरण:-
मृदुहास मय परिहास एवम
११२१   ११   ११२१   २११ = १६ मात्रा तथा यति
आपसी विश्वास हो|
२१२    २२१     २ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

चौथा चरण:-
कहते उसी को घर जहाँ, सुख-
११२   १२   २   ११  १२  ११ = १६ मात्रा तथा यति
शांति का आभास हो||
२१   २     २२१   २ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

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25 जुलाई 2011

घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
कोस कोस पे पानी बदले तीन कोस पे बानी

इस पोस्ट को पढ़ने के लिए विशेष समय और रुचि की आवश्यकता है

देखते ही देखते चौथी समस्यापूर्ति के समापन का समय भी गया| खड़ी बोली में १६ कवियों / कवियत्रियों के ४२ घनाक्षरी छंदों को पढ़ने के बाद, प्रांतीय / आंचलिक भाषा / बोलियों को समर्पित इस समापन पोस्ट में हम पढ़ेंगे १० कवियों द्वारा २३ भाषा / बोलियों में शब्दांकित किए गये २५ घनाक्षरी छंदों को|

पोस्ट काफी बड़ी होने के कारण नो मोर प्रस्तावना - नो मोर भूमिका और नो मोर टिप्पणियाँ मंच की तरफ से| इतना ज़रूर कहेंगे कि बड़ी ही मेहनत से तैयार किए गए छंदों से सजी इस पोस्ट को तसल्ली से पढ़ कर टिप्पणी में वह लिखें, जो भविष्य में और अच्छे काम का हेतु बने|

एक और बात इस पोस्ट में सम्पादन को ले कर बहुत ज्यादा काम नहीं किया गया है, बल्कि छंदों को यथावत प्रस्तुत करने को प्राथमिकता दी गयी है|

गर है सच्चा प्यार - व्यक्त करिए जीते जी

जीते जी पूछें नहीं, चलें निगाहें फेर
आँख मूँदते ही मगरतारीफों के ढेर
तारीफों के ढेर, सुनाते अद्भुत किस्से
क्या सच है - क्या झूठ, कौन पूछे ये किस से
मृत्यु बाद सन्ताप - भला क्या सिद्ध करे जी

गर है सच्चा प्यार - व्यक्त करिए जीते जी

22 जुलाई 2011

अलादीन का चराग नहीं है सीसीटीवी [Before going for CCTV]

CCTV System
बचपन में एक कहानी पढ़ते थे कि अलादीन के पास एक चिराग था| जैसे ही वो इस चिराग को घिसता - धूएँ के गुबार के साथ ज़िन्न हाजिर हो कर बोलता था - क्या हुकुम है मेरे आका| अलादीन फरमाइश करता और चिराग का ज़िन्न उस की हर फरमाइश को पूरी कर देता| इलेक्ट्रोनिक गेजेट्स को ले कर भी अक्सर आम हिन्दुस्तानी की इसी मानसिकता से रु-ब-रु होना पड़ता है| गत वर्षों के दौरान जब भी किसी क्लाईंट से मिला या बात की, अधिकतर मौकों पर कुछ कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ है| CCTV System को ले कर जो बातें अक्सर सामने आईं, उन में से कुछ -

१. बहुत महँगा है  - यार अपनी ज़रूरत के मुताबिक लो ना
२. चलता ही नहीं है - चलाना सीखा था या नहीं
३. एक केमेरा कितने का पड़ेगा - भाई दाल-चावल का भाव पूछ रहे हो क्या? दर-असल केमेरा पूरे सिस्टम की एक इकाई मात्र होता है|]
४. कितनी दूर तक दिखाई पड़ेगा - शायद ये लोग क्रिकेट मेच नहीं देखते

खैर आम इंसान को ब्लेम करना भी नहीं चाहिए| मज़ा तो तब आता है जब कोई अपने आप को टेक्निकल बंदा बताने के बाद पूछ बैठता है रिकार्डिंग के लिए कम्प्युटर चाहिए क्या? और तब इन्हें ये भी बताना पड़ता है कि कम्प्युटर आज कितने स्वरूपों में मौजूद है|

तो पोस्ट को बहुत बड़ी न करते हुए, ५ बेसिक बातें आप लोगों के साथ साझा करता हूँ, जिन पर हमें ध्यान देना चाहिए before going for CCTV System

१. क्या वाकई आप को इस सिस्टम की ज़रूरत है? या आप सिर्फ लगवाने के लिए ही लगवा रहे हैं| ज़रूरत है तो क्यूँ? उन बातों को एक कागज पर नोट कर लें|
२. बाज़ार में हर तरह के व्यक्तियों का रिकार्ड मौजूद रहता है| ठीक से जाँच-पड़ताल कर के उस व्यक्ति को बुलाएँ, जो इस सिस्टम को जानता हो और आड़े वक़्त आप को मददगार साबित हो| मेरा मतलब है कि तारों को केमेरे से जोड़ देना ही सिस्टम इंटीग्रेशन नहीं होता|
३. सिस्टम लगने के बाद आप के यहाँ से कम से कम दो लोगों ने इस की ट्रेनिंग ली है या नहीं| ट्रेनिंग लिया हुआ व्यक्ति स्थानांतरण वगैरह के केस में आने वाले प्रतिनिधि को ट्रेनिंग पास ऑन कर रहा है या नहीं|
४. ऊपर की तीनों बातों के अलावा ये भी जरूरी है कि आप की तरफ से सिस्टम की टाइम टू टाइम मॉनिटरिंग / एसेस्मेंट होना चाहिए|
५. At any point of Time, CCTV system MUST be covered under MAINTENANCE CONTRACT

मैं समझता हूँ, यदि इन ५ मूलभूत बातों पर गौर कर लिया जाये, तो CCTV System वाकई में वरदान साबित होगा, अन्यथा ये ऐसा होगा जैसे किसी अनपढ़ के हाथ में ब्लेक बेरी थमा देना| आप में से किसी भी मित्र या उन के परिचित को यदि CCTV को ले कर कोई problem हो तो बिना संकोच मुझे navinc@vensys.biz पर लिखने की कृपा करें| हाँ अपना रेफेरेंस ज़रूर दें|

20 जुलाई 2011

३ घनाक्षरी / कवित्त छन्द

समस्या पूर्ति मंच द्वारा आयोजित घनाक्षरी छंद सम्बंधित समस्या पूर्ति के लिए लिखे गए तीन घनाक्षरी छंद 


हिंदी 

माना कि विकास, बीज - से ही होता है मगर
इस का प्रयोग किए- बिना, बीज फले ना|

इस में मिठास हो तो, अमृत समान लगे
खारापन हो अगर, फिर दाल गले ना|

इस का प्रवाह भला कौन रोक पाया बोलो
इस का महत्व भैया टाले से भी टले ना|

चाहे इसे पानी कहो, चाहे इसे ज्ञान कहो
सार तो यही है यार 'नार' बिन चले ना||


समस्या पूर्ति मंच पर की घनाक्षरी छंद वाली समापन पोस्ट में प्रकाशित मेरे दो छन्द 

गुजराती

ઢોકળાં-ખમણ, ભૂંસું, ચેવડા મસાલેદાર,
ફાફડા, ઘારી, જલેબી-ગાંઠિયા પ્રસિદ્ધ છે.

પેંડા તો મલાઈદાર, ઘેરદાર ઘાંઘરો, ને-
કાઠિયાવાડી પાટલા-સાતિયા પ્રસિદ્ધ છે.

કૉક જગ્યા માયાવતી, સોનિયા, જયલલિતા,
કૉક જગ્યા ટાટા વાણી રાડિયા પ્રસિદ્ધ છે.

પણ આખી દુનિયા માં જેમનું પ્રતાપ, ઍ તો,
ગુજરાતી ગરવા ને ડાંડિયા પ્રસિદ્ધ છૅ

देवनागरी लिपि के साथ

ढोकला-खमणभुसूचेवडा मसालेदार,
फाफडाधारीजलेबी-गांठिया प्रसिद्ध छे|

पेंडा तो मलाईदारघेरदार घांघरोने-
काठियावाडी पाटला-सातिया प्रसिद्ध छे|

कोक जग्या मायावतीसोनियाजय-ललिता,
कोक जग्या टाटा वाणी राडिया प्रसिद्ध छे 

पण आखी दुनिया मां जेमनुं प्रताप तो,
गुजराती गरवा ने डांडिया प्रसिद्ध छे||

[इस गुजराती छंद में मदद स्वरूप भाई पंकज त्रिवेदी जी का आभार]


मराठी

भारतात दुसरा शहेर आहे कोण असा,
जागृत चौवीस तास ज्याची पहिचान हो 

कुठल्याही भागातूनआला इथे जे इसम,
इकडच्या कायमी तो झाला इनसान हो 

देशातील सर्वाधिक राजस्व च्या मानकरी 
जगातील रुचिकर कारोबारी स्थान हो|

छोटी-मोठी घटना बिघाड काय करणार,
मी मुंबईकरमाझा मुंबई महान हो||

सरलार्थ

भारत में ऐसा दुसरा कौन सा शहर है
जिसे कभी  सोने वाले शहर की पहिचान हासिल हो  

किसी भी कोने से यहाँ जो भी इन्सान आता है
वो हमेशा के लिये यहाँ का हो जाता है  

देश में सब से ज्यादा राजस्व भरने का गौरव हासिल है इसे  
दुनिया का पसन्दीदा कारोबारी स्थान है

छोटी-मोटी घटना क्या बिगाड लेंगी  
मैं मुंबईकर हूंमेरा शहर मुंबई महान है

13 जुलाई 2011

पैरोडी - मैं तुमको ये पोस्ट पढ़ाऊँ - मेरी मर्ज़ी

विशेष सूचना - ये पोस्ट सब से पहले मेरे ऊपर लागू होती है ....................... 

टिप्पणी किस को नहीं चाहिए, सब को ही चाहिए| मुझे भी चाहिए| जो ना-ना करते हैं उन्हें भी चाहिए भाई| टिप्पणी धर्म निभाने के लिए कई बार हम में से कई सारे लोग केजुअल टिप्पणियाँ भी करते रहते हैं, ये एक ऐसा सच है - जिसे कम से कम मैं तो झुठला नहीं सकता| पर दुख होता है जब हमारे द्वारा मेहनत और लगन से बनाई गई पोस्ट्स पर कोई केजुअल से भी आगे बढ़ कर अ-सन्दर्भित कमेंट चिपका जाता है| संभव है कभी मुझ से भी ये हो गया होवे| भाई मैं भी तो इंसान ही हूँ ना| 

'सकारात्मक विकेंद्रित विचार विनिमय' की कामयाबी की राह में ऐसी टिप्पणियाँ प्रोत्साहन कम और हतोत्साहन अधिक करती हैं| ब्लॉगिंग का आज पर्याय नहीं है| ब्लॉगिंग आज देश व्यापी मूवमेंट्स का आधार भी बनने लगी है| ब्लॉगिंग ने गली-कूचों में, अनिर्दिष्ट भविष्य के लिए अभिशप्त हो चुके - कई सारे रचनाधर्मियों को एक मंच उपलब्ध कराया है| यहाँ कई सारे अच्छे ब्लॉगर हैं, ये न होते तो आज आप मेरी इस पोस्ट को न पढ़ रहे होते| नये ब्लॉगर्स के उत्साह वर्धन से रत्ती भर भी इनकार नहीं है| अपने ब्लॉग पर दूसरों को बुलाने योग्य बनाने के लिए घुमक्कडी से भी लेश मात्र तक परहेज नहीं है - पर हाँ, इतनी कसक अवश्य है, भाई टिप्पणी कम से कम सन्दर्भ के साथ तो दो, अदरवाइज आप जैसा अच्छा पाठक पाना भी हमारे लिए कोई कम उपलब्धि थोड़े ही ना है............ 

हर दिन दर्ज़नों पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले हम सभी के लिए सारी पोस्ट्स डीटेल में पढ़ना, उन पर चिंतन करना और अपने विचार व्यक्त करना वैसे भी मुश्किल तो होता ही है| जहाँ तक मेरा सवाल है, एक बार टिप्पणी करने के बाद मैं शायद ही पलट कर देखता हूँ कि उस पोस्ट पर आगे क्या विचार विमर्श हुआ है| फिर तो ये तो ऐसा हुआ, होठों को कुछ चौड़ाई प्रदान करते हुए गर्दन हिला कर राह चलते किसी से हाय हेलो कर दी| क्या इस लिए कर रहे हैं हम ये सब? मैं क्यूँ अपेक्षा रखता हूँ कि मुझे भी टिपण्णी शतक वीर के नाम से जाना जाए? इस का उत्तर मुझे ही ढूँढना होगा|

ऐसे विचार कई बार आते हैं मन में, आप में से कई के साथ इस तरह की बातें भी हुई हैं, फ़ोन पर, चेट के माध्यम से भी| मनोज भाई से बात करते हुए आज अचानक मूड हुआ कि चलो इस पर एक हास्य कविता [पेरोडी टाइप] पेश की जाए| और लीजिए हाजिर है ये पेरोडी आप को  गुदगुदाने के लिए| अब इस के कमेन्ट में ये न लिखना "समाज का दर्पण दिखाता................... ये गंभीर..................... आलेख...................... मेरे दिल............................. को छू ........................................... गया..........................|

ब्लॉग वर्ल्ड का नया खिलाड़ी हूँ मैं मेरे यार
मेरे दिल में जो आए वो लिखता हूँ हर बार
पढ़ना लिखना मैं ना जानूँ, ये न मुझे स्वीकार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार

............मेरी मर्ज़ी............

कविता को मैं गीत बता दूँ मेरी मर्ज़ी
गीत को पोएट्री बतला दूँ  मेरी मर्ज़ी
ग़ज़ल को अच्छी नज़्म बता दूँ मेरी मर्ज़ी
ग़ज़ल के बदले गीत पढ़ा दूँ मेरी मर्ज़ी
टिप्पणियाँ की गरज अगर तो कर लो ये स्वीकार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार


कुंडलिया को रबर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
छन्दों को मुक्तक बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
हास्य कृति, गंभीर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
व्यंग्य को फुलझड़ियाँ बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
ग़ूढ विषय में दिख सकते हैं कोमल भाव अपार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार

लंबे-लंबे लेख पढ़ूँ, ये बस में ना मेरे
कौन पढ़े इतिहास और भूगोलों के ढेरे
पढ़ लेता दो पाठ तो फिर डॉक्टर ना बन जाता
डॉक्टर बन जाता तो काहे कविता चिपकाता
इत्ती सी ये बात समझ पाते ना मेरे यार 
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार


अब इत्ती बड़ी पोस्ट पढ़ के भी किसी ने अ-संदर्भित टिपण्णी दी, तो 
तो 
तो 
तो 
तो 
क्या कर सकता हूँ मैं............... झेलना ही पड़ेगा भाई| आप के बिना इस ब्लॉग का कोई अर्थ जो नहीं है भाई!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विशेष अनुरोध:- इसे व्यक्तिगत स्तर पर लेने की सख्त मनाही है, जो मित्र ऐसा करते हुए पाए जायेंगे, हमारी अगली पोस्ट में आदर सहित स्थान पायेंगे| और जो दोस्त इसे पढ़ कर कम से कम मन ही मन मुस्कुराएंगे, हमारा दिल जीत ले जायेंगे|

इस पोस्ट के प्रेरणा श्रोत मनोज भाई हैं, ये पोस्ट सभी संभावित सकारात्मक / नकारत्मक टिप्पणियों के साथ उन को समर्पित| मनोज भाई इस का भार मैं अकेले कैसे सहन कर पाऊँगा  :))))))))))))))))))))

11 जुलाई 2011

कुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे

अक्सर ऐसे भी दिखें, कुछ modern परिवार|
मिल जुल कर ज्यों चल रही, गठबंधन सरकार||
गठबंधन सरकार, सरोकारों के सौदे|
अपने-अपने भिन्न, सभी के पास मसौदे|
नित्य नया सा खेल, खेलते हैं ले-दे कर|
दिखते संग, परंतु, दूर होते हैं अक्सर||

रस - छन्द - अलंकार

छंदों में मात्रा की गिनती

*अ इ उ क पि तु ------------------की एक [1] मात्रा
*आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः का पी तू को-----------की दो [2] मात्रा

*
सत्य में '' की 1 आधे '' की 1 और '' की भी एक मात्रा = कुल मात्रा 3
*अंत में 'अं' की 2 और '' की 1 मात्रा = कुल मात्रा 3
*समर्पण में '' की 1 'म+र' की 2 '' की 1 और '' की 1 मात्रा = कुल मात्रा 5
*अतः में '' की 1 और 'तः' की 2 मात्रा = कुल मात्रा 3
*
रास्ता में 'रा' की 2 आधे '' की कोई नहीं और 'ता' की 2 मात्रा = कुल 4 मात्रा|
परंतु यदि इसी 'रास्ता' को 'रासता' की तरह बोला / लिखा जाये तो बीच वाले '' की 1 मात्रा जोड़ कर कुल 5 मात्रा| सामान्यतः इस से बचा जाता है|


छंदों में गण प्रकार और उनकी गणना
सूत्र :- य मा ता रा ज भा न स ल गा

गण 1 = ''गण = य मा ता = लघु गुरु गुरु = 1 2 2
गण 2 = ''गण = मा ता रा = गुरु गुरु गुरु = 2 2 2
गण 3 = ''गण = ता रा ज = गुरु गुरु लघु = 2 2 1
गण 4 = ''गण = रा ज भा = गुरु लघु गुरु = 2 1 2
गण 5 = ''गण = ज भा न = लघु गुरु लघु = 1 2 1
गण 6 = ''गण = भा न स = गुरु लघु लघु = 2 1 1
गण 7 = ''गण = न स ल = लघु लघु लघु = 1 1 1
गण 8 = ''गण = स ल गा = लघु लघु गुरु = 1 1 2
'' का लतलब लघु यानि 1 मात्रा
'गा' का मतलब गुरु यानि 2 मात्रा


रस




छन्द 

चौपाई छन्द
दोहा छन्द
रोला छन्द
कुण्डलिया छन्द
घनाक्षरी छन्द
हरिगीतिका छन्द
साङ्गोपांग सिंहावलोकन छन्द
अमृत ध्वनि छन्द



अलंकार

फिल्मी गानों में अनुप्रास अलंकार
श्लेष और यमक अलंकार

10 जुलाई 2011

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - पढ़ें और सुनें भी - लोग हमें कहते थे इश्क़ का बीमार है

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

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इस पोस्ट में एक विशेष घोषणा भी है, जिसे पढ़ना न भूलें
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यह पोस्ट दो दिन लेट है| इस बार हम औडियो क्लिप्स भी देना चाह रहे थे, इसलिए देरी हो गयी| इस बार की पोस्ट में आप घनाक्षरी छंदों को सुन भी सकते हैं| हम सब के चहेते तिलक राज कपूर जी ने अपनी आवाज में उन के छंदों को रिकार्ड कर के भेजा है और रविकान्त भाई के छंदों को मैंने अपनी आवाज में रिकार्ड किया है| अंतर्जाल पर यह मेरा पहला प्रयास है, और इस प्रयास पर आप लोगों के सुझावों का सहृदय स्वागत है|

तो आइये पहले हम पढ़ते हुए सुनते हैं तिलक राज जी के छंदों को|





तेरा-मेरा, मेरा-तेरा, बातें हैं बेकार की ये,
आप भी समझिये, उसे भी समझाइये|

वाद औ विवाद से, न सुलझा है कभी कुछ,
प्यार को बनाये रखे, 'हल' अपनाइये|

छोटी छोटी बातें बनें, बड़े-बड़े मतभेद,
छोड़ इन्हें पीछे, कहीं, आगे बढ़ जाइये|

ज्ञानीजन-गुणीजन, सभी ने बताया हमें,
राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइये||

[शायरी करने वाले लोग बखूबी जानते हैं ऊला और सानी का क्या और क्यों महत्व होता है|
थोड़ा स्पष्ट कर दें, घनाक्षरी के पहले दो चरण विषय को उपस्थित करते हैं, फिर तीसरा
चरण विषय को तान देता है और चौथा वाला चरण 'सटाक' की आवाज के साथ
न सिर्फ छन्द समापन करता है बल्कि उक्त विषय पर निष्कर्ष भी दे देता है|
यहाँ गिरह बाँधने वाली बात भी खास महत्व रखती है]

=====


तिलक भाई के आदेशानुसार इस छन्द के साथ फोटो भी जोड़ा गया है


image.png


नयना हैं कजरारे, केश घटा ने सँवारे,
वक्ष कटि से कटा रे, कलियों सी काया है|

गोरे गाल तिल धारे, अधर गुलाब प्यारे,
इन्द्र की सभा से तुझे कौन खींच लाया है|

अधर अधीर कहें, बड़े ही जतन कर,
काम के लिए रति ने तुझको सजाया है|

बदली की ओट से निहारता कनखियों से,
देख तेरी सुंदरता, चाँद भी लजाया है||

['कनखियों से'............... नीरज भाई की स्टाइल में बोले तो आप तो उस जमाने में
पहुँचे ही, हम सभी को भी दशकों पीछे ले गए हो भाई साब| हाए हाए हाए,
वो कनखियों वाला किस्सा आप के साथ भी रहा है,
पता नहीं था हमें!!!!!!!!!!]


=====


हमने भी सोचा, चलो - उस से ही शादी करें,
जिस पे फिदा ये सारा, नगर-बाज़ार है|

अम्मा-बापू-भाई-भाभी, कोई नहीं माना कभी,
सब को लगा कि छोटा-मोटा ये बुखार है|

उस को निहारते थे, खिड़की के तले खड़े,
लोग हमें कहते थे इश्क़ का बीमार है|

घोड़ी पर चढ़ कर, उसे देखा, जाना तभी,
बन्नो का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||

[क्या बात करते हैं............. आप भी.........!!!!! फिर क्या हुआ? कैसे पिण्ड छूटा?
या अभी भी उस रोग से ग्रस्त हैं आप भाई साब? चलो अब इस घनाक्षरी
को जो एक बार भी पढ़ लेगा, खिड़की के अंदर जा कर डिटेल में
जरूर देखेगा, मान्यवर]




और अब पढ़ते हैं उन्हें - जो छंदों से प्राणों से भी अधिक प्यार करते हैं| श्लेष अलंकार वाली विशेष पंक्ति पर आपने एक नहीं दो-दो छन्द, और वो भी दो प्रकार के प्रयोगों के साथ प्रस्तुत किए हैं| मैंने इन छंदों को अपनी आवाज में रिकार्ड किया है, आशा है आप लोग मेरी आवाज की खराश को नज़र अंदाज़ कर देंगे|


:- रविकान्त पाण्डेय‍‍


पहला प्रयोग - अभंग श्लेष अलंकार



निज-निज प्रकृति के, सब अनुसार चलें,
विषम का किए प्रतिकार बिन चले ना|

बिन पुरुषार्थ कुछ, प्राप्त नहीं होता कभी,
ध्रुव सत्य बात ये स्वीकार बिन चले ना|

कुछ नहीं पूर्ण यहाँ, सब को तलाश कुछ,
नाव कोई जैसे पतवार बिन चले ना|

शिष्य को न नींद आए, मछली को शोक भारी,
पुरुष संताप ग्रस्त - 'नार' बिन चले ना||

[इस छन्द में रवि जी ने 'नार' शब्द के तीन अर्थ लिए हैं [१] ज्ञान [२] पानी और [३] स्त्री|
अभंग श्लेष का अर्थ होता है कि दिये / लिए गए शब्द को जैसे का तैसे ही लेना]


दूसरा प्रयोग - सभंग श्लेष अलंकार


प्रेम बिन रिश्तों वाली, गाड़ी नहीं चलती है,
घनघोर युद्ध, हथियार बिन चले ना|

वन-वन डोल-डोल मृग यही कहता है,
लगे प्यास जब, जलधार बिन चले ना|

आभूषण कितने भी सुंदर हों बंधु, पर,
स्वर्ण की दुकान तो 'सु-नार' बिन चले ना|

लाख हों हसीन मोड, इस की कहानी बीच,
जीवन का मंच सूत्रधार बिन चले ना||

[इस प्रयोग में रवि जी ने 'नार' शब्द को 'सु' से जोड़ कर दो भिन्न अर्थ उत्पन्न किए गए
हैं| यही होता है सभंग श्लेष अलंकार| यहाँ एक पंक्ति में कवि कह रहा है दो बातें-
जैसे कि [१] स्वर्ण की दुकान सुनार के बिना नहीं चलती| दूसरे अर्थ के साथ
[२] स्वर्ण की दुकान सुंदर नारी के बिना नहीं चलती| यही होती है कवि
की कल्पना| रवि भाई आप बीच बीच में गायब हो जाते हैं|
सो गाँठ बाँध लें, इस तरह से चलने वाला नहीं|
भाई साहित्य सेवा का मामला है]


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विशेष घोषणा
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ये सेकंड लास्ट पोस्ट है, अगली पोस्ट होगी 'समापन वाली पोस्ट'| आदरणीय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के परामर्श के अनुसार उस पोस्ट को 'विषय मुक्त' किया जा रहा है| कई सारे कवि / कवियात्रियों ने रचनाएँ भेजी हैं, कुछ परिष्कृत जैसी हैं, कुछ अलग विषय पर हैं और कुछ प्रथम प्रयास वाली हैं| आज के दौर में जिन लोगों ने बढ़ कर छन्द सृजन में रुचि दर्शाई है, मंच उन सभी को प्रस्तुत करना चाहता है| तो ये सारे रचनाधर्मी उस पोस्ट में आएंगे|

सिवाय इस के - इस समापन पोस्ट के लिए -
अन्य रचनाधर्मी भी विषय से इतर अपना कोई एक घनाक्षरी छन्द भेज सकते हैं| हिन्दी के अलावा यदि कोई साथी भोजपुरी, मैथिली, राजस्थानी, पंजाबी, सिंधी, ब्रजभाषा, गुजराती, मराठी जैसी अन्य भाषाओं के अतिरिक्त आंचलिक भाषाओं में भी छन्द भेजना चाहें तो उन का सहर्ष स्वागत है| भाषा संदर्भ के साथ साथ शब्दों के अर्थ अवश्य दें| आप अपनी औडियो क्लिप भी भेज सकते हैं| हमारी अपेक्षा रहेगी कि पाठक उस छन्द को सब से पहली बार यहीं पढ़ें| कारण स्पष्ट है कि हम जब पहले पहले कुछ पढ़ते हैं, तब हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया अपने आप आती है| बाद में फोर्मेलिटी अधिक लगती है|

ये रचनाएँ जल्द से जल्द मंच तक [navincchaturvedi@gmail.com] पहुँच जाएँ, तो समापन पोस्ट को रुचिकर बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा|

इन छंदों के प्रकाशन के संबंध में एक और विशेष योजना भी है - जिस के बारे में समापन पोस्ट में बताया जाएगा, और आप सभी के सुझाव भी आमंत्रित किए जाएँगे|

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छंदों के प्रेमियो - कैसे लगे ये छन्द और कैसा चल रहा है आयोजन, लिखिएगा अवश्य|
हमें इंतज़ार है समापन पोस्ट के लिए आने वाली घनाक्षरियों का|

जय माँ शारदे!